शेयर मंथन में खोजें

वैश्विक कारणों से है एफआईआई बिकवाली : रामदेव अग्रवाल (Raamdeo Agrawal)

मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज (Motilal Oswal Financial Services) के संयुक्त प्रबंध निदेशक रामदेव अग्रवाल (Raamdeo Agrawal) का मानना है कि बाजार अपने संकटकालीन मूल्यांकन के करीब आ चुका है। बाजार में मौजूदा एफआईआई बिकवाली को भी वे ज्यादा बड़ी नहीं मानते।

उनके मुताबिक इस बिकवाली के पीछे वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़े पहलू हैं और तमाम उभरते बाजारों (इमर्जिंग मार्केट्स) से निवेश निकालने की रणनीति के तहत ही भारत से भी पैसा बाहर जा रहा है। प्रस्तुत हैं रामदेव अग्रवाल से शेयर मंथन के संपादक राजीव रंजन झा की बातचीत के कुछ खास अंश। 

राजीव रंजन झा : अभी बाजार की दिशा किधर लग रही है? क्या हमने एक आधार बना लिया है या अभी और नीचे जाने के आसार हैं?
रामदेव अग्रवाल : बाजार की भविष्यवाणी करने पर मेरा कोई भरोसा नहीं है। पर मुझे इतना पता है कि इन भावों पर बाजार पूँजी (मार्केट कैप) और जीडीपी का अनुपात लगभग 60% पर है, जबकि 2007-2008 के संकट के बाद भी यह अनुपात 50-55% तक ही गया था। तो आप बहुत दूर नहीं है संकट-काल वाले मूल्यांकन से। क्या यह और 10% नीचे भी गिर सकता है? अगर ऐसा हो तो कोई रोक नहीं सकता। मुझे नहीं दिख रहा कि भारतीय लोग शेयरों को खरीदने के लिए दौड़े आ रहे हैं। विदेशी निवेशक कुछ कारणों से वापस लौट रहे हैं। तीन सालों तक लगातार खरीदारी के बाद वे अब बिकवाली कर रहे हैं।
राजीव रंजन झा : उनके वापस जाने के पीछे आपको कुछ घरेलू कारण भी दिखते हैं या केवल वैश्विक कारण हैं?
रामदेव अग्रवाल : विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़े कारण ही हैं। वे तब आये जब हम उसके लायक नहीं थे।
राजीव रंजन झा : कुछ लोग कह रहे हैं कि मोदी सरकार से जो उम्मीदें थीं, वो कम हो गयी हैं और यह भी एक कारण है।
रामदेव अग्रवाल : मोदी सरकार के पीछे पैसा आना होता तो 200 अरब डॉलर आया होता, इतना अच्छा काम किया मोदी सरकार ने। इसका उससे कोई लेना-देना नहीं है। उसके पिछले तीन साल तक तो नीतिगत अड़चन (पॉलिसी पैरालिसिस) थी ना, तो उस समय 75 अरब डॉलर क्यों आये? क्या मनमोहन सिंह का चेहरा देख के आये? साफ तौर पर यह विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ा है। पेंशन फंड, सोवरेन फंड वगैरह खरबों डॉलर सँभालते हैं।
जाहिर तौर पर यह निवेश विश्व अर्थव्यवस्था के आधार पर सँभाला जाता है। इसके लिए वे अपनी एक आवंटन नीति बनाते हैं, जिसकी प्रकृति वैश्विक होती है। उभरते बाजार (इमर्जिंग मार्केट्स) सामान्य तौर पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, क्योंकि कमोडिटी के भाव काफी गिर गये हैं। इसलिए मोटे तौर पर पिछले एक साल में निवेश उभरते बाजारों से बाहर निकल कर विकसित बाजारों में गया है। इसी वजह से भारतीय बाजार से भी निवेश बाहर निकला है। उसमें भी कितना निकला? पिछले तीन-चार सालों में वे 117 अरब डॉलर लेकर आये और उसमें से मुश्किल से 4-5 अरब डॉलर बाहर गया है। उन्हें इतना वापस ले जाने का तो अधिकार है। यह हमारे बाजार की गहराई और तरलता (लिक्विडिटी) की बात है कि हम उनकी यह बिकवाली झेल सकें और उसके बाद भी आगे बढ़ सकें।
(शेयर मंथन, 28 फरवरी 2016)

कंपनियों की सुर्खियाँ

निवेश मंथन पत्रिका

देश मंथन के आलेख

विश्व के प्रमुख सूचकांक

निवेश मंथन : ग्राहक बनें

शेयर मंथन पर तलाश करें।

Subscribe to Share Manthan

It's so easy to subscribe our daily FREE Hindi e-Magazine on stock market "Share Manthan"