अमिताभ चक्रवर्ती, प्रेसिडेंट (इक्विटी) रेलिगेयर सिक्योरिटीज
साल 2008 में शेयर बाजार इकतरफा ही रहा है। जनवरी में सेंसेक्स 21,000 से भी ऊपर था और आज की तारीख में यह वहाँ से करीब 55 फीसदी नुकसान पर है। पीई मूल्यांकन लगभग 10 पर आ गया है, जो मंदी के बाजार का बिल्कुल निचला स्तर है। अमेरिका के सबप्राइम संकट की वजह से नकदी की जबरदस्त कमी झेलनी पड़ा, जिसके चलते कई वित्तीय संस्थाएँ टूट गयीं। तमाम देशों ने इस स्थिति का सामना करने क लिए काफी मौद्रिक और नीतिगत उपाय किये हैं। अमेरिका में डी-लेवरेजिंग की वजह से वैश्विक स्तर पर माँग में कमी आयी है। इसके कारण चीन में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र पर बुरा असर पड़ा है।
उभरते देशों के लिए साल 2008 के पहले हिस्से में परेशानी का कारण रही तेल की ऊँची कीमतें अब फिसल कर 40 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गयी हैं। पूरी वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में नकदी का संकट है और भारत सहित विभिन्न उभरते बाजारों से करीब 14 अरब डॉलर की पूँजी निकाली जा चुकी है। घरेलू फंडों पर निवेशकों की ओर से पैसा निकाले जाने का दबाव है, जिससे बिकवाली और बढ़ी है। अब यह स्वीकार कर लिया गया है कि साल 2006 के आखिर से ही अमेरिका मंदी के दौर में है। कम ही लोग इस सूनामी का पहले से अंदाजा लगा सके थे। अमेरिका और वित्तीय जगत के अधिकांश लोग स्थिति की गंभीरता को नकार रहे थे।
सबसे बड़ा सबक
बाजार के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण सबक यही है कि निवेशकों को किसी भी कंपनी को वास्तव में हो रही आमदनी पर ध्यान देना चाहिए, न कि मीडिया में उसको लेकर मची आपाधापी पर। मेरा मानना है कि वास्तविक आमदनी को देखे बिना केवल लैंड-बैंक की कहानी के आधार पर रियल एस्टेट क्षेत्र के बारे में अति-उत्साह का जो बुलबुला बनाया गया, वही 2008 के सबसे बड़े सबकों में से एक है।
कैसा होगा नया साल
2009 के शुरुआती 6 महीनों में बाजार जमने (कंसॉलिडेशन) की कोशिश करेंगे, क्योंकि चुनावी साल होने के कारण अनिश्चितता रहेगी। पहले 6 महीनों के लिए सेंसेक्स का दायरा 8,500-12,500 के बीच रहने की उम्मीद है। चुनावों के बाद यदि परिस्थितियाँ अनुकूल रहीं (या तो कांग्रेस या बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार आये, तीसरा मोर्चा सत्ता का दावेदार बन कर न उभरे), तो सेंसेक्स तेजी के साथ 16,000 के स्तर की ओर बढ़ सकता है। भारत की विकास दर 5.5-6% रहने की संभावना है, जो निचले मूल्यांकनों से एक प्रीमियम की ओर बढ़ने को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त होगी। हालांकि हमारे बाजार एक कारोबारी दायरे में बने रहेंगे, लेकिन चौतरफा मंदी के इस बाजार में अगले 3 महीनों के दौरान एक चक्रीय तेजी रहने की उम्मीद है।
कैसी रहेगी अर्थव्यवस्था
हमारा मानना है कि साल 2009 के मध्य तक महँगाई दर घट कर करीब 1% पर आ सकती है। इस समय कच्चे तेल की 40 डॉलर प्रति बैरल की मौजूदा कीमत को देख कर कहा जा सकता है कि इससे हमारे सरकारी खजाने का घाटा काफी कम हो जायेगा। विश्व की जीडीपी में भारत के महत्वपूर्ण योगदान रहने की उम्मीद के चलते हमारा मानना है कि साल 2009 में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की ओर से अच्छा खासा निवेश भारत की ओर आकर्षित होगा। डॉलर कैरी ट्रेड की संभावना काफी अधिक होगी, क्योंकि डॉलर में वास्तविक ब्याज दर नकारात्मक रहेगी और इसकी वजह से गैर-डॉलर परिसंपत्तियों में निवेश बढ़ेगा। भारत में वित्तीय और मौद्रिक मोर्चे पर सरकारी राहत योजनाओं और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में एक और कटौती से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में काफी मदद मिलेगी।
इस समय बड़ी संख्या में दिग्गज और मँझोली कंपनियों के शेयर काफी सस्ते मूल्यांकनों पर उपलब्ध हैं। ऐसे में हमारी सलाह यही है कि निवेशक लंबी अवधि का लक्ष्य बना कर बुनियादी तौर पर मजबूत कंपनियों में निवेश करना शुरू करें। ज्यादातर नकारात्मक बातों का असर पहले ही शेयर भावों पर आ चुका है। हमारा मानना है कि साल 2008 के मुकाबले साल 2009 काफी बेहतर रहने की उम्मीद है। इसलिए अब रक्षात्मक क्षेत्रों में निवेश कम करना चाहिए और कारोबारी चक्र वाले ऐसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना चाहिए, जिनका जोर घरेलू बाजारों पर अधिक हो।
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