जुलाई से दिसंबर 2015 के दौरान बैंकों के डूबे कर्जों (NPA) और खराब परिसंपत्तियों में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।
उद्योग संगठन फिक्की (FICCI) और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (IBA) ने मिल कर बैंकों के बारे में जो सर्वेक्षण किया है, उसमें इस बात का पता चला है। इस सर्वेक्षण में सरकारी, निजी और विदेशी - कुल मिला कर 17 बैंकों ने हिस्सा लिया है और यह सर्वेक्षण जनवरी-फरवरी 2016 में किया गया है।
इस सर्वेक्षण में 53% बैंकों ने यह संकेत दिया है कि जुलाई-दिसंबर 2015 के दौरान ऐसे आवेदनों की संख्या बढ़ी है, जो अपने कर्ज का पुनर्गठन (रीस्ट्रक्चरिंग) कराना चाहते हैं। साल 2015 की दूसरी छमाही में जिन क्षेत्रों में डूबे कर्जों का स्तर बढ़ा है, उनमें बुनियादी ढाँचा क्षेत्र, धातु, कपड़ा और रसायन क्षेत्र शामिल हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से नीतिगत दरों में कमी किये जाने के बाद सभी बैंकों ने अपने आधार दर (बेस रेट) में कटौती की है, हालाँकि इनके द्वारा की गयी कमी में काफी अंतर देखने को मिला है। जुलाई-दिसंबर 2015 के दौरान 41% बैंकों ने अपने बेस रेट में 20 से 30 बेसिस प्वाइंट की कमी की है, वहीं केवल 24% बैंकों ने इस दौरान अपना बेस रेट 40 बेसिस प्वाइंट से अधिक घटाया है।
डूबे कर्जों में बढ़ोतरी और कुछ खास क्षेत्रों से जुड़े अधिक जोखिम की वजह से तकरीबन 35% बैंकों ने बड़ी कंपनियों को कर्ज देने के अपने मानकों को कड़ा किया है। छोटे और मँझोले उद्यमों (SMEs) के मामलों में 23% बैंकों ने कर्ज देने के अपने मानकों को ढीला किया है। सरकार द्वारा इन क्षेत्रों पर जोर दिये जाने के कारण बैंकों ने ऐसा किया है। (शेयर मंथन, 25 फरवरी 2016)
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