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निवेश के कई विकल्पों में से एक फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) पर बैंक अच्छा ब्याज देते हैं। यही कारण है कि सुरक्षित निवेश की तलाश करने वाले लोग एफडी को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं। मगर एफडी पर मिलने वाला ब्याज कर मुक्त नहीं होता है और इस पर टीडीएस का भुगतान करना होता है। आइये, जानते हैं यह किस तरह कैलकुलेट होता है।
निवेशकों द्वारा कराई गयी एफडी पर बैंकों से ब्याज मिलता है और इसी ब्याज पर बैंक टीडीएस भी काटता है। बैंक इस टीडीएस को सरकार के खाते में जमा करता है। इसे निवेशक के इनकम टैक्स खाते में जोड़ दिया जाता है। टीडीएस की दरें पहले से तय होती हैं।
एफडी पर मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस की गणनी ब्याज राशि की अवधि और व्यक्ति के टैक्स स्लैब के अनुसार किया जाता है। अगर किसी व्यक्ति की करयोग्य आय 2.5 लाख रुपये सालाना से कम है तो उस पर टैक्स का भुगतान नहीं होता है। वहीं, संस्थान द्वारा स्रोत पर कर काट लिए जाने पर आईटीआर दाखिल करके टैक्स रिफंड के तौर पर उसे वापस प्राप्त किया जा सकता है।
मान लीजिये कि अगर किसी व्यक्ति को एफडी पर सालाना 40,000 रुपये या इससे कम ब्याज प्राप्त हुआ है। उस स्थिति में टीडीएस का भुगतान नहीं किया जाएगा। अगर एफडी पर मिलने वाला ब्याज 40,000 रुपये से ज्यादा हो जाता है, तब बैंक मिलने वाले ब्याज पर 10% टीडीएस काटता है। वहीं वरिष्ठ नागरिकों को 50,000 रुपये तक के ब्याज पर कोई टीडीएस का भुगतान नहीं करना पड़ता है।
क्या है टीडीएस?
टीडीएस (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) में सीधे आय के स्रोत पर कर लगाया जाता है। उदाहरण के लिये, बैंक से मिलने वाले ब्याज, किराये या सैलरी आदि मिलने पर स्रोत पर ही टैक्स का भुगतान करना होता है। ब्याज पर टैक्स काटने के बाद पहले सरकार के खाते में टीडीएस जमा किया जाता है, जो बाद में आयकर रिटर्न फाइल करने पर व्यक्ति के खाते में हस्तांतरित कर दिया जाता है।
(शेयर मंथन, 13 फरवरी 2025)
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