राजेश रपरिया
आवाज की रफ्तार से तीन गुणा तेज भागने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को निर्यात करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने इस साल की शुरुआत में ही हरी झंडी दे दी थी।
इससे मनमोहन सिंह सरकार बचती रही। मोदी की ताजा अमेरिका यात्रा के दौरान उन्होंने अमेरिकी संसद में दिये भाषण में भारत के ग्लोबल पावर बनने के इरादे को साफ कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि मजबूत और समृद्ध भारत अमेरिका के रणनीतिक फायदे में है।
इस यात्रा के दौरान यह सुनिश्चित हो गया है कि मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में भारत शामिल हो जायेगा। इसके अब तक 34 देश सदस्य हैं। इससे ब्रह्मोस को निर्यात करने के प्रयासों को पंख लग गये हैं। वैसे ब्रह्मोस निर्यात करने की पहल नयी नहीं है। साल 2011 से ही वियतनाम इस मिसाल को आयात करने का इच्छुक है।
रक्षा मंत्री मनोहर पार्रीकर के 5-6 जून को वियतनाम यात्रा के समय भी यह खबर आयी थी, पर तब इस खबर को कोई खास तवज्जो नहीं मिली। लेकिन 8 जून को समाचार एजेंसी रायटर्स ने एक खबर को एक सरकारी दस्तावेज के हवाले से जारी किया तो विश्व भर में इस खबर को प्रमुखता से लिया गया। देश में भी यह शीर्ष खबर बन गयी और अनेक समाचार चैनलों ने इसे प्रमुखता से दिखाया।
रायटर्स ने एक सरकारी नोट के हवाले से यह खबर दी है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस मिसाइल को बनाने वाली कंपनी ब्रह्रमोस एयरोस्पेस को पाँच देश - वियतनाम, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और चिली को बेचने के लिए प्रयासों में तेजी लाने को कहा। इसमें वियतनाम को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है।
इससे चीन का चिढ़ना स्वाभाविक है। दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना हक जताता है, पर वियतनाम और अमेरिका को चीन की यह दादागिरी स्वीकार नहीं है। चीन इसके अलावा पाकिस्तान और श्रीलंका में सामरिक महत्व के बुनियादी ढाँचे को भारी मदद दे कर भारत की घेराबंदी करने में जुटा है। भारत को लगता है कि वियतनाम को यह मिसाइल दे कर वह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सामरिक घेराबंदी को माकूल जवाब दे सकता है। सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका, जापान और वियतनाम से मजबूत संबंधों से ही चीन को दबाव में लाया जा सकता है।
ब्रह्मोस मिसाइल 290 किलोमीटर तक प्रहार कर सकती है। मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम के अनुसार 300 किलोमीटर से अधिक दूरी तक प्रहार करने वाली मिसाइलों को सदस्य देश निर्यात नहीं कर सकते हैं। यानी भारत इस शर्त को पूरा करता है। मालूम है कि भारत विश्व में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश है। लेकिन मिसाइलों का निर्यात करने से भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा भारत को हासिल हो सकती है। यह मिसाइल भारत और रूस के सहयोग से विकसित की गयी है। रूस को इस मिसाइल के निर्यात पर कोई आपत्ति नहीं है।
ब्रह्मोस के निर्यात की खबर से चीन पर दबाव बढ़ाने में भारत सफल होता नजर आ रहा है, क्योंकि न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप (एनएसजी) में भारत के शामिल होने पर चीन ने सबसे बड़ा अड़ंगा डाल रखा है। इस नये घटनाक्रम से चीन पर अब यह दबाव बढ़ गया है कि वह भारत के साथ पाकिस्तान को भी एनएसजी का सदस्य बनाने की जिद छोड़ दे। (शेयर मंथन, 10 जून 2016)