राजीव रंजन झा : आम तौर पर बाजार के किसी जानकार से बाजार की अगली चाल के बारे में उनकी राय पूछने के बाद मेरा अगला सवाल यह होता है कि बाजार अगर इसका उल्टा करने वाला हो तो उसके संकेत क्या होंगे? यह मनोवैज्ञानिक रूप से जरा मुश्किल सवाल होता है।
आम तौर पर हम जिस तरह से सोच रहे होते हैं, उसके गलत हो जाने की संभावना को देखना आसान नहीं है। हालाँकि बाजार विश्लेषकों को इस मुश्किल सवाल से जूझने की आदत हो जाती है। यह उनके लिए रोजमर्रा की बात होती है। आखिर एक तकनीकी विश्लेषक के लिए घाटा काटने का स्तर (स्टॉप लॉस) क्या है? यह इस बात को स्वीकार करना है कि बाजार वास्तव में जो करने वाला था, उसे मैं ठीक से समझ नहीं पाया। यह इस बात को स्वीकार करना है कि मैंने जैसा समझा था, वास्तव में बाजार उससे उल्टा करने लगा है।
घाटा काटने के स्तर की इस व्याख्या को सारे विश्लेषक मानते हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारा स्वाभाविक मनोविज्ञान अपना असर नहीं छोड़ता। इसीलिए आम तौर पर जब विश्लेषक बाजार की दिशा के बारे में एक राय बना लेते हैं तो उससे अलग कुछ होने की संभावना को देख पाना उनके लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है। अचानक कोई बड़ी घटना (जैसे मई 2009 के चुनावी नतीजे, अमेरिका में मात्रात्मक ढील या क्वांटिटेटिव ईजिंग वगैरह) उन्हें अपना नजरिया बदलने का बहाना दे दे तो अलग बात है। वास्तव में यह हमारा व्यक्तिगत अहं होता है, जो हमें यह स्वीकार करने नहीं देता कि बाजार हमारी समझ से विपरीत जा कर कुछ कर रहा है।
यह स्थिति केवल विश्लेषकों की नहीं होती, एक निवेशक भी इसी स्थिति से गुजरता है। कई बार आप मेरे लेखों में ऐसा महसूस कर सकते हैं कि बाजार के स्पष्ट रुझान को देख पाने में दृष्टिभ्रम हो रहा हो। ताजा उदाहरण इन्फोसिस के बारे में तिमाही नतीजों से पहले के मेरे आकलन का है, जिसमें मैंने बाजार की आम धारणा के विपरीत सकारात्मक उम्मीदें लगायीं, लेकिन वे उम्मीदें सिर के बल गिर गयीं।
साल 2008 की दीवाली से 2009 की होली के बीच बाजार के कई जानकारों ने और अधिक गिरावट का कुछ ज्यादा ही मजबूत विश्वास पाल लिया था। ऐसे एक डॉन से तो मैंने लाइव कार्यक्रम के दौरान पूछा था कि क्या आपने क्रिस्टल बॉल पर भविष्य देख लिया है, जिससे आपका यह नजरिया इतना पक्का बन गया है? लेकिन उन्होंने दावा किया कि राजीव जी, आप देख लेना सेंसेक्स 5000 पर जरूर आयेगा। लेकिन वे ऐसा दावा कर रहे थे, उसी समय सेंसेक्स अपनी तलहटी बना कर वापस पलटने की तैयारी कर रहा था।
हमें यह समझना चाहिए कि बाजार बेहद गतिशील है और इसकी दिशा बदलती रहती है। इस पर असर डालने वाले पहलू बदलते रहते हैं, उन पहलुओं के असर की मात्रा बदलती रहती है। ऐसे बाजार के बारे में हमारे विचार कैसे एक बिंदु पर ठहर सकते हैं? बाजार हमारी सोच के हिसाब से नहीं चलेगा। बाजार कैसा चलने वाला है, यह देख-समझ कर हमें ही अपनी सोच बदलने की जरूरत पड़ती है। कभी-कभी हर दिन हमारी सोच में फेरबदल हो सकता है। एक तकनीकी विश्लेषक ने अपनी सोच के बारे में कहा कि टेलीविजन के घंटे भर के कार्यक्रम के दौरान ही तीन बार मेरी सोच बदल सकती है। अगर गतिशील बाजार में हम अपनी सोच को गतिशील नहीं रखेंगे तो नुकसान हमें ही होगा। बाजार तो अपनी चाल से चलता रहेगा! Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 17 जनवरी 2013)
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