यह चुनाव सिर्फ सुशासन और विकास के मुद्दों पर लड़ा जा रहा है, इसलिए सत्ता में आने पर भाजपा को बेहतर प्रदर्शन करके दिखाना होगा।
भाजपा के सत्ता में आने पर सरकार का सबसे पहला जोर यह होगा कि आर्थिक व्यवस्था को लेकर देश में निराशा का जो माहौल बना हुआ है, उसे सबसे पहले बदला जायेगा। आज पूरे देश में ऐसा माहौल बन गया है कि भ्रष्टाचार ही सभी चीजों की जड़ है, यही सब कुछ खा गया है। इसी को देखते हुए शुरुआत से ठीक ऊपर से कदम उठाया जायेगा, जिससे देश में भ्रष्टाचार को हटाया जा सके।
गुजरात में नौकरशाही की तरफ से रूकावटें आयी तो ऐसी स्थिति में उच्च स्तर के नेताओं और नौकरशाही के बीच संवाद कराया गया और तुरंत उनका समाधान ढूँढा गया, ताकि तीसरे पक्ष और ब्रोकर वगैरह के लिए स्थान ही न बचे। यानी तीव्रता के साथ पारदर्शिता।
सरकारी भ्रष्टाचार पर लगाम लगायी जायेगी, ताकि उससे निर्णय लेने में बाधा न पहुँचे। आज ऐसी सैंकड़ों बड़ी परियोजनाएँ हैं जो रुकी हुई हैं। उन पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन अभी तक उन्हें लटका कर रखा गया है क्योंकि सरकार और नौकरशाही ने फैसले नहीं लिये। सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी। उन सारी परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया जायेगा और उनके लिए टास्क फोर्स बनाया जायेगा, क्योंकि भाजपा इसे राष्ट्रीय क्षति समझती है।
देश की आर्थिक विकास दर (जीडीपी) को बढ़ाने और रोजगार सृजन पर जोर दिया जायेगा। सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) को काफी प्रोत्साहन मिला है। उसे और भी बढ़ावा दिया जायेगा, लेकिन भाजपा सबसे ज्यादा प्रोत्साहन निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र को देगी। भाजपा सरकार में इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जायेगी, जिसको अभी तक नजरअदांज किया गया है। खास तौर पर एसएमई को नजरअंदाज किया गया है।
पर्यावरण के मसले पर हमने खराब प्रशासन देखा है। जयंती नटराजन के समय में साढ़े छह सौ मामले रूके पड़े थे। यहाँ नीतियों के साथ-साथ गवर्नेंस की बात भी हो रही है।
भूमि अधिग्रहण कानून संसद में बहस और संसद की मंजूरी के बाद बना है। कोई कानून व्यावहारिक स्तर पर विकास के आड़े आये, अगर किसी बात से बाधा दिखे तो उसे सही किया जायेगा। आज दो तरह की बातें हो रही है। पहली यह कि उद्योग जगत को जितनी जमीन दी गयी है, उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। वे हजारों एकड़ जमीन ले कर बैठे हुए हैं। दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि उद्योग जगत को नये उपक्रमों के लिए जमीन नहीं मिल रही है। इसमें यह देखना पड़ेगा कि सच्चाई कहाँ है।
दूसरे, यह समझना चाहिए कि जमीन अधिग्रहण में केंद्र सरकार की तुलना में राज्य सरकार की ज्यादा अहम भूमिका होती है। अब किस राज्य के बारे में बात हो रही है, उस राज्य की औद्योगिक नीति या भूमि अधिग्रहण नीति क्या है, उन चीजों के मद्देनजर देखना पड़ेगा। भाजपी चाहेगी कि देश के अंदर औद्योगिक विकास में तेजी आये। उसमें सरकार को जो ठीक लगेगा, वह करेगी।
महँगाई की मुख्य वजह यह है कि आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) का आधुनिकीकरण नहीं किया गया है। इसके आधुनिकीकरण की जरूरत है, जिसमें राज्य सरकारों की भूमिका अहम होगी। महँगाई बढ़ाने में भ्रष्टाचार और जमाखोरी दोनों का योगदान है और इसमें एक गठजोड़ भी होता है। यह गठजोड़ राजनीतिक हो चुका है। ये गठजोड़ राजनीति को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसे तोड़ा जायेगा। इसके लिए संरचनात्मक सुधार करना होगा। सरकार का काम अर्थव्यवस्था के अंदर उम्मीद, उत्साह, ईमानदारी, दिशा और मूल्यों को जन्म देना है, जिसे पिछले कई सालों से कांग्रेस सरकार ने नजरअंदाज किया है। अर्थव्यवस्था में इन चीजों की बहुत अहम भूमिका होती है।
यदि भाजपा की सरकार बनती है तो रिटेल एफडीआई की मंजूरी फिलहाल नहीं दी जायेगी। इसका मतलब यह नहीं है कि इसके दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिये जायेंगे। नरेंद्र मोदी ने हाल में जो कहा, उसका मतलब यही है कि दुनिया बदल रही है, जिसके लिए तैयार रहें। लेकिन फिलहाल इसकी इजाजत नहीं दी जायेगी।
भारत में खुदरा कारोबार का मतलब केवल दुकानदारी और व्यवसाय नहीं है। यह एक सोच है, रहन-सहन और बातचीत का तरीका है और सबसे बढ़ कर समाज के तौर-तरीकों की जड़ में है। हमारे सामाजिक ढाँचे में खुदरा क्षेत्र की अहम भूमिका है। कस्बों और छोटे शहरों में सबकी जिंदगी खुदरा कारोबार के आसपास ही घूमती है। दुकान पर जाना केवल सामान खरीदना नहीं होता, बल्कि हालचाल पूछना भी होता है। उसमें एक सामाजिक सुरक्षा भी है। आपके हाथ में पैसे नहीं हों, तब भी आपको सामान मिलता है। हमारे देश में यह वो धुरी है, जिस पर छोटे कस्बों और शहरों की जिंदगी घूमती है। अभी हमारा देश खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के लिए तैयार नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी सोच पुरातन है। हमारी सोच एफडीआई को लेकर गतिशील है।
सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर जो भी दावे कर रही है, वह केवल आँकड़ेबाजी है। पिछले तीन सालों में सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया या ऐसी कोई नीति नहीं बनायी है जिससे आम आदमी के दर्द को कम किया जा सके। सरकार ने ना ही आम आदमी के लिए और ना ही बाजार के लिए कुछ किया है। सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को बहुत आघात पहुँचाया है।
भाजपा के सत्ता में आने पर सबसे बड़ी बात यह होगी कि देश को एक अच्छा शासन मिलेगा, कांग्रेस तो कहीं शासन करती ही नहीं दिखी। अगर वे शासन चलाते तो यह हाल होता? सरकार को ऐसा सक्षम शासन देना चाहिए जिससे महँगाई, सरकारी घाटा और चालू खाता घाटा काबू में रहे, विकास दर अच्छी रहे और देश की जीडीपी को बढ़ाया जा सके। इनमें से किसी भी दिशा में सरकार ने कदम नहीं उठाया।
भाजपा सत्ता में आने पर सबसे पहले यह देखेगी कि अर्थव्यवस्था को कहाँ-कहाँ कितना नुकसान पहुँचा है। जरूरत होगी तो देश से साझा किया जायेगा कि हमें अर्थव्यवस्था किस हालत में मिली है। देश से संवाद किया जायेगा, जरूरत होगी तो श्वेत-पत्र लाया जायेगा। भारतीय जनता पार्टी गरीबों की पार्टी है। हमारा मंत्र बहुत स्पष्ट है - जनता के पक्ष में और विकास के पक्ष में।
हमें सबसे पहले यह देखना होगा कि अर्थव्यवस्था की स्थिति क्या है? हमें अभी पता ही नहीं है कि वास्तव में देश की स्थिति कैसी है? हमें जो दिखाया जा रहा है, वास्तव में अंदर से अर्थव्यवस्था की स्थिति वैसी नहीं है। इन्होंने अरबों रुपये खर्च करके भारत निर्माण विज्ञापनों में जो दिखाया है, अगर वह सब सच है तो उस हिसाब से तो देश की विकास दर 12% होनी चाहिए! हमें अभी यह अंदाजा है कि देश की अर्थव्यवस्था काफी बीमार है, लेकिन बीमारी कितनी है, यह अभी नहीं पता है।
देश में औद्योगिक विकास भी चाहिए और कृषि का भी विकास चाहिए। आर्थिक रूप से कमजोर और कुचले हुए लोगों को ऊपर उठाना भी सरकार की प्राथमिकता होगी। ऊर्जा की गरीबी को दूर करना हमारी प्राथमिकता होगी। हमारा प्रयास होगा कि पाँच साल के अंदर देश के हर घर में बिजली का बल्ब जले।
अगर एनडीए सरकार को देखें तो उस समय रोजगार काफी बढ़ा था। यूपीए-1 और यूपीए-2 में रोजगार बिल्कुल पैदा नहीं हुआ। उसी का नतीजा है कि आज देश में आर्थिक मायूसी व्याप्त है। इसीलिए युवा वर्ग न केवल सरकार से, बल्कि पूरे राजनीतिक वर्ग से ही नाराज है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इन्होंने निर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) को नदरअंदाज किया। आज देश में 94 करोड़ मोबाइल फोन हैं, लेकिन अभी भी ज्यादातर मोबाइल फोन आयात किये जाते हैं। सरकार ने ऐसे कदम क्यों नहीं उठाये कि भारत में ही इनका निर्माण हो? देश भर में करोड़ों की संख्या में टेलीविजन हैं, फिर भी यह प्रयास नहीं किया गया कि इनमें ज्यादातर का निर्माण देश के अंदर ही हो। सरकार ने पिछले दस सालों में निर्माण क्षेत्र को बिल्कुल पीछे फेंक दिया है। हालत यह है कि गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियाँ भी चीन से बन कर आने लगी हैं। इसलिए निर्माण को बढ़ावा देना भाजपा सरकार की प्राथमिकता होगी। सेवा क्षेत्र को बढ़ावा दे कर इसे इसके अगले चरण पर ले जाया जायेगा, जिससे इसमें और ज्यादा विकास हो सकेगा।
भ्रष्टाचार के मसले पर शीर्ष नेताओं को अपने उदाहरण से नेतृत्व देना होता है। मनमोहन सिंह की सरकार कितनी भ्रष्ट है, सबको पता है। भाजपा की तुलना उस सरकार से नहीं की जा सकती, जिसका हर दूसरा मंत्री भ्रष्ट है और तेल, कोयला, दूरसंचार, खेल जैसे हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार व्याप्त है। इक्का-दुक्का मामले आये भी हैं तो वे या तो अदालत में हैं या सबूत न मिलने पर अदालत ने बरी कर दिया है। आरोप लगना अलग बात है और अदालत से सजा मिलना अलग बात है। येदियुरप्पा जब अदालत से बरी हुए, उसके बाद ही उन्हें वापस लाया गया। राजनीति में जन-समर्थन को आप नकार नहीं सकते। अगर कोई वास्तव में भ्रष्ट और बेईमान हो तो जन-समर्थन इतनी भारी मात्रा में कैसे हो जायेगा? जब वे आरोपों से बरी हो गये और साथ में दिखा कि उन्हें जन-समर्थन है तो भाजपा ने इस बात को मान्यता दी। नरेंद्र तनेजा, संयोजक (ऊर्जा प्रकोष्ठ), भाजपा
(शेयर मंथन, 03 अप्रैल 2014)