रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (crisil) ने भारतीय अर्थव्यवस्था (economy) के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। अपनी ताजा रिपोर्ट में इसने कहा है कि भारत उदारीकरण (liberalisation) के बाद से अपनी पहली मंदी (recession) झेलने जा रहा है।
स्वतंत्रता के बाद से यह चौथी मंदी होगी, और संभवतः अब तक की सबसे बुरी मंदी। क्रिसिल ने वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 5% गिरावट आने की आशंका जतायी है। मतलब यह कि हमारी जीडीपी (GDP) बढ़ने की दर नहीं कम होने जा रही, बल्कि जीडीपी का आँकड़ा ही 5% घटने जा रहा है। स्पष्ट है कि भारत की जीडीपी में यह गिरावट कोरोना वायरस (coronavirus) या कोविड-19 महामारी के कारण आने वाली है। मगर इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कही गयी है कि अगले तीन वित्त वर्षों से पहले हम इस महामारी से पहले जैसी विकास दर नहीं पा सकेंगे। कारण यह है कि वास्तविक अर्थों में जीडीपी के लगभग 10% का नुकसान हमेशा के लिए हो जायेगा। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2020) में जीडीपी में 25% की कमी आने का अंदेशा जताया गया है।
इससे पहले 28 अप्रैल को क्रिसिल ने 2020-21 में जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को 3.5% से घटा कर 1.8% किया था। मगर ताजा अनुमान सीधे -5% विकास दर का है। क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट कहती है कि इस वित्त वर्ष में जहाँ गैर-कृषि जीडीपी 6% घट जायेगी, वहीं कृषि जीडीपी में 2.5% वृद्धि होगी, जिससे कुछ सहारा मिलेगा।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इससे पहले बीते 69 वर्षों में भारत ने केवल तीन बार मंदी की स्थिति देखी है - 1957-58, 1965-66 और 1979-80 में। इन तीनों अवसरों पर मंदी का कारण बना था मॉनसून, जिसने कृषि को बुरी तरह प्रभावित किया था। उस समय तक भारतीय जीडीपी में कृषि का योगदान काफी बड़ा था। मगर इस बार कृषि ही अर्थव्यवस्था का रक्षक बनने जा रही है, लेकिन उसका जीडीपी में योगदान अब सिकुड़ कर 15% पर आ चुका है।
कृषि की विकास दर अपने औसत के आसपास रहने का अनुमान क्रिसिल ने दो कारणों से लगाया है। एक तो यह कि इस साल मॉनसून सामान्य रहने की आशा है। दूसरे, महामारी के चलते लगाये गये लॉकडाउन ने गैर-कृषि क्षेत्रों को ही सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, कृषि को नहीं। (शेयर मंथन, 27 मई 2020)