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लोग भले ही उम्मीदें जता रहे थे कि आरबीआई अपनी 30 जुलाई की बैठक में नीतिगत ब्याज दरों - रेपो दर (Repo Rate) और रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate) में कोई वृद्धि नहीं करेगा, लेकिन मन में कहीं यह आशंका बैठ तो गयी ही थी। अगर ऐसा नहीं होता तो ब्याज दरों में कमी के के दौर में अचानक ब्याज दरें बढ़ने का सवाल कैसे पैदा होता? खैर, गनीमत है कि आरबीआई ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। इसने रेपो और रिवर्स रेपो दरों को और साथ ही नकद आरक्षित अनुपात (CRR) में कोई बदलाव नहीं किया।
अभी दो हफ्ते पहले ही आरबीआई ने एमएसएफ और बैंक दर में बढ़ोतरी करके नकदी सोखने और परोक्ष रूप से ब्याज दरें बढ़ाने वाले कदम उठाये थे। लिहाजा यह उम्मीद तो शायद किसी अति-आशावादी व्यक्ति को ही रही होगी कि आरबीआई 30 जुलाई को नीतिगत ब्याज दरों में कटौती भी कर सकता है। ऐसे में सभी प्रमुख दरों को यथावत बनाये रख कर आरबीआई ने फिलहाल यथास्थिति का ही संकेत दिया है।
आरबीआई की आज की घोषणा में लोग खास तौर पर यह देखना चाहते थे कि दो हफ्ते पहले उठाये गये कदमों को वापस लेने के बारे में किस तरह के संकेत मिलते हैं। आरबीआई ने स्वाभाविक रूप से वही कहा है जो पहले से स्पष्ट था। इसने संकेत दिया है कि इन तात्कालिक कदमों को रुपये की कीमत में स्थिरता आने पर वापस लिया जायेगा। ये कदम तात्कालिक थे, यह सबके सामने स्पष्ट था। इनका लक्ष्य रुपये की कीमत में स्थिरता लाना था, यह भी पहले से पता था। लेकिन अगर कोई यह सोच रहा हो कि आरबीआई इन कदमों को वापस लेने की कोई समय-सीमा सामने रख देगा, तो यह उम्मीद ही गलत थी।
आरबीआई ने एक बार फिर विकास दर में आ रहे धीमेपन को स्वीकारा है। इसने 2013-14 के लिए विकास दर का अनुमान 5.7% से घटा कर 5.5% कर दिया है। इससे स्पष्ट है कि सरकार के विभिन्न मुखारविंदों से हम बार-बार 6-6.5% से ज्यादा विकास दर के जो दावे सुनते रहे हैं, वे कोरी सांत्वना देने वाले शब्द भर हैं।
आरबीआई गवर्नर के तौर पर डुव्वूरी सुब्बाराव के कार्यकाल की यह अंतिम नीतिगत घोषणा है। अब तक जो खबरें पढ़ने को मिली हैं, उनसे तो नहीं लगता कि सरकार उन्हें कार्यकाल विस्तार देने की इच्छुक है। ऐसे में जाते-जाते सुब्बाराव ने अपनी अंतिम नीतिगत घोषणा में ऐसा कुछ नहीं किया है, जिसे लेकर बाजार नाखुश हो। लेकिन उनके 5 साल के कार्यकाल के आधार पर उन्हें एक संकोची गवर्नर के तौर पर ही देखा जायेगा, जिसने अपने देखते-देखते विकास के इंजन को धीमा पड़ जाने दिया।
खास कर पिछले 2-3 वर्षों के दौरान पहले तो उन्होंने ब्याज दरों में बढ़ोतरी के चक्र को पलटने की माँग को अनसुना किया, और बाद में ब्याज दरें घटाने की रफ्तार बड़ी धीमी रखी। उन्होंने महँगाई दर को घटाना अपना सर्वोच्च लक्ष्य बनाये रखा, लेकिन ऊँची ब्याज दरों की उनकी दवा कभी महँगाई पर नियंत्रण में कारगर होती नजर नहीं आयी। उल्टे उद्योग जगत की यह आशंका सच साबित हो गयी कि ऊँची ब्याज दरें विकास के इंजन को धीमा कर देंगी। अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में भी सुब्बाराव ये नहीं कह सकते कि महँगाई दर को लेकर चिंता पूरी तरह खत्म हो गयी है। भले ही थोक महँगाई दर (डब्लूपीआई) अब नियंत्रण में दिखती है, लेकिन खुद उन्होंने हाल में कई बार जिक्र किया है कि उपभोक्ता महँगाई दर (सीपीआई) अब भी चिंताजनक बनी हुई है।
खैर, आरबीआई की यथास्थिति के बीच भी शेयर बाजार ने उतार-चढ़ाव का रोमांच खत्म नहीं होने दिया है। आरबीआई की घोषणा सामने आने से कुछ मिनटों पहले ही सेंसेक्स-निफ्टी (Sensex Nifty) सपाट से मजबूती की ओर बढ़ने लगे। जब आरबीआई की नीति सामने आ गयी, तो इन्होंने कुछ और मजबूती हासिल की। लेकिन उसके बाद एकदम से फिसलने लगे। इन पंक्तियों के लिखते-लिखते दोनों प्रमुख सूचकांक आधा फीसदी से ज्यादा गिर चुके हैं।
लेकिन इस गिरावट को मैं आरबीआई की घोषणा के बदले बाजार की अपनी चाल से जोड़ कर ही देखूँगा। अगर यह आरबीआई की घोषणा को लेकर किसी निराशा का नतीजा होता तो बैंकिंग क्षेत्र पर ज्यादा दबाव दिखता। लेकिन अभी जो कमजोरी दिख रही है, उसमें बैंकिंग क्षेत्र गिरावट की अगुवाई नहीं कर रहा। इसके बदले बिजली, तेल-गैस, धातु और एफएमसीजी जैसे क्षेत्रों पर अधिक दबाव है। बेशक रियल एस्टेट, ऑटो और बैंकिंग शेयरों पर भी दबाव है, लेकिन वह पूरे बाजार की कमजोरी में सहभागिता के रूप में है। आने वाले दिनों में खास तौर पर यह देखना होगा कि 5760-5750 के आसपास निफ्टी को सहारा मिलता है या नहीं। निफ्टी का इससे नीचे जाना बाजार के लिए खतरनाक होगा। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 30 जुलाई 2013)
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