
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) के 10 साल पूरे हो गये हैं। इस मौके पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट का कहना है कि इस योजना ने आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों में वित्तीय समावेश को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
रिपोर्ट के अनुसार, जिन राज्यों में वित्तीय समावेश का स्तर पहले से कम था, वहाँ मुद्रा योजना के तहत ऋण वितरण का प्रभाव अधिक देखने को मिला है। खास तौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और पूर्वोत्तर जैसे क्षेत्रों में मुद्रा ऋण की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
कमजोर राज्यों में बढ़ा मुद्रा ऋण का वितरण
रिपोर्ट के अनुसार, विकसित क्षेत्रों को मिलने वाले मुद्रा फंड का अनुपात घटा है, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर राज्यों में इसका वितरण बढ़ा है। बिहार में मुद्रा वितरण का हिस्सा 5.67% से बढ़कर 10.97% हो गया है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में यह 9.27% से बढ़कर 11.30% पर और ओडिशा में 4.24% से बढ़कर 4.51% पर पहुँच गया है। पूर्वोत्तरी राज्यों में भी इसकी हिस्सेदारी बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार, यह बदलाव बताता है कि योजना से सकारात्मक संरचनात्मक परिवर्तन हुआ है, जो क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का जरिया
एसबीआई रिसर्च ने यह भी बताया कि जिन क्षेत्रों में मुद्रा वितरण में महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक है, वहाँ महिलाओं की अगुवाई वाले छोटे व मंझोले उद्यमों (एमएसएमई) में रोजगार सृजन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। योजना के तहत 68% खाताधारक महिलाएँ हैं। पिछले नौ सालों (वित्त वर्ष 2015-16 से वित्त वर्ष 2024-25 तक) में प्रति महिला मुद्रा ऋण की राशि 13% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) के साथ बढ़कर 62,679 रुपये तक पहुँच गयी है। साथ ही, प्रति महिला जमा राशि में 14% की सीएजीआर के साथ वृद्धि हुई है, जो अब 95,269 रुपये तक पहुँच गयी है।
हाशिए पर रहने वाले समुदायों को लाभ
मुद्रा योजना ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों को भी सशक्त बनाया है। लगभग 50% मुद्रा खाते अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के व्यक्तियों के हैं, जबकि 11% लाभार्थी अल्पसंख्यक समुदायों से हैं। बिहार में सबसे अधिक 4.2 करोड़ महिला उद्यमी खाते हैं, इसके बाद तमिलनाडु (4 करोड़) और पश्चिम बंगाल (3.7 करोड़) का स्थान है।
क्या है प्रधानमंत्री मुद्रा योजना?
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को 2015 में माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट ऐंड रीफाइनेंसिंग एजेंसी (मुद्रा) के तहत शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य छोटे उद्यमों को 20 लाख रुपये तक का बिना गारंटी वाला संस्थागत ऋण प्रदान करना है। यह ऋण अधिसूचित वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी), और सूक्ष्म ऋण संस्थानों (एमएफआई) के माध्यम से वितरित किये जाते हैं। योजना के तहत तीन श्रेणियाँ हैं। पहली श्रेणी शिशु में 50,000 रुपये तक, दूसरी श्रेणी किशोर में 50,001 से 5 लाख रुपये तक और तीसरी श्रेणी तरुण में 5 लाख से 20 लाख रुपये तक के ऋण दिये जाते हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि पिछले एक दशक में 52 करोड़ से अधिक मुद्रा खाते खोले गये हैं, जिनमें से अधिकांश शिशु श्रेणी के तहत हैं। हालाँकि, शिशु ऋण की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2016 में 93% से घटकर वित्त वर्ष 2025 में 51.7% रह गयी है। इस दौरान औसत ऋण का आकार 38,000 रुपये से बढ़कर 1.02 लाख रुपये हो गया है।
(शेयर मंथन, 13 अप्रैल 2025)
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