आर. के. गुप्ता
एमडी, टॉरस म्यूचुअल फंड
बाजार का इस समय जो व्यवहार है, वह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि इसमें खुदरा निवेशक बाहर निकल रहा है।
बाजार जो ऊपर जा रहा है, वह विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के निवेश की वजह से है। एफआईआई निवेश मार्च से काफी बढ़ गया है। यह संकेत देता है कि विदेशी निवेशकों को मौजूदा सरकार के ही वापस सत्ता में लौटने का भरोसा है। घरेलू संस्थाओं का व्यवहार काफी हद तक इस पर निर्भर हो जाता है कि खुदरा निवेशकों का दृष्टिकोण क्या है। अगर म्यूचुअल फंडों की इक्विटी योजनाओं में काफी निकासी (रिडेंप्शन) आ जाती है, तो घरेलू म्यूचुअल फंडों का अपना नजरिया चाहे जो भी हो, उन्हें बाजार में बिकवाली करके वह पैसा निवेशकों को लौटाना ही होगा। अगर नया निवेश आता है, तो निश्चित रूप से इक्विटी म्यूचुअल फंड बाजार में खरीदारी करेंगे। इसलिए म्यूचुअल फंडों का अपना नजरिया क्या है, यह तय कर पाना बहुत मुश्किल है।
अभी हर आदमी यह सोच रहा है कि एक स्थिर सरकार आनी चाहिए। अगर स्थिर सरकार आयेगी तो मुझे नहीं लगता कि बाजार इससे कोई ज्यादा तेजी तुरंत आ जायेगी। हमारा डर सबसे ज्यादा यह है कि अगर कहीं त्रिशंकु लोकसभा बन गयी तो सूचकांक न जाने किस स्तर पर जायेगा। इसीलिए जैसे ही सेंसेक्स 39,000 के ऊपर पहुँचा तो एकदम मुनाफावसूली आ गयी। वहीं 500-600 अंक नीचे आने पर नयी खरीदारी भी आ रही है। इसलिए यह एक कारोबारी बाजार बन गया है। लोग इसमें कारोबारी सौदे ज्यादा कर रहे हैं। मोटे तौर पर जब तक चुनावी नतीजे नहीं आयेंगे, तब तक बाजार का व्यवहार ऐसा ही रहेगा।
त्रिशंकु लोकसभा बनने पर बाजार कहाँ तक गिर सकता है, इस पर सबकी राय अलग-अलग हो सकती है। हमारे तकनीकी चार्ट पर जो संकेत आ रहे हैं, वे करीब 33,000 तक का स्तर दिखा रहे हैं। लेकिन बाजार के कुछ पुराने दिग्गज 28,000 तक की भी बातें कर रहे हैं, हालाँकि मैं इससे सहमत नहीं हूँ। सेंसेक्स 28,000 तक फिसलने का मतलब करीब 25% की गिरावट होगी, जो मुझे नहीं लगता। लेकिन अगर त्रिशंकु लोकसभा बनेगी तो गिरावट जरूर आयेगी। करीब 5000-6000 अंक तक की गिरावट संभव लगती है।
अभी बाजार में जो अनिश्चितताएँ हैं, उनके चलते मेरा मानना है कि बाजार में हर बढ़त पर अपना निवेश कुछ हल्का कर लेना चाहिए। नकदी हाथ में रखनी चाहिए, आगे मौका जरूर मिलेगा। बाजार एक दिशा में कभी नहीं चलता। अगर यह पाँच-छह दिन ऊपर जायेगा तो फिर नीचे आना ही है। अगर त्रिशंकु लोकसभा नहीं बने, तो भी आपको अवसर जरूर मिलेंगे। कारण यह है कि कंपनियों के कारोबारी नतीजे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। आज निफ्टी और सेंसेक्स दोनों का पीई (प्राइस-अर्निंग) मूल्यांकन अनुपात सारे उभरते बाजारों (इमर्जिंग मार्केट) में सबसे ऊँचे स्तरों में से एक पर है। यह एक प्रमुख चिंता है कि अगर कंपनियों के जनवरी-मार्च के तिमाही नतीजे या सालाना नतीजे खराब रहते हैं तो उसके चलते मई-जून में गिरावट आने का डर बाजार में बना हुआ है। (शेयर मंथन, 17 अप्रैल 2019)
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