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राजीव रंजन झा
खबरें आयीं कि सत्यम का घोटाला 7800 करोड़ रुपये का नहीं, 14,000 करोड़ रुपये का था, और नतीजा – महिंद्रा सत्यम 10% टूटा, टेक महिंद्रा भी इसकी चपेट में आ गया।
जाहिर है कि इस खुलासे से सत्यम घोटाला और भी बड़ा लगने लगा। लेकिन अब महिंद्रा सत्यम के लिए, और उसके शेयरधारकों के लिए इस खुलासे का मतलब क्या है? घोटाला सामने आने के ठीक बाद सत्यम के खाते खाली थे। सरकार के बनाये बोर्ड के नेतृत्व में कंपनी के कर्मचारियों ने अस्तित्व बचाने का शानदार संघर्ष किया, और अब यह कंपनी नये प्रमोटर महिंद्रा समूह के हाथों में है। तो क्या इस नये खुलासे से महिंद्रा सत्यम के खातों में अब जो रकम है, उस पर कोई फर्क पड़ेगा? नहीं ना।
राजू साहब को जो करना था, वे कर चुके। अब बस हिसाब लग रहा है कि उन्होंने जो काम किया वह कितना बड़ा था। उस हिसाब-किताब से कंपनी के मौजूदा कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हालाँकि कई विदेशी ब्रोकिंग फर्म अब भी यह आशंका जताती रही हैं कि महिंद्रा सत्यम के लिए नये ग्राहक जुटाना आसान नहीं होगा। लेकिन कंपनी ने हाल के महीनों में पुराने ग्राहकों को बनाये रखने और कुछ नये ग्राहक जुटाने में काफी हद तक सफलता पायी है।
यह ठीक है कि कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन का पूरा ब्यौरा मिलना अभी बाकी है। लेकिन सीमित रूप में ही सही, जितनी जानकारी कंपनी अब तक दे चुकी है, वह निवेशकों को इतना भरोसा दिलाती है कि कंपनी में काफी जान है। शेयर भावों का उतार-चढ़ाव और मूल्यांकन सस्ता-महँगा होने की बात हमेशा चलती रहती है। इन बातों को लेकर बाजार में कभी आम सहमति हो भी नहीं सकती। लेकिन मोटी बात यह है कि अगर रामलिंग राजू का घोटाला 7800 करोड़ रुपये के बदले 14,000 करोड़ रुपये का था भी, तो इससे कंपनी के मौजूदा स्वरूप पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।
एक आशंका यह है कि कहीं इस खुलासे से कंपनी के ऊपर कोई नयी देनदारी न आ जाये। कंपनी के ऊपर अमेरिकी अदालत में क्लास ऐक्शन के मुकदमे चल रहे हैं। लेकिन अब तक के घटनाक्रम से तो यही समझ में आता है कि नये प्रबंधन ने इस पहलू को अच्छी तरह ध्यान में रख कर ही कंपनी को अपने हाथ में लेने का फैसला किया। इसलिए सवाल एक ही है – क्या आप सत्यम को चलाने और इन जोखिमों को सँभालने के मामले में महिंद्रा समूह की क्षमता और समझदारी पर भरोसा करना चाहते हैं? (शेयर मंथन, 26 नवंबर 2009)
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