राजीव रंजन झा : कौन नहीं चाहता कि उसे शेयरों को सस्ता खरीदने और फिर ऊपर के भावों पर बेचने का मौका मिले।
शेयर बाजार में मुनाफा कमाने का यही तो तरीका है। लेकिन यह स्वाभाविक तरीका कब लालच और डर की गिरफ्त में आ जाता है, यह आपको पता भी नहीं चलता। यही लालच और डर हमारे निवेशक को कारोबारी (ट्रेडर) और कारोबारी को निवेशक (मजबूरी का) बना देता है। कोई भी शेयर खरीदने से पहले आपको उसका उद्देश्य तय करना होता है। आपकी रणनीति में यह बड़ा साफ होना चाहिए कि आप निवेश कर रहे हैं या केवल सौदा (ट्रेडिंग)। अगर निवेश कर रहे हैं तो साफ होना चाहिए कि यह कितने समय के लिए है, या फिर कीमत का लक्ष्य क्या है। अगर कोई सौदा कर रहे हैं तो उसके लक्ष्य और घाटा काटने के स्तर तय होने चाहिए।
मैंने कई बार निवेशकों के इस तरह के प्रश्न सुने हैं कि फलां शेयर में कुछ महीनों के लिए लंबी अवधि का निवेश किया है, लेकिन अब शेयर नीचे जा रहा है (या अब मुनाफा मिल रहा है), इसलिए बतायें कि मुझे क्या करना चाहिए। पहले तो यह बात ध्यान में रखें कि लंबी अवधि के निवेश का मतलब कम-से-कम 3-5 साल का निवेश होता है। कुछ महीनों में ही बेकरार हो जाने का मतलब है कि आपने ठीक से मन बना कर लंबी अवधि का निवेश नहीं किया था।
कुछ ऐसी ही स्थिति अब पूरे बाजार के संदर्भ में आने की संभावना दिखती है। तमाम निवेशकों के मन में इसी तरह के प्रश्न होंगे। यहाँ लालच काम करेगा – जो निवेशक निचले स्तरों पर खरीद पाये हों, उन्हें इस समय एक अच्छा मुनाफा दिख रहा होगा। साथ में यह डर भी होगा कि कहीं यह मुनाफा हाथ से फिसल न जाये, कहीं बाजार फिर नीचे न चला जाये।
लालच और डर के चलते लंबी अवधि के कई निवेशक अपना निवेश बेचने की कशमकश में फंस जाते हैं। लेकिन अगर आपने वाकई लंबी अवधि का निवेश किया था, तो लालच और डर के इस दोहरे दबाव से बाहर निकल जायें। जब भी आप 3-5 साल का निवेश करते हैं, तो यह मान कर नहीं चलते कि उतने समय आपका शेयर बस एक सीधी रेखा में ऊपर ही चलता जायेगा। अगर हर उतार-चढ़ाव का फायदा उठाते रहने की सोचेंगे, तो लंबी अवधि का निवेश कर ही नहीं सकते, फिर तो आप कारोबारी बन जायेंगे। समय-समय पर अपने निवेश की समीक्षा जरूर करते रहें, लेकिन लालच और डर से परे हट कर। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 24 जनवरी 2013)
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