कच्चे तेल की कीमतें अब 20 डॉलर प्रति बैरल के भी नीचे फिसल चुकी हैं और डब्लूटीआई क्रूड का भाव करीब 15 डॉलर पर आ गया है। खबरें तो यह भी आने लगीं कि इसकी दो डॉलर की बोलियाँ भी लगने लगी हैं, हालाँकि बोली लगने का मतलब यह नहीं होता कि उसी भाव पर सौदा भी हो। आगे तेल के बाजार का हाल कब तक बेहाल रहेगा, इस बारे में अपने विचार रख रहे हैं जाने-माने ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा।
तेल कच्चे तेल का भाव दो डॉलर पर तो नहीं आया है। ऐसी बातें कुछ लोगों ने कही हैं, पर डब्लूटीआई क्रूड का कारोबारी भाव अभी करीब 15 डॉलर पर है। यह भाव भी बहुत नीचे है। यह सीधे तौर पर कोरोना वायरस से संबंधित है। जब वायरस इतना हावी है, गाड़ियाँ चल नहीं पा रही हैं, परिवहन हो नहीं पा रहा है, इसलिए कच्चे तेल की माँग में जबरदस्त कमी आ गयी है। तीन करोड़ बैरल की माँग गायब हो गयी है।
दूसरी तरफ उत्पादन बढ़ गया है। उत्पादन घटाने का समझौता तो अभी जाकर हुआ है। अगर उत्पादन में 97 लाख बैरल की कटौती हो भी जायेगी, तब भी तो अतिरिक्त उत्पादन बहुत है। यह कटौती मई से लागू होनी है। फिर भी करीब दो करोड़ बैरल का अतिरिक्त उत्पादन होता रहेगा। उत्पादन में जितनी कटौती की गयी, उससे तीन गुना तो माँग घट गयी। दूसरे, जो नया उत्पादन शुरू हो गया है वह तो अलग है। जो तेल के कुएँ खोदे गये इस दौरान – यह चार-पाँच साल का काम होता है।
लोगों को समझ में नहीं आता है, इसलिए कहते हैं कि तेल उत्पादन बंद क्यों नहीं कर देते। यह घर का नल थोड़े ही ना है कि बंद कर दो! इसकी अपनी तकनीक होती है, तेल कुओं का एक निश्चित दबाव होता है। तेल के कुओं को बंद करने के बाद फिर से चालू करने में छह महीने और खरबों रुपये लगते हैं। अमेरिका में शेल उत्पादक घाटे में जा चुके हैं या उन्होंने उत्पादन बंद करना शुरू कर दिया है। लेकिन समुद्र के अंदर जो तेल कुएँ हैं, या जमीन पर भी जो बड़ी उत्पादन सुविधाएँ होती हैं, उनको एकदम बंद नहीं किया जा सकता है। इसलिए सबका प्रयास है कि उत्पादन थोड़ा घटा दो, लेकिन एकदम बंद नहीं करो।
तेल की बुनियादी बातों (फंडामेंटल) में कोई मुद्दा नहीं है। मुद्दा कोरोना वायरस का है। तेल उद्योग ने पिछले 100 साल के इतिहास में ऐसा कुछ नहीं देखा। दुनिया की अर्थव्यवस्था ही ठप हो गयी है। इसीलिए जैसे-जैसे कोरोना वायरस से दुनिया की अर्थव्यवस्था उबरेगी, तेल भी उसी अनुपात में या उससे ज्यादा उबरेगा।
जैसे-जैसे कोरोना वायरस थोड़ा काबू में आयेगा और दुनिया में आर्थिक गतिविधियाँ शुरू हो पायेंगी, तो उसी अनुपात में या उससे थोड़ी ज्यादा ही तेजी से तेल की माँग बढ़ेगी। दुनिया में लॉकडाउन का मतलब यह है कि तमाम आर्थिक गतिविधियाँ – चाहे वो कारखानों का चलना हो या परिवहन हो या निर्माण हो, वह सब कुछ रोक दिया गया है। पर ऐसा नहीं है कि दुनिया हमेशा के लिए बंद हो जायेगी।
तेल के भावों को सँभालने के लिए जो कुछ भी अभूतपूर्व किया जा सकता था, वह सब किया जा चुका है। यह पहली बार हुआ कि उत्पादन में कटौती को लेकर ओपेक, रूस और अमेरिका एक साथ आ गये। उत्पादन में कटौती करने से कीमतें ऊपर जानी चाहिए थी, पर वह इसलिए अभी सफल नहीं हो पा रहा है कि माँग ही नहीं है। जो कुछ ओपेक कर सकता था, कृत्रिम रूप से इसके भावों को जितना नियंत्रित किया जा सकता था, वह सब कर लिया गया है। लेकिन कोरोना वायरस को राजनेता नियंत्रित नहीं कर सकते और डॉक्टरों की समझ में नहीं आ रहा।
उत्पादन कटौती से भाव पर एक तात्कालिक असर आया। लेकिन जिस तरह से माँग नष्ट हो रही है, कोरोना वायरस से एक के बाद एक अर्थव्यवस्थाएँ ठप हो रही हैं, उसका असर यह है कि तेल सँभाल कर रखने की जगह नहीं है। उत्पादन करके तेल रखें कहाँ? सारे भंडार भर गये हैं। समुद्री जहाजों में रखा जाता है, वे भी सारे भर गये हैं। रिफाइनरियों के टैंकर भर गये हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो तेल के जगत में पहले कभी आयी नहीं।
ऐसी स्थिति में तेल के भाव चाहे जितने कम हो जायें, उसे आप रखेंगे कहाँ, जब तक वह खर्च न हो। यह किसी भी कमोडिटी के लिए लागू हो सकता है। अगले तीन महीनों की बात करें तो इसके भावों का सीधा-सीधा संबंध कोरोना वायरस से अर्थव्यवस्था के उबरने से है। अभी तो इस वायरस से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को लकवा मार गया है। जैसे-जैसे दुनिया की अर्थव्यवस्था उबरेगी, उसी अनुपात में तेल उबरेगा।
इसके लिए आप तीन महीने का समय लेकर चलें। आने वाले तीन महीनों तक तेल की स्थिति काफी परेशानी की रहने वाली है। अभी तो इसके भावों के दायरे की कोई बात ही नहीं करनी चाहिए। यह तो तारामाची (रोलकोस्टर) जैसा है, इसमें दायरे की क्या बात करें। यहाँ ही देखें कि भारत में ई-कॉमर्स में सारी चीजों की आपूर्ति की अनुमति देने की बात हुई, फिर यह लगा कि ऐसा नहीं करना है। अमेरिका में राष्ट्रपति बोलते हैं कि चीजें खोल दो, गवर्नर बोलते हैं कि नहीं खोलेंगे। आप एक ऐसे दुश्मन से लड़ रहे हैं, जिसके बारे में कोई कुछ जानता नहीं है।
इसलिए अटकलें कुछ भी लगायी जा सकती हैं। लेकिन कोई यह तो बता दे कि कोरोना वायरस का इस तारीख को इलाज आ जायेगा! इसका टीका (वैक्सीन) छोड़ दीजिए, अभी तो यह है कि इसका इलाज भी आ जाये, ताकि कोई अगर बीमार हो गया तो उसे हम बचा लेंगे। कहा जा रहा है कि इसकी दवा बनने की खबर चार-पाँच हफ्ते में आने वाली है। इसे देखना होगा। दूसरे, यह देखना होगा कि क्या इसकी गति अपने-आप धीमी हो जाती है? ऐसा भी होता है। (शेयर मंथन, 11 अप्रैल 2020)