रिलायंस म्यूचुअल फंड (Reliance Mutual Fund) ने 17 जनवरी से सेंट्रल पब्लिक सेक्टर इंटप्राइजेज एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (CPSE ETF) के फर्दर फंड ऑफर (FFO) की शुरुआत की है।
20 जनवरी तक खुला रहने वाला यह एफएफओ 4,500 करोड़ रुपये का है। इसके अलावा, अधिक आवेदन (ओवरसब्सक्रिप्शन) होने की स्थिति में इसका आकार 6,000 करोड़ रुपये तक किया जा सकता है। इस एफएफओ में सभी वर्गों में 5% की छूट दी जायेगी। जानकारों ने इस एफएफओ में निवेश करने की सलाह दी है।
वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार की वैसे तो यह राय है कि आम तौर पर लोगों को सरकारी कंपनियों (पीएसयू) के शेयरों में निवेश नहीं करना चाहिए। लेकिन वे कहते हैं कि यह ईटीएफ चुने हुए 10 पीएसयू शेयरों को लेकर बनाया गया है और वे शेयर इस समय काफी सस्ते भी हैं। साथ ही ईटीएफ के रास्ते से निवेश करने पर विविधीकरण भी हो जा रहा है। लिहाजा वे मानते हैं कि इस ईटीएफ में निवेश किया जा सकता है।
हालाँकि धीरेंद्र कहते हैं कि किसी निवेशक को अकेले इस फंड में ही निवेश नहीं करना चाहिए, लेकिन पहले से अगर आपका निवेश 2-4 फंडों में है तो यह आपका अगला फंड हो सकता है। इस फंड से एक बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रखनी चाहिए, क्योंकि इस फंड में शामिल शेयर अभी तुलनात्मक रूप से सस्ते हैं और इन सारी कंपनियों में दम है। खतरा केवल यही है कि ये सरकारी कंपनियाँ हैं!
धीरेंद्र आगे ध्यान दिलाते हैं कि इस एफएफओ में 5% की छूट भी है। इसलिए उनका मानना है कि निवेशकों को इसमें निवेश से अच्छा फायदा हो सकता है, अगर वे 2-3 साल की अवधि के लिए निवेश करें। इस फंड में निवेश करके निफ्टी से बेहतर प्रतिफल (रिटर्न) हासिल करना कोई बहुत बड़ी अपेक्षा नहीं होगी, क्योंकि अधिकतर फंड 3 साल की अवधि में निफ्टी से बेहतर प्रदर्शन कर लेते हैं। हालाँकि आम तौर पर पीएसयू शेयरों का प्रदर्शन तुलनात्मक रूप से धीमा रहने की आशंका निवेशकों को रहती है। लेकिन धीरेंद्र कहते हैं कि इस एफएफओ को लाने का समय थोड़ा आकर्षक है, क्योंकि इससे संबंधित शेयर अपने निचले स्तरों पर हैं।
बजाज कैपिटल के सीईओ अनिल चोपड़ा भी सीपीएसई ईटीएफ के एफएफओ को निवेशकों के लिए एक बेहतर मौका बता रहे हैं। उनका कहना है कि इसमें सबसे अच्छी चुनिंदा पीएसयू कंपनियों में 5% की छूट के साथ निवेश करने का विकल्प मिल रहा है। इसे हर निवेशक को अपने पोर्टफोलिओ में मध्यम से लंबी अवधि या 5-7 साल के लिए शामिल करना चाहिए।
यह ईटीएफ एक तरह से सरकार के लिए विनिवेश का ही जरिया है, क्योंकि इसमें पीएसयू कंपनियों में सरकार का हिस्सेदारी फंड को बेची जा रही है और उसकी यूनिटें फंड के निवेशकों को मिल रही हैं। अनिल चोपड़ा कहते हैं कि यह सरकार के लिए आसान तरीका है और इसकी लागत सस्ती पड़ती है। विनिवेश की सामान्य प्रक्रिया महँगी है और उसमें काफी तैयारी करके योजना बनानी पड़ती है, जैसे कि मसौदा दस्तावेज (प्रॉस्पेक्टस) तैयार करना वगैरह। ईटीएफ संरचना का लाभ यही है कि इसमें लागत बहुत ही कम बैठती है। लिहाजा सरकार के नजरिये से यह अच्छा है। साथ ही निवेशक के नजरिये से भी यह अच्छा है।
हालाँकि एक फंड वितरक बताते हैं कि इसमें वितरकों को ज्यादा प्रोत्साहन नहीं है, इसी वजह से ब्रोकर, आईएफए या अन्य मध्यवर्ती (इंटरमीडियरी) इसे बेचने में बढ़-चढ़ कर भाग नहीं ले रहे हैं। वे इसकी तुलना पीपीएफ से करते हैं, जिसमें अब सरकार ने कमीशन शून्य कर दिया है, मगर लोग फिर भी लोग खुद ही उसमें निवेश करते हैं। (शेयर मंथन, 17 जनवरी 2017)
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