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लाभ का सीधा मंत्र : घाटा रखें छोटा, मुनाफा बड़ा

राजीव रंजन झा : तकनीकी विश्लेषक जब भी किसी सौदे की सलाह देते हैं तो उसके साथ-साथ घाटा काटने के स्तर (स्टॉप लॉस) का जिक्र जरूर करते हैं।

पहली नजर में जरूर ऐसा लग सकता है कि घाटा काटने का स्तर बताना कौन-सा मुश्किल काम है। जहाँ भी मौजूदा भाव है, उससे 2% ऊपर का लक्ष्य भाव बता दो और 1% नीचे घाटा काटने का स्तर रख दो, बस 2:1 के अनुपात वाले फायदेमंद सौदे की सलाह बन गयी! लेकिन यह इतना सरल सूत्र नहीं है। ऐसा होता तो शेयर बाजार में हर व्यक्ति हर दिन बेहिसाब पैसे कमा रहा होता।
वास्तव में एक विश्लेषक की खूबी यही है कि वह लाभ-जोखिम के अच्छे अनुपात वाले सौदे खोज सके। जोखिम की तुलना में दोगुना लाभ होने की संभावना आपको हर चार्ट पर नहीं दिख सकती। यह निर्भर करता है किसी शेयर के रुझान पर और उसके सामने सबसे असरदार समर्थन और बाधा स्तरों पर। मान लीजिए कि कोई शेयर 70 रुपये के भाव पर है और उसमें कुछ समय से तेजी का रुझान है। लेकिन अगर आप देखें कि इसमें अगली बाधा 72 रुपये पर है, जबकि नीचे सहारा 65 पर है, तो क्या आप इसमें खरीदारी का सौदा करेंगे? आखिर यहाँ केवल 2 रुपये ऊपर अटक जाने की संभावना बनती है, जबकि फिसलने पर 5 रुपये का नुकसान होने का अंदेशा होगा। मतलब लाभ की तुलना में जोखिम ज्यादा।
लेकिन इस उदाहरण में कोई कहे कि चलो ठीक है, अगर केवल 2 रुपये ऊपर 72 का लक्ष्य बन रहा है तो मैं खरीद भाव से बस 1 रुपये नीचे 69 पर घाटा काटने का स्तर तय करके रख लूँगा। इस तरह आपके इस सौदे में लाभ-जोखिम का अनुपात आपके पक्ष में तो हो जायेगा, लेकिन शायद ज्यादा संभावना इस बात की होगी कि वह शेयर पहले उसके घाटा काटने के स्तर को छू ले और उसके बाद 72 के लक्ष्य तक जाये। वह शेयर अपने लक्ष्य तक तो चला जायेगा, लेकिन उस कारोबारी को घाटा देने के बाद! ऐसा इसलिए होगा कि घाटा काटने का स्तर गलत जगह लगा देने से वह अपना असली मकसद पूरा नहीं करता।
घाटा काटने का स्तर ऐसा होना चाहिए, जहाँ आपके सौदे की पहले से सोची हुई अवधि के दौरान शेयर भाव आने की संभावना बेहद कम हो। अगर वह शेयर घाटा काटने के स्तर पर आ जाये, तो इसका साफ मतलब यह होना चाहिए कि उस शेयर ने अपनी दिशा बदल ली है। अगर आपका घाटा कटने के बाद लक्ष्य भाव की ओर शेयर बढ़ने लगे तो इसका यही मतलब है कि घाटा काटने का स्तर सही जगह नहीं लगा था।
इसी तरह लक्ष्य भाव अगर सही जगह नहीं हो तो आपका सौदा ठीक से फायदेमंद नहीं हो सकता। मान लीजिए एक कारोबारी ने किसी शेयर में तेजी आने का अनुमान तो ठीक लगाया, लेकिन उसने लक्ष्य भाव ज्यादा ऊपर रख लिया। ऐसे में संभव है कि वह कारोबारी अपने लक्ष्य का इंतजार करता रह जाये और वह शेयर उसके लक्ष्य से पहले ही अपनी तेजी पूरी करके दिशा बदल ले और नीचे आने लगे। लक्ष्य भाव ऐसा होना चाहिए, जहाँ तक शेयर भाव चले जाने की संभावना ज्यादा हो। इसमें दूसरी गलती यह हो सकती है कि वह कारोबारी लक्ष्य भाव उचित स्तर से काफी नीचे रख ले। ऐसे में एक सही मौका पहचान लेने के बावजूद वह उस मौके का पूरा फायदा नहीं उठा सकेगा।
लक्ष्य भाव और घाटा काटने के स्तरों को सटीक जगह पर रखना जिसे पता हो, उसके लिए बाजार में पैसे कमाना आसान हो जाता है। लेकिन वास्तव में ऐसा हो पा रहा है या नहीं, यह बात कैसे समझेंगे? सीधी-सी बात यह है कि अगर 10 में से 6-8 बार आपके लक्ष्य हासिल हो रहे हों और घाटा काटने की नौबत केवल 2-4 बार आ रही हो तो आपकी रणनीति सही बन रही है। वैसी स्थिति में अपने सभी सौदों को मिला कर आप फायदे में रहेंगे। मिसाल के तौर पर मान लें कि आपने 10 सौदों में 100-100 रुपये लगाये। इनमें से 7 सौदों में आपको औसतन 2-2 रुपये, यानी कुल 14 रुपये का फायदा मिला। दूसरी ओर 3 सौदों में आपको 1-1 रुपये का, यानी कुल 3 रुपये का घाटा हो गया। इस तरह सभी 10 सौदों में आपको शुद्ध रूप से 11 रुपये का फायदा मिला।
लेकिन अगर कहीं इसका उल्टा हो, यानी घाटे वाले सौदों की संख्या ज्यादा हो, और जब घाटा हो तो बड़ा हो और जब फायदा मिले तो वह छोटा हो, तो वैसी हालत में कुल मिला कर आप नुकसान में रहेंगे। अगर वैसा हो रहा हो, तो जाहिर है कि आपको अपनी रणनीति (या सलाहकार) बदलने की जरूरत है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 16 जनवरी 2013)

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