आर. के. गुप्ता
एमडी, टॉरस म्यूचुअल फंड
इस समय भारतीय पूँजी बाजार एक चौराहे पर है, जहाँ काफी अनिश्चितताएँ हैं।
दिसंबर तिमाही के कारोबारी नतीजे, नये अमेरिकी राष्ट्रपति की घोषणाएँ, यहाँ आम बजट में होने वाली घोषणाएँ, आरबीआई की मौद्रिक नीति, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के भाव जैसे कई कारक भारतीय बाजार पर असर डालने वाले मुख्य कारक होंगे। कच्चे तेल के भाव में वृद्धि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणाओं को लेकर अनिश्चितता, चीन में औद्योगिक वृद्धि में गिरावट, यूरोपीय अर्थव्यवस्था को लेकर अनिश्चितता, शेयर बाजार पर नया कर लगने की आशंका, जीएसटी पर अमल में देरी और डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी अभी मुख्य चिंताएँ हैं। सकारात्मक बातें ये हैं कि आगामी बजट में कंपनियों के लिए करों में कमी आ सकती है और ब्याज दरें घटने की उम्मीद है। साथ ही वर्ष 2017 में एफआईआई उभरते बाजारों, खास कर भारत के लिए बेहतर आवंटन कर सकते हैं।
नोटबंदी को लेकर आरंभिक डर खत्म हो जाने के बाद साल 2017 की दूसरी छमाही में माँग बढ़ने की उम्मीद है। अभी अगली दो तिमाहियों तक भारतीय अर्थव्यवस्था दबाव में रह सकती है। शेयर बाजार पर भी इसके मुताबिक ही असर होगा। हालाँकि अगर कर ढाँचे में बदलाव होता है और ब्याज दरें घटती हैं तो इससे कंपनियों का लाभ मार्जिन सुधर सकता है। डॉलर की कीमत अभी 68-70 रुपये के आसपास घूम रही है और सेंसेक्स अगर 25,000 के पास होता है, तो यह एफआईआई के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश करने का सुनहरा मौका होगा। इसलिए हमें उम्मीद है कि कैलेंडर वर्ष 2017 के उत्तरार्ध में बाजार पहली छमाही के मुकाबले अच्छा रहेगा। (शेयर मंथन, 02 जनवरी 2017)