फिक्की-पिंकर्टन ने अपना वार्षिक इंडियन रिस्क सर्वे 2016 (आईआरएस 2016) जारी कर दिया है।
यह सर्वे आर्थिक स्थितियों की चुनौतियों पर नजर डालता है। इसके नतीजों से पता चलता है कि इस क्षेत्र के लिए खतरों में बदलाव हुआ है, लेकिन शीर्ष पाँच खतरे की श्रेणियों में प्रतिशत के अनुसार अंतर देखें तो पता चलता है कि इनमें कोई अंतर नहीं है।
सर्वे में भाग लेने वाले अधिकतर लोगों ने पिछले साल के नतीजों के विपरीत इस साल सामाजिक अशांति, हड़ताल और बंद को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बताया है। कॉर्पोरेट जगत के लिए यह तमाम कारण सबसे अधिक नुकसानदेह रहे, जिसमें आरक्षण से जुड़े जाट और पटेल आंदोलन शामिल हैं। समाज में बढ़ती अशांति के अलावा परियोजनाओं के खिलाफ हड़ताल की समस्या दूसरे से छठे पायदान पर पहुँच गयी।
‘सूचना और साईबर असुरक्षा’ को लगातार दूसरे साल भी व्यापार की दृष्टि से दूसरी बड़ी सम्स्या के रूप में काबिज रही। इसका मुख्य कारण साइबर हैकिंग में वृद्धि है। पिछले वर्ष के इंडिया रिस्क सर्वे में अपराध पाँचवें स्थान पर रहा था, जो कि इस साल तीसरे स्थान पर पहुँच गया है। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार अपराध में 2013 के मुकाबले 2014 में 8.9% की बड़त हुई। संख्या के हिसाब से 2013 में रजिस्टर्ड 66,40,378 मामलों के मुकाबले 2014 में एनसीआरबी ने 72,29,193 मामले दर्ज किए, जिनमें 28,51,563 आईपीसी के अपराध थे।
‘आतंकवाद और उग्रवाद' पिछले साल के तीसरे पायदान के मुकाबले इस साल चौथे नंबर आ गया। दरअसल आतंकी हमले बड़ी आसानी से पूरे व्यापार जगत के संचालन को प्रभावित करते हैं। साथ ही मिडिल ईस्ट के चरमपंथ का भारत तक विस्तार करने का डर बन हुआ है, जिसका प्रमुख कारण सिस्टम से नाखुश युवाओं में बढ़ती कट्टरता है। आतंकवाद के अलावा नक्सलवाद भी व्यापारिक प्रतिष्ठान और उनके संचालन के लिए बड़ों खतरों में से एक हैं। इसकी खास वजह खनिज संसाधनों से संपन्न राज्यों में इनकी मौजूदगी है।
वैश्विक स्तर पर भ्रष्टाचार और व्यापार में आसानी के मामले में भारत की स्थिति सुधरी है, जिसके कारण ‘भ्रष्टाचार, रिश्वत और कारपोरेट धोखाधड़ी’ का खतरा पहले से पाँचवें स्थान पर फिसल गया है। भारत इस मामले में भूटान के बाद दक्षिण एशिया क्षेत्र का सबसे बेहतर देश है। वैश्विक सूची में भारत 83वें स्थान पर है। इसी के साथ पाँच साल की लगातार गिरावट के बाद विश्व आर्थिक मंच के (डब्ल्यूईएफ) वैश्विक प्रतिस्पर्धी सूचकांक 2015-16 में 16 स्थान का सुधार कर भारत ने 55वां स्थान हासिल किया है।
इसके अलावा फिक्की के सर्वे में 'राजनीति और शासन अस्थिरता' का खतरा’ छठे नंबर पर है। प्रस्तावित गुड्स एंड सर्विस टैक्स और मल्टीब्रांड रिटेल आदि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से एक सकारात्मक माहौल बनने की उम्मीद है। बहरहाल नये आंकड़े बताते हैं कि प्रमुख पाँच खतरे जिन्होंने इस वर्ष भारत के व्यापारिक माहौल को प्रभावित किया वे ‘हड़ताल, बंद और अशांति’, ‘सूचना और साईबर असुरक्षा’, ‘अपराध और उग्रवाद’, और ‘भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कारपोरेट धोखाधड़ी’ हैं।