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पटरी पर लौटी अर्थव्यवस्था, अगले वित्त वर्ष में भी 6.5% रह सकती है वृद्धि दर: क्रिसिल

नरमी से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था उबरने लगी है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ताजे आँकड़े इसकी पुष्टि कर रहे हैं। शुक्रवार को जारी आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर 2024 के तीन महीनों के लिए आर्थिक वृद्धि दर 6.2% पर रही। इससे पहले दूसरी तिमाही के दौरान वृद्धि दर 6% से नीचे गिर गयी थी। इसे विश्लेषक घरेलू अर्थव्यवस्था के वापस पटरी पर लौटने की तरह देख रहे हैं।

महामारी से पहले के औसत के करीब वृद्धि दर

क्रिसिल लिमिटेड के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था तीसरी तिमाही में वापस पटरी पर लौट गयी है। उन्होंने कहा कि दूसरी तिमाही के अग्रिम अनुमानों में 10 आधार अंकों के मामूली संशोधन के बाद वित्त वर्ष 2024-25 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.5% हो गयी है। यह दर महामारी से पहले के दशक की औसत वृद्धि दर 6.6% के करीब है।

कम पूँजीगत व्यय से प्रभावित होगी वृद्धि

जोशी ने बताया कि अगले वित्त वर्ष (2025-26) में भी जीडीपी वृद्धि दर 6.5% रहने का अनुमान है। इसके पीछे सामान्य मानसून, खाद्य मुद्रास्फीति में कमी और फरवरी से ब्याज दरों में कटौती का दौर शुरू होने जैसे कारक शामिल हैं। हालाँकि, उन्होंने यह चेतावनी भी दी कि पूँजीगत व्यय पर अधिक ध्यान नहीं देने से अगले साल वृद्धि पर कुछ अंकुश लग सकता है।

संतुलित हो रहा है भारत का आर्थिक विकास

उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 में आर्थिक विकास संतुलित हो रहा है, क्योंकि जीडीपी में निजी खपत का हिस्सा बढ़ा है। दूसरी ओर, निवेश का हिस्सा पिछले वित्त वर्ष से कम हो रहा है। जोशी ने बताया कि 2024 में सार्वजनिक और घरेलू निवेश तेजी से बढ़े, लेकिन कुल निवेश में निजी कंपनियों के निवेश का हिस्सा घट गया। कंपनियों के पास वित्तीय लचीलापन है और कर्ज का दबाव कम है। इसके बावजूद यह निवेश में तब्दील नहीं हो रहा है। उनके हिसाब से निजी क्षेत्र की कंपनियाँ व्यापार युद्ध और चीन से डंपिंग की आशंका के कारण निवेश में सतर्कता बरत रही हैं।

व्यापार युद्ध से पड़ सकता है नकारात्मक असर

जोशी ने यह भी बताया कि जीडीपी के अनुपात में सकल घरेलू बचत स्थिर बनी हुई है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू वित्तीय बचत (जीडीपी के अनुपात) में वृद्धि हुई, लेकिन भौतिक परिसंपत्तियों में बचत कम हो गयी। उन्होंने वैश्विक व्यापार में शुल्क के कारण उत्पन्न जोखिमों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि इसके चलते जटिलता बढ़ रही है। पहले ही व्यापार युद्ध छिड़ चुका है, जिसके भविष्य में और तेज होने की आशंका है। इन जोखिमों से आर्थिक वृद्धि दर के ऊपर अनुमान से नीचे गिरने का खतरा रहेगा।

(शेयर मंथन, 01 मार्च 2025)

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