एमसीएक्स पर कॉटन वायदा (जून) की कीमतों की तेजी पर रोक लग सकती है और कीमतों को 24,000-24,100 रुपये के पास बाधा का सामना करना पड़ सकता है।
रुपये के मजबूत होने और घरेलू बाजार में कीमतों में वृद्धि के कारण भारतीय कपास महँगा हो गया है, जिससे कमोडिटी के निर्यात पर असर पड़ रहा है। भारतीय कपास की कीमत वर्तमान में लागत और माल ढुलाई के आधार पर 92-93 सेंट प्रति पाउंड है, जो पश्चिम अफ्रीका और अमेरिका की बेहतर गुणवत्ता वाली फसल के बराबर है। मेंथा तेल वायदा (जून) की कीमतें 925-935 रुपये के दायरे में कारोबार कर सकती हैं। विदेशी खरीदारों की ओर से माँग में गिरावट की संभावना से कीमतों की तेजी पर रोक लगी हुई है। घरेलू मसाला निर्माताओं और थोक खरीदारों की ओर से माँग कम है। कोविड-19 के प्रकोप का दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है और सुगंधित रसायनों के बाजार पर भी इसका समान प्रभाव पड़ा है, जिससे कीमतों पर असर पड़ा है।
रबर वायदा (जून) की कीमतों को 17,000-16,900 रुपये के करीब सहारा मिलने की संभावना है और हाजिर बाजारों से सकारात्मक संकेतों के साथ तेजी के रुझान के साथ कारोबार हो सकता है। इसके अलावा, थोक खरीदारों की ओर से बढ़ती माँग के मुकाबले उत्पादन में अनुमानित गिरावट से निकट भविष्य में प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेजी देखी जा सकती है। 2021-22 (अप्रैल-मार्च) में प्राकृतिक रबर का उत्पादन काफी कम हो सकता है क्योंकि लॉकडाउन और बारिश से वृक्षारोपण प्रभावित हो रही है।
चना वायदा (जून) की कीमतों में 5,150-5,100 रुपये तक गिरावट होने की संभावना है। भारतीय दलहन और अनाज संघ (आईपीजीए) ने कहा है कि सरकार को चना और मसूर जैसी दालों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए एक नीति के साथ एक स्तर तक शुल्क लगाने पर विचार करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आयातित दालों की अंतिम कीमत न्यूनतम आयात कीमतों से अधिक बनी रहे। साथ ही यह भी कहा कि सरकारी कार्रवाई के डर से व्यापारी घरेलू बाजार में दालों का आयात या खरीद करने से हिचकिचा रहे हैं। (शेयर मंथन, 07 जून 2021)
Add comment