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तो अब प्रधान (वित्त) मंत्री

राजीव रंजन झा

पिछले हफ्ते मुंबई पर भीषण आतंकवादी हमले का एक ऐसा भी नतीजा निकल कर आया है, जिसके बारे में लोगों ने पहले सोचा भी नहीं होगा। पलनिअप्पन चिदंबरम गृह मंत्रालय में विराजमान हो गये हैं और खुद प्रधानमंत्री अब वित्त मंत्री की भूमिका में भी आ गये हैं। चिदंबरम बतौर गृह मंत्री कैसे साबित होंगे, यह एक अलग प्रश्न है। लेकिन बाजार के सामने सबसे ज्यादा असमंजस में डालने वाला प्रश्न यह है कि चिदंबरम के जाने का शोक मनाया जाये या सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ में वित्त मंत्रालय के आने की खुशी मनायी जाये!


हालांकि बतौर वित्त मंत्री श्री चिदंबरम ने एक सक्षम प्रशासक की छवि बनायी, लेकिन फिर भी ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वे बाजार और उद्योग जगत के हर हिस्से को प्रिय रहे। उन्हें पूरी तरह से आलोचनाओं से परे भी नहीं कहा जा सकता। दूसरी ओर शायद ही कोई डॉ. मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री के कार्यकाल की आलोचना करता मिले, बस वामपंथी दलों को छोड़ कर।
लोगों के मन में अगर कोई बात खटक रही है, तो वह बस यही कि इस समय प्रधानमंत्री के लिए आतंकवाद से जूझना भी एक बड़ी चुनौती है और आर्थिक संकट से जूझना भी। एक अलग चुनौती यह है कि चंद महीनों में चुनाव होने हैं। इसलिए कई लोग यह बात कह रहे हैं कि एक पूर्णकालिक वित्त मंत्री का होना शायद बेहतर होता। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आतंकवाद के मसले से निपटने के लिए गृह मंत्रालय को मजबूत बनाने के मकसद से ही चिदंबरम को वहाँ भेजा गया है। इसलिए शायद उस ओर से अब प्रधानमंत्री पहले से कहीं ज्यादा निश्चिंत रह सकेंगे। दूसरी बात यह है कि चिदंबरम के विकल्प के रूप में ऐसा कौन-सा पूर्णकालिक वित्त मंत्री हो सकता था, जो वैश्विक मंदी के इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाये रखने में ज्यादा कारगर होता?
आपके मन में जो भी नाम सामने आयें, शायद उनसे कहीं ज्यादा कारगर तो अंशकालिक वित्त मंत्री के रूप में खुद प्रधानमंत्री ही हो सकते हैं। लोकसभा चुनाव की वजह से बजट पेश करने की जिम्मेदारी भी उनके सिर पर नहीं होगी और वे कागजी कार्यवाहियों के बदले अपना पूरा ध्यान केवल नीति-निर्धारण पर रख सकेंगे। इसलिए चिदंबरम के वित्त मंत्रालय से हटने के बाद अगर हमें डॉ. मनमोहन सिंह के रूप में अंशकालिक वित्त मंत्री के रूप में ही मिल रहे हैं, तो यह बुरा सौदा नहीं लगता!

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