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कल अमेरिकी बाजारों में अच्छी तेजी के बाद आज तमाम एशियाई बाजारों में भी उछाल है। जापान का निक्केई तो ढाई फीसदी से ज्यादा तेजी दिखा रहा है। इस माहौल में सात दिनों की लगातार गिरावट के बाद अगर निफ्टी ने आज के शुरुआती कारोबार में 100 अंक से ज्यादा की उछाल भर ली है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
कल सुबह के लेख में मैंने निफ्टी के लिए जिक्र किया था कि "अगर यह 5970 के नीचे गया तो बाजार का कुछ और फिसलना स्वाभाविक होगा, क्योंकि 5970-6000 का दायरा काफी समय से निफ्टी के लिए या तो महत्वपूर्ण बाधा या महत्वपूर्ण सहारे का काम करता रहा है।" मगर कल निफ्टी 5970 को तोड़ने के बदले इससे ठीक ऊपर 5972 पर रुक गया। आज सुबह की उछाल से यह साफ है कि अभी इसने 5970-6000 के दायरे में मिलने वाले सहारे को बचाने का प्रयास किया है।
लेकिन इससे आगे यह देखना होगा कि आज की उछाल कितनी टिकाऊ साबित होती है। मैंने कल ही लिखा था कि "अगर यह फौरी तौर पर 5970-6000 पर सहारा लेकर कुछ सँभले भी, लेकिन इसके बाद दोबारा नीचे आते हुए यह सहारा तोड़ दे तो बाजार नये निचले स्तरों की ओर बढ़ जायेगा।"
निफ्टी ने अगस्त 2013 की तलहटी 5119 से लेकर दीपावली के मुहुर्त कारोबार के ऊपरी स्तर 6342 तक की उछाल की 23.6% वापसी 6053 का स्तर आज सुबह पार कर लिया है। आगे हमें इस बात पर नजर रखनी होगी कि यह 6053 के ऊपर टिका रह पाता है या वापस इसके नीचे लौटता है। अगर निफ्टी वापस लौट कर 6053 के नीचे आने लगे तो यह समझना चाहिए कि यह 5119-6342 की उछाल की 38.2% वापसी के स्तर 5875 की ओर जाने लगा है।
तकनीकी वजहों या अंतरराष्ट्रीय कारणों से बाजार अभी कुछ सँभलता हुआ भले ही दिखे, लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब भी वापस सँभलने के ठोस संकेत नहीं दे रही है। इस मंगलवार को औद्योगिक उत्पादन (IIP) और खुदरा महँगाई दर (CPI), दोनों के आँकड़े निराश करने वाले रहे, या कहा जा सकता है कि उत्साहवर्धक तो कतई नहीं रहे। खुदरा महँगाई दर बढ़ कर 10.1% हो गयी है और 7 महीनों के ऊपरी स्तर पर आ गयी है। सितंबर महीने में औद्योगिक उत्पादन बढ़ने की दर महज 2.0% रही। यह दर बाजार के अनुमानों से हल्की ही है। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र ही बार-बार निराशा का मूल कारण बन रहा है। इसमें थोड़ा सुधार तो है, लेकिन पर्याप्त नहीं।
वैसे कहने को तो कहा जा सकता है कि अगस्त में हासिल केवल 0.4% वृद्धि की तुलना में आईआईपी सितंबर में सुधरा ही है। लेकिन यह दिल को बहलाने वाला तर्क ही है। मोटी बात यह है कि इतनी हल्की वृद्धि से काम नहीं चलने वाला है। साथ ही आईआईपी के आँकड़ों में हर महीने बड़ा उतार-चढ़ाव भी है। इस उतार-चढ़ाव के बीच कभी यह दो-ढाई फीसदी बढ़ जा रहा है तो कभी दो-ढाई फीसदी घट जा रहा है। लेकिन कुल मिला कर स्थिति चिंताजनक है और यह पूरी अर्थव्यवस्था की विकास दर के लिए शुभ संकेत नहीं है। Rajeev Ranjan Jha
(शेयर मंथन, 14 नवंबर 2013)
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