बाजार में काफी तेजी आ चुकी है और यह अर्थव्यवस्था का वास्तविक प्रतिबिंब नहीं है। वैसे भी सेंसेक्स और निफ्टी भारतीय अर्थव्यवस्था का सही प्रतिबिंब नहीं दिखाते हैं, क्योंकि जितनी भी सूचीबद्ध कंपनियाँ हैं, वे हमारी जीडीपी में केवल 6% का योगदान करती हैं।
इसलिए अर्थव्यवस्था को सुधारने की दृष्टि से भारत का सरकार का मुख्य ध्यान देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की ओर होना चाहिए। हमारी 6 करोड़ एमएसएमई इकाइयाँ करीब 13 करोड़ लोगों को रोजगार देती हैं।
कोविड-19 से लगे झटके के बाद अब स्थितियाँ वापस सामान्य होने लगी हैं। तेल कंपनियाँ कह रही हैं कि माँग वापस आ गयी है, लेकिन अभी अतिरिक्त माँग नहीं आयी है। मतलब यह कि जो लोग व्यर्थ में गाड़ियाँ चलाते थे, वह माँग अभी नहीं लौटी है और अभी आयेगी भी नहीं। लेकिन रिफाइनरियाँ अब अपनी क्षमता के अनुरूप काम करने लगी हैं।
दो महीने चले संपूर्ण लॉकडाउन के बाद जब अर्थव्यवस्था को खोला गया तो जून में करीब 92,000 करोड़ रुपये का जीएसटी संग्रह हुआ है, जो बहुत ही अच्छा है। लेकिन ध्यान रखना होगा कि इसमें अप्रैल और मई का विलंबित भुगतान भी शामिल है। लोगों ने तब जीएसटी भरा नहीं था, क्योंकि उन्हें कहा गया था कि इसे जून तक भर सकते हैं।
सरकार जिलों के स्तर पर काम कर रही है, जो बहुत बढ़िया है। आशा है कि अर्थव्यवस्था में माँग जल्दी लौट आयेगी, और अगर ऐसा होता है तो निवेश अपने-आप ही होंगे। निजी क्षेत्र तभी निवेश करेगा, जब अर्थव्यवस्था में माँग वापस आयेगी।
बाजार को देखें, तो मुझे लगता है कि दिसंबर तक सेंसेक्स लगभग इन्हीं स्तरों के आस-पास रहना चाहिए। दरअसल अभी भी यह काफी ऊँचे स्तर पर है। दिसंबर तक शायद सेंसेक्स 35,000 के आस-पास ही रहेगा और वह भी जरा ऊँचा स्तर ही लगता है। निफ्टी भी तब तक 10,000 के आस-पास ही होगा। बाजार में कुछ गिरावटें आयेंगी।
एक साल बाद की बात करें तो अगर यहाँ से अर्थव्यवस्था में अच्छी वृद्धि लौटती है, तो फिर बाजार में करीब 20% की बढ़त दर्ज हो सकती है। उस स्थिति में सेंसेक्स साल भर में करीब 40,000 पर पहुँच सकता है। मगर शर्त यही है कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि वापस लौटनी चाहिए।
भारत एक बहुत बड़ा बाजार है और दुनिया भर की कंपनियाँ इसे देख रही हैं। यह बात अभी रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सिद्ध करके दिखा दिया। कोविड के समय जब कोई उद्योगपति कुछ नहीं कर रहा था, सभी नकारात्मक थे, उस समय मुकेश अंबानी ने अपनी कंपनी को ऋण-मुक्त बनाने का लक्ष्य पूरा कर लिया। मैं तो मानता हूँ कि 2024-2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था 5 लाख करोड़ डॉलर के लक्ष्य को छू सकती है। अगर रुपये की विनिमय दर 75 रुपये प्रति डॉलर पर रहे, महँगाई दर 4% पर रहे, और सालाना विकास दर 8% रहे तो 12% सालाना वृद्धि से हम उस स्तर पर पहुँच सकते हैं। हमारे लिए अच्छा यह है कि तेल की कीमतें ज्यादा नहीं बढ़ने वाली हैं। धातु की कीमतें भी ठहरी रहेंगी। यह सब हमारे लिए सकारात्मक है।
जीएसटी के आँकड़े बता रहे हैं कि हमारी अर्थव्यवस्था अब फिर से चालू हो चुकी है। अभी हो सकता है कि वापस 100% चालू नहीं हुई है, अगस्त-सितंबर में कोरोना वायरस का चरम भी आने की आशंका है, तो लगता है कि अर्थव्यवस्था 90-100% तक वापस चालू होने में अक्टूबर तक का समय लग सकता है। इस साल मानसून भी अच्छा रहने की आशा है, इसलिए कृषि उपज भी काफी अच्छी रहेगी।
इस संकट ने एक बार फिर दिखाया कि निर्यात पर ज्यादा निर्भर नहीं रहने से हमारी हालत चीन जैसी नहीं हुई। निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था नहीं होने के चलते हमारी अपनी जमीन मजबूत है। दूसरे, हमने रुपये को पूरी तरह परिवर्तनीय (फुली कन्वर्टिबल) नहीं बनाया है। हमने इसे केवल ट्रेड एकाउंट में कन्वर्टिबल बनाया, कैपिटल एकाउंट में नहीं। तमाम सरकारें इस निर्णय पर टिकी रही हैं, यह हमारे लिए बहुत अच्छा है।
यह सही है कि इस साल सरकार के राजस्व में कमी आयेगी। यह स्वाभाविक है, क्योंकि उत्पादन कम हुआ है। लेकिन अगर लोगों की जान बचती है, तो अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर पटरी पर आ जायेगी। दो-चार महीनों में अगर हम इस महामारी से बाहर निकल आते हैं, हमारे यहाँ इस महामारी से मृत्यु-दर इटली और अमेरिका की तरह ज्यादा नहीं है, तो यह बड़ी चीज है। इसमें राजस्व और सरकारी घाटे के आँकड़ों को बहुत देखने की जरूरत ही नहीं है। हमने कभी विदेशी ऋणों के भुगतान में चूक नहीं की है। जरूरत होगी तो थोड़ी उधारी बढ़ा लेंगे।
वैश्विक स्थितियों को देखें तो मुझे नहीं लगता कि दुनिया किसी बड़े युद्ध में जाने वाली है। विश्व-युद्धों, कोरियाई युद्ध और वियतनाम युद्ध से दुनिया देख चुकी है कि इससे किसी का फायदा नहीं हुआ, केवल विध्वंस हुआ। आज युद्ध बहुत खर्चीली घटना है, लोगों की जानें जाती हैं। कोई युद्ध नहीं लड़ना चाहता है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। उसके बीच भारत काफी अच्छा करता रहेगा। अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी अच्छी रहने वाली है। मेरा तो आकलन है कि अमेरिका में आगामी चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को जीत मिल जायेगी।
आने वाले समय में भारतीय बाजार में जो क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन करेंगे, उनमें बीमा, दवा (फार्मा), टेलीकॉम और प्रोसेस क्षेत्र प्रमुख हैं। जो शेयर मुझे एक साल की दृष्टि से बहुत अच्छे लग रहे हैं, वे हैं प्रोसेस उद्योग में एशियन पेंट्स, बीमा क्षेत्र में एसबीआई लाइफ, प्रोसेस क्षेत्र और टेलीकॉम की दृष्टि से रिलायंस इंडस्ट्रीज और दवा क्षेत्र में एबॉट इंडिया और फाइजर।
हम 2024-2025 में जब 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेंगे, तो उस समय तक सेंसेक्स भी 50,000 के स्तर को पार कर लेगा। राजेश तांबे, बाजार विश्लेषक (Rajesh Tambe, Market Analyst)
(शेयर मंथन, 20 जुलाई 2020)
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