

सरकार ने 16 जुलाई की शाम को 13 क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के नियमों ढील देने का फैसला किया था। उसके अगले दिन शेयर बाजार ने इन घोषणाओं को जरा भी भाव नहीं दिया। कल केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इन घोषणाओं पर मुहर लगा दी। साथ में खुदरा एफडीआई (Retail FDI) की शर्तों में कुछ नयी ढील भी दी। लेकिन आज सुबह बाजार हल्की-फुल्की बढ़त के साथ खुलने के चंद मिनटों के अंदर थोड़ा सपाट थोड़ा लाल हो गया। कल एफडीआई के अलावा इंडियन ऑयल में 10% सरकारी हिस्सेदारी के विनिवेश का फैसला भी किया गया।
आर्थिक सुधारों के रास्ते पर आगे बढ़ने के सरकार के इन संकेतों को बाजार नजरअंदाज क्यों कर रहा है? कारण स्पष्ट है। आगे बढ़ कर कहीं पहुँचने के लिए समय भी तो चाहिए! वह समय अब इस सरकार के पास कहाँ बचा है? बाजार इस बात को भी स्पष्ट देख रहा है कि सरकार अब आर्थिक स्थिति सँभालने के कहीं ज्यादा राजनीतिक स्थिति सँभालने की तैयारियों में लगी है। इसलिए भले ही अगले लोकसभा चुनाव समय पर ही होने की बातें कही जा रही हों, लेकिन बाजार समय से पहले चुनाव की आशंका को भी एकदम नजरअंदाज नहीं कर सकता।
पिछले साल सितंबर में ही केंद्र सरकार ने खुदरा एफडीआई का रास्ता खोलने की घोषणा की थी। लेकिन इस खुले रास्ते पर कदम बढ़ाने के लिए कोई विदेशी कंपनी अपने डॉलरों की थैली लेकर आगे नहीं आयी। दरअसल उस समय भी यह बात स्पष्ट थी कि सरकार के इन कदमों से डॉलरों की कोई बरसात नहीं होने वाली। मेरा मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद अगली सरकार की नीति स्पष्ट होने से पहले कोई विदेशी कंपनी इस बारे में बड़े फैसले नहीं करेगी। दूसरी बात ये है कि खुदरा एफडीआई को राज्य सरकारों की इच्छा पर निर्भर बनाया है और अब तक कांग्रेस-शासित राज्यों के अलावा कहीं और इसका रास्ता खुलता नहीं दिख रहा।
अर्थव्यवस्था के इंजन को फिर से गति देने के लिए सरकार अटकी पड़ी बड़ी परियोजनाओं की बाधाएँ दूर करने के मसले पर कोई सार्थक नतीजा नहीं दे पायी है। अगर सरकार पिछले साल सितंबर में अपनी नींद से जग गयी थी तो अब तक इस मोर्चे पर कुछ तो नतीजे दिखने चाहिए थे। ऐसे में उद्योग जगत और शेयर बाजार ने सरकार के मौजूदा कार्यकाल से अब कोई उम्मीद लगाना छोड़ दिया है। इसी खीझ में उद्योग जगत के कुछ दिग्गज कह चुके हैं कि इससे तो अच्छा है कि सरकार अब तुरंत चुनाव करा दे। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 02 अगस्त 2013)
Add comment