बाजार तो मुझे ठीक ही लगता है, लेकिन चुनावी नतीजे कैसे आयेंगे इसको लेकर जरा चिंता होती है। अगर एनडीए को करीब ढाई सौ सीटें आ जायें तो यह काफी अच्छी संख्या होगी।
- मौजूदा एनडीए को 230-250 सीटें मिलें तो आने वाले कई साल अच्छे
- नतीजों के बाद उछाल, उसके बाद ठहराव की संभावना
- मोदी पीएम नहीं बने तो बाजार 10-20% गिर जायेगा
- एनडीए का 200-210 सीटों पर अटकना बाजार पसंद नहीं करेगा
- हमने वित्तीय क्षेत्र के शेयरों में नयी खरीदारी की
- बुनियादी ढाँचा के शेयर अभी पसंद नहीं
- अगले चार-पाँच सालों का नया आर्थिक चक्र शुरू
लेकिन अगर कांग्रेस को 140 के आसपास सीटें मिल गयीं तो उससे दिक्कत होगी। इन चुनावों में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है, जिसके असर का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
खैर, अब भारतीय बाजार में कहानी लंबी अवधि की है। अगर मौजूदा एनडीए को 230-250 सीटें मिल जायें तो मई का महीना और आने वाले कई साल बाजार के लिए अच्छे रहेंगे। वैसे भी, भारतीय अर्थव्यवस्था तलहटी से उबरने की प्रक्रिया में है। सामान्य रूप से सँभलने में इसे शायद छह महीने ज्यादा लग जायें, लेकिन चुनाव से फायदा यह है कि देश या अर्थव्यवस्था को कुछ ज्यादा समय मिल जाता है।
जब किसी कंपनी को नया सीईओ मिलता है तो आप भूल जाते हैं कि हाल में इसमें क्या हुआ था। फिर आप छह महीने, साल भर इंतजार करते हैं कि नये सीईओ के आने से कुछ होगा। एक तो अभी से ले कर बजट तक का समय मिलेगा। बजट में कुछ एकदम से साफ तौर पर गलत नहीं हो तो आप छह महीने और देंगे। अगर छह महीने में कुछ भी सुधार दिख गया तो उत्साह बढ़ेगा।
मेरा अंदाजा है कि यहाँ से लेकर 16 या 19 मई तक बाजार 8-10% ऊपर जा सकता है। अगर नतीजों के दिन एनडीए को 240-250 सीटें आती दिखीं तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि नरेंद्र मोदी नये सहयोगियों से बिना किसी खास मोल-भाव के प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। वैसी स्थिति में किसी व्यक्ति के लिए 16 मई को अपने शेयर बेचने का क्या कारण होगा, जबकि उसने इतनी बड़ी घटना का जोखिम लिया हो? जिसे बेचना हो वह 15 मई को बेच ले। आप 16 मई को 2% ऊपर बेच कर क्या करेंगे? इसलिए हर आदमी यह कहेगा कि अब देखें तो सही कि क्या होता है।
दो स्थितियाँ हो सकती हैं। एक तो यह कि नरेंद्र मोदी और भाजपा की सरकार नहीं बन रही हो। या फिर उनकी सरकार बने लेकिन बाजार ऊपर नहीं जाये या उल्टे गिर जाये। ऐसी गिरावट तो तभी होगी, जब लोगों को लगेगा कि भले ही उनकी सरकार बन रही है, लेकिन यह साफ तौर पर नैतिक विजय नहीं है और वे सरकार भले ही बना लें लेकिन उसे चलाने में बड़ी दिक्कतें आयेंगी।
अगर 240-250 सीटें ला कर बिना परेशानी के उनकी सरकार बनती है तो एक अच्छी तेजी आयेगी। यह तेजी केवल इतने से भी आ सकती है कि अभी बिकवाली कर रहे लोग बिकवाली रोक दें। इस समय तो हमारा बाजार घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) की बिकवाली के कारण रुका हुआ है, न कि इसलिए कि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) खरीद नहीं रहे। वे दो दिन बिकवाली रोक दें तो उसी में बाजार बढ़ जायेगा।
लेकिन अगर वैश्विक बाजारों से तुलना करें तो भारतीय बाजार का प्रदर्शन बेहतर ही चल रहा है। चुनावी नतीजे आने तक, या एक्जिट पोल के नतीजे आने तक बाजार मौजूदा स्तरों से 8-10% ऊपर होना चाहिए। या मान लें कि मई के अंत तक ऐसा हो जायेगा। उसके बाद बाजार में एक ठहराव की संभावना रहेगी।
वहीं अगर मान लें कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने और बाजार इसके चलते गिर जाये तो कितनी गिरावट आने पर खरीदारी का मौका बनेगा? कोई सोचे कि आज नहीं खरीदूँगा, जब बुरी खबर आ जायेगी तब खरीदूँगा। भई, आज से 5% नीचे के भाव पर तो पिछले महीने भी मिल रहा था।
मेरा तो मानना है कि मोदी का प्रधानमंत्री नहीं बन पाना बाजार के लिए बहुत ही नकारात्मक होगा। बाजार 10-20% गिर जायेगा, करेंसी में 4-5% का नुकसान हो जायेगा। मतलब एक-डेढ़ साल का मुनाफा चला गया। उसके बाद कोई खरीदेगा या नहीं, यह तो इस पर निर्भर करता है कि किन स्तरों पर आ जायेगा और किसको लाया जा रहा है। लेकिन फौरी तौर पर तो आपके एक साल या आठ महीने चले जायेंगे। उस नये आदमी को समय नहीं दिया जायेगा। अगर आप किसी बिल्कुल अनजान, अनुभवहीन व्यक्ति को सीईओ बना दें तो बाजार झटका दे देता है, फिर पूछता है कि बतायें आप क्या करेंगे? अगर हमारे बाजार का आठ-दस महीनों का मुनाफा चला जाये, पहले वह गिरे, फिर साल-सवा साल बाद डॉलर के संदर्भ में वापस उस स्तर पर लौटे तो वह बुरी स्थिति ही होगी।
अगर एनडीए केवल 200-210 सीटों के आस-पास अटक जाये तो भी उसकी सरकार बन सकती है। बाजार इसे पसंद नहीं करेगा, लेकिन उसकी मुझे परवाह नहीं है, क्योंकि तब बाजार 5-7% गिर कर फिर सँभल जायेगा। लेकिन अगर उनकी सरकार बन ही नहीं पाये, तो इसे नकारात्मक माना जायेगा। ऐसा होने की संभावना बहुत कम है, लेकिन ऐसा हो गया तो बाजार भी गिरेगा। उसमें कुछ नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति के लिए अभी हम तैयार नहीं हैं। अभी से लेकर नतीजे आने तक हम कुछ पुट और खरीद लेंगे, लेकिन हम पूरी तरह से तेजी मान कर चल रहे हैं। हमारे विश्वास का एक कारण यह भी है कि मतदान का प्रतिशत काफी बढ़ा है और इसका मतलब सामान्यत: परिवर्तन ही होता है।
विभिन्न क्षेत्रों में अपनी पसंद को मैं बहुत ज्यादा बदला नहीं करता। मुझे एकदम पिटे हुए शेयर पसंद नहीं आते। हमने अपने बिकवाली सौदे काफी कम या खत्म कर दिये हैं। ज्यादातर हम अपने पोर्टफोलिओ के मौजूदा शेयरों की मात्रा बढ़ा रहे हैं, शेयरों में बहुत बदलाव नहीं कर रहे। कुछ मँझोले शेयरों में भी खरीदारी की है। बहुत साल हो गये डर-डर कर चलते हुए, लेकिन अभी हमने तेजी का रास्ता चुना है।
हमने इन्फ्रा और कैपिटल गुड्स जैसे क्षेत्रों में अपने बिकवाली सौदों को काटा है। तो एक लिहाज से कह सकते हैं कि हमने उन्हें भी खरीदा है। लेकिन नयी अतिरिक्त खरीदारी हमने वायदा में कुछ ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले शेयरों में की है, जो वित्तीय क्षेत्र के हैं। हमने एनबीएफसी और ट्रक फाइनेंस वाले शेयर भी खरीदे हैं।
विचार यह है कि शेयर अपने ऊपरी स्तर से नीचे हो और अर्थव्यवस्था में सुधार का उसे फायदा मिलने वाला हो, लेकिन वैसा नहीं होने पर भी वह कंपनी डूबने वाली नहीं हो। हम ये नहीं सोच रहे कि सब कुछ बदल जायेगा और उसके बाद एकदम गिरे हुए शेयर दोगुने-तिगुने भाव के हो जायेंगे।
बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के नामों को हम इसलिए नापसंद कर रहे हैं कि इसकी बहुत-सी कंपनियाँ वास्तव में टूट गयी हैं। हम ऐसे अच्छे शेयर चुनते हैं, जिन पर खराब अर्थव्यवस्था का असर पड़ा हो। लेकिन हम उन शेयरों को नहीं खरीद रहे, जिन्होंने तेजी के बाजार में अपनी ढेर सारी गलतियाँ कीं और हद से ज्यादा कर्ज लिया। कोई ऐसी कंपनी हो, जिस पर कर्ज बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन अभी उसे ठेके (ऑर्डर) नहीं मिल रहे। वहाँ हम सोच रहे हैं कि चलो आगे उसे ठेके भी मिल जायेंगे। लेकिन जो रियल एस्टेट, कैपिटल गुड्स और कंस्ट्रक्शन वाली बहुत-सी कंपनियाँ हैं, उनकी अपनी काफी गलतियाँ रही हैं। ऐसी कंपनियों के बारे में सोचने का अभी समय नहीं है।
मैं मोदी के आने से होने वाले बदलाव को इस तरह से ले रहा हूँ कि एक व्यक्ति प्रशासन अच्छे से चलायेगा, भले ही वह उन्हीं कामों को करे। अभी उनकी निजी पसंद साफ नहीं हुई है कि वे विनिवेश पर क्या करेंगे। मुझे नहीं लगता कि तेल-गैस में सब्सिडी हट जायेगी। लेकिन शासन बेहतर हो जायेगा। किसी फैसले से भले ही कोई फायदे में होगा कोई नुकसान में होगा, लेकिन ऐसे फैसले करने का साहस वे दिखा सकेंगे।
अगर इस साल चुनाव नहीं होता तो हमारा बाजार गिर थोड़े ही जाता, शायद 1% ऊपर-नीचे होता। अभी यह 8-9% ऊपर है। पर ऐसा तो नहीं होता कि यह 10% नीचे गिर गया होता, क्योंकि वैश्विक बाजार भी ठीक ही चल रहे थे।
पिछले एक महीने से भारतीय बाजार ने एशिया, जापान और उभरते बाजारों की तुलना में धीमा प्रदर्शन ही किया है। यह नहीं कह सकते कि मोदी के आने की उम्मीदों से बाजार बिल्कुल जोश में आ गया है। अगर डॉलर के संदर्भ में देखें तो भारतीय बाजार एक साल में 3% ऊपर है, जबकि उभरते बाजारों में 1% गिरावट आयी है। इसलिए बहुत बड़ा अंतर नहीं है। ऐसा नहीं कह सकते कि बड़ा उत्साह बन गया है।
जो आम निवेशक हैं, उनसे मैं यही कहूँगा कि अब कुर्सी से उठ जायें और कुछ दाँव भी लगायें। यह अगले चार-पाँच सालों की कहानी है। एक नया आर्थिक चक्र शुरू हो रहा है। जो तमाम परियोजनाएँ अटकी हुई हैं, वे अगले एक-डेढ़ सालों में भी शुरू हो जायें तो उत्पादकता एकदम बढ़ जायेगी। हमारी विकास दर 2015-16 में आसानी से 6.5% पर पहुँच सकती है। अभी एक नयी कहानी बारिश की आ गयी है। लेकिन अगले साल महँगाई दर और ब्याज दर में कमी आने लगेगी।
इस साल तो चुनावी नतीजों के असर से बाजार बढ़ सकता है। पहले तो इस घटना के चलते और फिर नीतियों में कुछ बदलावों के चलते। इनका वास्तविक परिणाम अगले साल दिखेगा। लिहाजा इस साल बाजार उम्मीदों पर चलेगा और अगले साल परिणामों पर। समीर अरोड़ा, फंड मैनेजर, हीलियस कैपिटल मैनेजमेंट (Samir Arora, Fund Manager, Helios Capital)
(शेयर मंथन, 11 मई 2014)
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