शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) के गवर्नर बनने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने लगातार दूसरी मौद्रिक नीति समीक्षा में अपनी ब्याज दरों में कटौती कर दी है।
4 अप्रैल को नये वित्त वर्ष की पहली द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में आरबीआई ने रेपो दर में 0.25% अंक की कटौती की। अब रेपो दर घट कर 6.0% पर आ गयी है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में 6:4 के बहुमत से यह फैसला किया गया। इस फैसले का उद्देश्य निजी निवेश और आर्थिक वृद्धि में तेजी लाना है।
रेपो दर वह दर है जिस पर विभिन्न बैंक आरबीआई से बहुत छोटी अवधि के ऋण लेते हैं। रिवर्स रेपो दर भी अब घटा कर 5.75% कर दिया गया है। इसी तरह मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) को भी घटा कर 6.25% कर दिया गया है। हालाँकि सीआरआर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया, मगर तरलता (लिक्विडिटी) यानी नकदी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए एसएलआर में ढील दी गयी है।
इससे पहले फरवरी में शक्तिकांत दास के गवर्नर पद पर आने के कुछ ही समय बाद हुई मौद्रिक नीति समीक्षा में भी रेपो दर को 0.25% घटाया गया था। उस समय आरबीआई ने अपनी मौद्रिक नीति का रुख भी सख्त से बदल कर उदासीन कर दिया था। इस बार की समीक्षा में इसने अपना रुख उदासीन बनाये रखा है। इससे यह संकेत मिलता है कि निकट भविष्य में आरबीआई की नीतिगत ब्याज दरों में स्थिरता बनी रह सकती है।
आरबीआई ने अप्रैल की मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा है कि घरेलू अर्थव्यवस्था के सामने कुछ बाधाएँ आ रही हैं, खास कर वैश्विक मोर्चे पर। इसलिए यह जरूरत है कि घरेलू वृद्धि को मजबूत करने के लिए निजी निवेश में तेजी लायी जाये, जो अब तक बहुत सुस्त रही है। दरअसल वृद्धि को लेकर चिंता और दूसरी तरफ महँगाई दर नियंत्रण में रहने के कारण आरबीआई को ब्याज दरों में कटौती की जरूरत और गुंजाइश नजर आयी है।
आरबीआई ने कहा है कि इस वित्त वर्ष (2019-20) के अंत तक खुदरा महँगाई दर बढ़ कर 3.8% पर पहुँचने की संभावना लग रही है। फरवरी 2019 में खुदरा महँगाई दर 2.57% रही है, जो आरबीआई के निर्धारित लक्ष्य 4% से ठीक-ठाक नीचे है। वित्त वर्ष 2020-21 के लिए आरबीआई ने महँगाई दर 3.8-4.1% के दायरे में रहने का अनुमान जताया है। आरबीआई खास कर खाद्य महँगाई को लेकर सतर्क है। इसने कहा है कि अतीत में दिखे उतार-चढ़ावों के मद्देनजर खाद्य महँगाई फिर से बढ़ सकने की संभावना ऊपर की ओर एक महत्वपूर्ण जोखिम है, खास कर इसलिए कि इस साल एल नीनो की कुछ संभावना रहने की खबरें आयी हैं और इसका बुरा असर मॉनसून पर हो सकता है।
आरबीआई ने 2019-20 में विकास दर 7.2% रहने की आशा जतायी है, जबकि फरवरी की नीतिगत समीक्षा में इसने 7.4% विकास दर का अनुमान रखा था। इस तरह वित्त वर्ष 2019-20 के लिए आरबीआई की उम्मीदें कुछ हल्की हो गयी हैं। आरबीआई ने इसका कारण यह बताया है कि घरेलू निवेश गतिविधियाँ कमजोर होने के कुछ संकेत मिले हैं, जिसकी झलक पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन एवं आयात में धीमापन आने से मिलती है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर नीचे आने से भारत के निर्यात पर असर हो सकता है। आरबीआई ने 2018-19 के लिए सीएसओ की ओर से बीती फरवरी में जारी दूसरे अग्रिम अनुमानों का भी हवाला दिया है, जिसमें 2018-19 की विकास दर के अनुमान को 7.2% से घटा कर 7.0% कर दिया गया था। (शेयर मंथन, 04 अप्रैल 2019)