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राजीव रंजन झा : उद्योग जगत जब बजट या किसी भी सरकारी नीति पर प्रतिक्रिया देता है, तो जरा सँभल कर देता है।
कहीं कुछ चुभ रहा हो, तो भी होठों पर मुस्कान लिए वे आभार जताते ही नजर आते हैं। लेकिन शेयर बाजार इतना विनम्र नहीं है। वह तुरंत सिर पर बिठाता है और तुरंत पटक भी देता है। वहाँ पल-पल आशा-निराशा का हिसाब होता रहता है। बजट से पहले भारत का शेयर बाजार कुछ हरियाली में चल रहा था। जब वित्त मंत्री पलनिअप्पन चिदंबरम का यूपीए-2 की पारी में पहला और अंतिम बजट भाषण शुरू हुआ तो बाजार अपनी यह हरियाली थोड़ी-थोड़ी गँवाने लगा। करीब पौने दो घंटे चले बजट भाषण के मध्य में ही बाजार की हरियाली काफी मद्धिम हो गयी। बजट खत्म होने से पहले ही बाजार लाल हो गया और बाजार बंद होते-होते सेंसेक्स 291 अंक और निफ्टी 103 अंक नीचे टपक गया। जाहिर है कि बजट भाषण में कही गयी तमाम अच्छी-अच्छी बातें बाजार को रास नहीं आयीं।
वित्त मंत्री से उम्मीद यह थी कि वे घटती आर्थिक विकास दर (जीडीपी) को संभालने वाला बजट पेश करेंगे। इसके लिए उन्होंने बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) से जुडे दर्जनों छोटे-बड़े उपायों का ऐलान भी किया। लेकिन कॉर्पोरेट दिग्गजों की ओर से औपचारिक स्वागत वाली प्रतिक्रियाओं से अलग शेयर बाजार ने यही देखा कि विकास दर तेज करने की स्पष्ट सोच इस बजट में नहीं है।
इसके अलावा बाजार में घबराहट के सूत्र विदेशी निवेशकों (एफआईआई) को मिलने वाली कर छूट पर इस बजट में उठे नये सवालों से जुड़े है। भारत ने मॉरीशस और कई अन्य देशों के साथ संधि कर रखी है, जिससे उन देशों के निवासियों को भारत में निवेश पर होने वाले फायदे पर भारत में कर नहीं चुकाना पड़ता। इस कर छूट के लिए उन्हें ऐसी संधि वाले देश का टैक्स रेजिडेंसी सर्टिफिकेट (टीआरसी) पेश करना होता है। इस बार बजट में एक स्पष्टीकरण जोड़ा गया है कि ऐसी कर छूट पाने के लिए टीआरसी जरूरी है, लेकिन अपने-आप में काफी नहीं है। केवल यह स्पष्टीकरण भारत में बड़ी राशि लगाने वाले विदेशी निवेशकों की नींद उड़ाने के लिए काफी है।
यह बात बाजार के विश्लेषकों को जरा हैरान कर रही है, क्योंकि अब तक चिदंबरम ने पिछले साल के बजट में उठे गार के मसले पर विदेशी निवेशकों की चिंताओं को शांत करने का ही रुख अपनाया था। ऐसे में उन्हें हैरानी है कि चिदंबरम के बजट में आखिर ऐसी बात कैसे आ सकती है, जो एक तरह से मॉरीशस संधि को नकार ही देती है। विदेशी निवेशकों का फंड सँभालने वाले फंड मैनेजर कह रहे हैं कि एक तरह से पी-नोट्स के जरिये आने वाला सारा निवेश ही इससे रुक सकता है।
कॉर्पोरेट वकील असीम चावला से यह मुद्दा समझने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि भारत के आयकर विभाग ने करीब एक दशक पहले खुद ही एक सर्कुलर जारी किया था कि अगर किसी के पास ऐसी संधि वाले देश का टैक्स रेजिडेंसी सर्टिफिकेट (टीआरसी) है तो विभाग कर छूट के दावे के लिए केवल उस दस्तावेज को ही मान लेगा, कोई और चीज जरूरी नहीं होगी। लेकिन इस सर्कुलर को एक जनहित याचिका में चुनौती दी गयी। दिल्ली हाई कोर्ट में उस जनहित याचिका के पक्ष में फैसला हुआ, लेकिन आय कर विभाग ने इस पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और सर्वोच्च न्यायालय का फैसला यही रहा कि टीआरसी को पर्याप्त मानने का सर्कुलर सही है।
लेकिन इस बजट में दिये गये स्पष्टीकरण से ऐसा लगता है कि सरकार अब अपने उस सर्कुलर से अलग हटने की कोशिश कर रही है। वित्त मंत्री ने बजट के बाद अपने बयान यह तर्क रखा है कि टीआरसी केवल निवास की जगह बताता है, निवेश का स्वामित्व नहीं बताता। लेकिन पी-नोट्स का भी किस्सा यही है। उसमें भी निवेश के असली स्वामी का पता नहीं चलता।
मॉरीशस संधि या अन्य देशों के साथ ऐसी बाकी संधियों का मसला हो, या फिर पी-नोट्स को लेकर असली निवेशक की खोजबीन का मसला हो, जब भी ये मुद्दे उठते हैं तो बाजार में एक खलबली सी मच जाती है। तार्किक नजरिया तो यही है कि इन संधियों के दुरुपयोग या पी-नोट्स के जरिये काला धन भारतीय शेयर बाजार में लगने की संभावनाओं को खत्म किया जाये और जहाँ भी नियम-कानूनों में छेद हैं, उन्हें भरा जाये। लेकिन जब कभी सरकार उस दिशा में बढ़ती है, तो बाजार की नैया डगमगाने लगती है और सरकार को अपने कदम पीछे करने पड़ते हैं। इस लिहाज से अगर शेयर बाजार की दिशा को सँभालने के लिए सरकार फिर से अपने रुख में नरमी ले आये तो इसमें कोई अचंभा नहीं होगा।
जहाँ तक बजट की बाकी बातें हैं, इसमें शेयर बाजार की प्रतिक्रिया बड़ी ठंडी रही है। खानापूरी वाली प्रतिक्रियाओं को छोड़ दें तो मोटे तौर पर बाजार ने इसे न अच्छा न खराब बजट माना। ड्रीम बजट की उम्मीद करने वाले तो जरूर निराश हुए, लेकिन साथ ही बजट में नयी टैक्स इंजीनियरिंग की आशंकाएँ भी गलत रहीं। शेयर बाजार के निवेशक सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) में कमी से कुछ खुश होंगे, जबकि कमोडिटी बाजार के निवेशक कमोडिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) लगने से थोड़े दुखी होंगे। लेकिन यह सब तो दूध नापे जाने के बाद का चुनका भर है।
बाजार ने सरकारी खजाने का घाटा (फिस्कल डेफिसिट) इस कारोबारी साल 5.2 प्रतिशत और अगले कारोबारी साल 4.8 प्रतिशत रहने के अनुमानों से जरूर राहत महसूस की है। लेकिन इस लक्ष्य को पाने के बारे में अविश्वास कायम है। बाजार को इस बात से भी राहत मिली होगी कि आशंकाओं के विपरीत यह बजट चुनावी ढंग से लोकलुभावन नहीं है। इस तरह चिदंबरम ने जिम्मेदार बजट पेश करने का वादा निभाया है। लेकिन जब मैंने उद्योग संगठन सीआईआई के अध्यक्ष-मनोनीत एस. गोपालकृष्णन से पूछा कि इस बजट को बाद में वे किस एक खास बात के लिए याद रखेंगे, तो उन्हें एक पल को सोचना पड़ा। फिर उन्होंने कहा – अधिक नौकरियाँ, जो छोटे-मँझोले उद्यमों (एसएमई) को बढ़ावा देने वाले उपायों से मिलेंगी। एस. गोपालकृष्णन राजनेता नहीं हैं, लेकिन उनका यह जवाब मुझे राजनीतिक ही लगा।
मंदी की मार से जूझ रहे उद्योग जगत को वित्त मंत्री ने सीधे तौर पर कोई बड़ा प्रोत्साहन नहीं दिया। लेकिन दूसरी ओर आशंका यह थी कि वे उत्पाद (एक्साइज) शुल्क और सेवा कर (सर्विस टैक्स) दोनों को 2% बढ़ा कर 14% कर सकते हैं। लेकिन उन्होंने इन दोनों को मौजूदा स्तरों पर ही छोड़ दिया। उद्योग जगत चाहे तो इसे ही वित्त मंत्री की परोक्ष प्रोत्साहन योजना मान ले। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 01 मार्च 2013)
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