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शेयर बाजार के रणक्षेत्र में आपका कवच

राजीव रंजन झा : आमने-सामने की गपशप का कोई विकल्प नहीं, कोई जवाब नहीं। टीवी स्क्रीन के जरिये, ईमेल के जरिये, वेबसाइट के जरिये चाहे जितनी भी बात हो जाये, लेकिन कुछ बाकी रह जाता है।

यह अहसास फिर से हुआ निवेशक दरबार में, जब नोएडा के हेल्थ विलेज में जब शेयर मंथन और निवेश मंथन के पाठकों से प्रत्यक्ष मिलना हुआ।
इस कार्यक्रम में एक सहभागी ने पूछा कि तमाम विश्लेषक अपनी हर सलाह के साथ स्टॉप लॉस यानी घाटा काटने का स्तर क्यों लगा देते हैं? उनका सवाल था कि अगर आपने घाटा काटने का स्तर लगा ही दिया, तो आखिर इसमें आपकी विशेषज्ञता क्या रही। उनकी उलझन यह थी कि ऐसे में तो किसी भी शेयर में ऊपर का लक्ष्य और थोड़ा नीचे घाटा काटने का स्तर लगाया जा सकता है। इस सवाल पर मुझे यही लगा कि वाकई जिस बात के लिए सारे विश्लेषक यह मान कर चलते हैं कि उन्हें देखने-सुनने-पढ़ने वाले निवेशकों-कारोबारियों को इतना तो पता ही होगा, उस बात पर भी लोगों के मन में उलझनें बाकी रहती हैं। मगर मुझे उस सहभागी का सवाल कतई अस्वाभाविक या चौंकाने वाला नहीं लगा। कारण यह था कि मैंने इस सवाल को एक आम निवेशक-कारोबारी की नजर से ही देखा।
पहली बात, घाटा काटने का स्तर लगाते ही क्यों हैं? अगर आपका विश्लेषण कह रहा है कि कोई शेयर ऊपर जाने वाला है, तो आपको अपने इस विश्लेषण पर भरोसा होना चाहिए ना! जब आप घाटा काटने का स्तर लगाने की बात कहते हैं तो क्या इसका यह मतलब नहीं निकलता कि आपको अपने विश्लेषण पर पूरा भरोसा नहीं है? यह सवाल सुनने में बड़ा वाजिब लगता है, लेकिन इस बाजार की हकीकत यही है कि कोई भी विश्लेषक 100% सही होने का दावा नहीं कर सकता। अगर कोई ऐसा दावा करता है तो उसे पक्के तौर पर झूठा या नासमझ मानना चाहिए। आपको कई ऐसे एसएमएस विज्ञापन मिलते होंगे, जिसमें 100% या 99% सही टिप्स देने के दावे किये जाते होंगे। मगर जो व्यक्ति शेयर बाजार में 99% सही टिप्स दे सकता हो, वह इस बाजार का भगवान बन सकता है।
इस बाजार का पहला सच यही है कि इसमें जोखिम है। जब जोखिम है तो आपका आकलन गलत होने की संभावना है। जब आप गलत हों तो आपको नुकसान होगा। इस नुकसान को कम-से-कम रखने का औजार है स्टॉप लॉस यानी घाटा काटने का स्तर।
आम तौर पर इस औजार का इस्तेमाल तकनीकी विश्लेषक करते हैं। काफी लोग मानते हैं कि बुनियादी या फंडामेंटल विश्लेषण के आधार पर किये जाने वाले निवेश में घाटा काटने का स्तर तय करने की जरूरत नहीं। लेकिन आप बुनियादी विश्लेषण में भी तो गलत हो सकते हैं। जब आपका दाँव गलत बैठ जाये, आपका निवेश नुकसान देने लगे, तो आप क्या करेंगे? किसी स्तर पर आपको यह तय करना होगा कि एक गलत फैसला हो गया है। अगर आपको यह भरोसा हो कि जिन तर्कों के आधार पर आपने निवेश किया था, वे तर्क अपनी जगह बरकरार हैं और बाजार बिना किसी उचित वजह के आपके चुने हुए शेयर को सजा दे रहा है तो अलग बात है। वैसी स्थिति में आपकी रणनीति अलग हो सकती है। लेकिन अगर आपके निवेश के बाद उस कंपनी के कारोबार की स्थितियाँ बदल जायें और वह किसी वजह से दबाव में आ जाये तो ज्यादा नुकसान की आशंका से बचने के लिए किसी स्तर पर आपको घाटा सह कर भी उस शेयर से अपना निवेश हटा लेना पड़ता है। घाटा काटना यही तो है। घाटा ज्यादा बड़ा हो जाये, इससे पहले आप उसे काट देते हैं। खैर, लंबी अवधि के निवेश में ऐसे मौके कम आते हैं, कम ही आने चाहिए।
लेकिन तकनीकी विश्लेषण के आधार पर किये जाने वाले सौदों में तो घाटा काटने का स्तर हर सौदे के साथ जुड़ा होता है। अगर आप इसके बिना हर दिन के उतार-चढ़ाव के बीच किसी शेयर से मुनाफा निकाल लेने की बात सोचें, तो यह बिना कवच के रणक्षेत्र में उतरने जैसा है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 15 जनवरी 2013)

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