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राजीव रंजन झा
कल अपने बाजारों में दुबई की चर्चा कम रही, लेकिन उसका असर जरूर रहा।
लोगों की नजर एशियाई बाजारों की गिरावट की ओर गयी, यूरोपीय बाजारों के फिसलने पर भी गयी और अपने भारतीय शेयर बाजार भी फिसल गये। लोगों ने वायदा कारोबार के उतार-चढ़ाव को भी कारण माना। लेकिन इन सब बाजारों में गिरावट के सूत्रधार की भूमिका निभा रहे दुबई संकट की चर्चा कम ही रही। लेकिन अब पूछा जा रहा है कि क्या विश्व के आर्थिक संकट में अब एक नया पहलू जुड़ गया है। क्या इस संकट की धुरी अमेरिका और यूरोप से खिसक कर दुबई जा रही है? एक ऐसे समय में, जब लोग विश्व का आर्थिक संकट सिमटने की उम्मीदें करने लगे थे, तब यह नया अध्याय शुरू हो गया है!
लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह रूस के वित्तीय संकट या अर्जेंटीना के वित्तीय संकट जैसा ही बड़ा असर डालने वाला होगा? अभी इस बारे में कोई कयास लगाना बड़ा मुश्किल है, क्योंकि संकट की गहराई के बारे में जानकारी धीरे-धीरे ही सामने आयेगी। अभी तो यही कहा जा रहा है कि दुबई की प्रमुख सरकारी होल्डिंग कंपनी दुबई वर्ल्ड ने अपने कुछ कर्जों को वापस लौटाने के लिए ज्यादा समय मांगा है। इस बात से अचानक कोई बड़ा नतीजा निकालना शायद जल्दबाजी होगी।
यह बात बिल्कुल ठीक है कि इस खबर के मद्देनजर बाजार में बेहद सावधान रहने की जरूरत है। लेकिन अभी यह मान लेना भी ठीक नहीं होगा कि दुबई का जहाज डूबने जा रहा है। बहरहाल, इस खबर ने पूरी दुनिया के शेयर बाजारों के साथ-साथ भारतीय शेयर बाजार को भी नीचे जाने का एक बहाना जरूर दे दिया है।
पिछले दिनों मैंने बाजार में जबरदस्त उठापटक की आशंका जतायी थी। तब यह अंदाजा नहीं था कि खाड़ी से ऐसी कोई खबर आने वाली है। लेकिन यह खबर उस संभावित उठापटक का कारण बन सकती है। भारतीय शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव का दायरा बढ़ेगा, जिसमें कारोबारी मौके तो होंगे, लेकिन दोतरफा पिटाई का खतरा भी होगा।
अभी बाजार ने घबराहट का पहला लक्षण दिखाया है। जब बाजार में घबराहट के चरम लक्षण दिखें, तब खरीदारी का मौका होगा और उस मौके के लिए निवेशक तैयार रहें। (शेयर मंथन, 27 नवंबर 2009)
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