राजेश रपरिया
ब्रिटेन यूरोपीय संघ में रहेगा या नहीं, इसका फैसला आने में अब चंद दिन रह गये हैं। 23 जून को होने वाले जनमत संग्रह से इसका फैसला हो जायेगा।
यदि ब्रिटेन यूरोपीय संघ को छोड़ता है, जिसे ब्रेक्सिट (Brexit) कहा जा रहा है, तो दुनिया भर के वित्तीय बाजारों में फौरी तौर पर अस्थिरता बढ़ने की प्रबल आशंका है। वित्तीय विशेषज्ञ अरसे से इस कारक को बड़ा जोखिम बता रहे हैं। इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ना लाजिमी है।
यूरोप में सबसे ज्यादा विदेशी पूँजी निवेश ब्रिटेन में ही आता है। कुछ भारतीयों को यह जान कर हैरानी हो सकती है कि ब्रिटेन में भारत से होने वाला पूँजी निवेश लगातार बढ़ रहा है। ब्रिटेन में निवेश परियोजनाओं की संख्या के हिसाब से अमेरिका और फ्रांस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा निवेशक बन चुका है। रेस्तरां और भारतीय डॉक्टर पहले से ब्रिटेन की व्यवस्था के अभिन्न अंग बन चुके हैं। असल में भारतीय कंपनियाँ ब्रिटेन को यूरोप का प्रवेश द्वार मानती हैं। इसीलिए पिछले तीन सालों में वहाँ भारतीय कंपनियों की बाढ़ आ गयी है।
ब्रिटेन के यूरोपीय संघ छोड़ने से न केवल वहाँ भारतीय विदेशी पूँजी निवेश गड़बड़ा जायेगा, बल्कि मौजूदा भारतीय कंपनियों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि रोजगार के चलते वहाँ आव्रजन कानून कड़े कर दिये गये हैं। दरअसल ब्रिटेन में रोजगार एक बड़ी समस्या बन चुका है। इसी कारण ब्रिटेन का एक वर्ग यूरोपीय संघ छोड़ने का दबाव बना रहा है।
यूरोपीय संघ का सदस्य होने के नाते वहाँ सदस्य देशों के श्रमिकों की आवाजाही पर कोई रोक नहीं है। इस कारण यूरोपीय संघ के पूर्वी यूरोपीय निर्धन देश, जैसे पोलैंड, रुमानिया, लिथुआनिया आदि के तकरीबन 12 लाख श्रमिक ब्रिटेन में डेरा डाले हुए हैं, जो ब्रितानी लोगों की बेचैनी का सबसे बड़ा कारण हैं।
असल में यूरोपीय संघ को लेकर शुरू से ही ब्रिटेन दुविधाग्रस्त रहा है। वह यूरोपीय मुक्त व्यापार का फायदा उठाना चाहता है, लेकिन नीति निर्धारण में उसको अपनी संप्रभुता खोना मंजूर नहीं है। पर ब्रिटेन के आगे यह भी खतरा मँडरा रहा है कि उसके यूरोपीय संघ छोड़ने से यूनाइटेड किंगडम टूट सकता है। स्कॉटलैंड और आयरलैंड में ब्रिटेन से अलग होने की माँग फिर मुखर हो सकती है।
ब्रिटेन के यूरोपीय संघ छोड़ने से इसका सीधा असर यूरो और पाउंड पर पड़ेगा। आशंका है कि ऐसी स्थिति में इनकी कीमतों में अस्थिरता बढ़ेगी और फौरी तौर पर ये मुद्राएँ अपनी मजबूती खो सकती हैं। यह आशंका भी है कि ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की विकास दरों पर बुरा असर पड़ेगा, जो पहले ही काफी कमजोर बनी हुई हैं।
इस वित्तीय अस्थिरता का भारत पर असर पड़ना निश्चित है। भारत के आयात-निर्यात में इनकी अहम हिस्सेदारी है। माना जा रहा है कि ऐसे में डॉलर मजबूत होगा। वैसे भी डॉलर के सापेक्ष रुपया कमजोर बना हुआ है। वैश्विक वित्तीय जानकारों का मानना है कि इससे सोने की कीमत भी फौरी आने उछाल से 1400 डॉलर प्रति औंस तक जा सकती है। इससे भारत का स्वर्ण आयात बिल बढ़ना स्वाभाविक है। (शेयर मंथन, 11 जून 2016)