चुनावी नतीजों के संदर्भ में आगे तीन तरह की स्थितियाँ बन सकती हैं। बाजार ने अपनी समझ से बहुत सारी बातें मान ली हैं। इसने मान लिया है कि एनडीए को लोकसभा चुनाव में 260 से ज्यादा सीटें मिलेंगीं।
अगर एनडीए करीब 260 या इससे ज्यादा सीटें ले आये तो निफ्टी 7,200 तक उछल सकता है। लेकिन अगर भले ही मोदी प्रधानमंत्री बन जायें, लेकिन 200-220 सीटों के साथ बनें तो मेरा ख्याल है कि निफ्टी 6500-6600 की ओर फिसल सकता है। तीसरी स्थिति यह हो सकती है कि एनडीए इससे भी कमजोर रह जाये। अभी बाजार इस संभावना को जरा भी मानने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन अगर ऐसा हो गया तो तलहटी 6250-6300 के आसपास बन सकती है। ये संभावनाएँ चुनावी नतीजे आने पर बन सकती हैं। तब तक के लिए, खास कर एक्जिट पोल के नतीजे आने तक बाजार इन्हीं मौजूदा स्तरों के आसपास घूमता रहेगा।
वैश्विक बाजारों में यह सुनने को आ रहा है कि उभरते हुए बाजारों के ईटीएफ में निवेश नहीं आ रहा है। अगर किसी कारण से स्थिति और बिगड़े तो इसके चलते भारतीय बाजार भी कुछ कमजोर होगा। लेकिन बाजार का बड़ा रुझान चुनावी नतीजों के बाद ही सामने आयेगा।
चुनावी नतीजे आने के बाद चुनौतियाँ उभरनी शुरू होंगी। बाजार यह देखेगा कि मंत्रिमंडल का गठन कैसा होता है, प्रमुख घोषणाएँ कैसी रहती हैं, बजट कैसा आता है और उसमें सब्सिडी के प्रावधान कैसे रहते हैं। ये सब बातें आसान नहीं रहेंगीं। इनमें समस्याएँ आ सकती हैं, इसलिए बाजार थोड़ा ठहरेगा या कुछ नीचे आयेगा। इसलिए हमारा मानना है कि निफ्टी का दायरा 6,700-7,200 का हो सकता है। बाजार एकदम से बड़ी उछाल के साथ काफी ऊपर चले जाने की संभावना नहीं लग रही है।
अगर चुनावी नतीजे आने के समय तक ही निफ्टी 7,200 के पास चला गया तो वहाँ से कुछ नरमी आने की संभावना रहेगी, क्योंकि अगले 2-3 महीनों के लिए वास्तविकताएँ कठिन हैं। इसलिए बाजार में ठहराव (कंसोलिडेशन) की गुंजाइश रहेगी। इसी दौरान मानसून की स्थिति भी पता चलेगी, बजट भी आयेगा। इन दोनों का असर ब्याज दरों के रुझान पर भी होगा, जो अर्थव्यवस्था के वापस सँभलने का अंतिम महत्वपूर्ण कारक होगा।
मध्यम अवधि की बात करें तो हमारा मानना है कि दो साल में निफ्टी 10,000 तक जाने की अच्छी संभावना रहेगी। पर इसके लिए जरूरी होगा कि 240-250 सीटों के साथ नयी सरकार बने। लेकिन अगर केवल 200 सीटें रह गयीं तो यहाँ कोई कुछ काम ही नहीं करने देता है। मोदी के पास जो प्रशासनिक खूबियाँ हैं, उनके दम पर अपने-आप ही अर्थव्यवस्था में सुधार शुरू हो सकता है। आरबीआई की नीतियों से महँगाई पर नियंत्रण होने की उम्मीद रहेगी। कुछ फैसले होने लगे तो उससे भी अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा।
साथ ही पिछले एक-डेढ़ साल में चिदंबरम और उनकी टीम ने काफी ऐसे काम किये हैं, जिनका फायदा आगे मिलेगा। मैं केवल सरकारी घाटे पर नियंत्रण के लिहाज से नहीं कह रही, बल्कि कैबिनेट कमिटी ने भी काफी सारे मसले सुलझा दिये हैं। मसलन टेलिकॉम, एसईबी, कोयला आवंटन वगैरह को लेकर अब स्पष्टता है। नीतियों पर काफी हद तक स्पष्टता आयी है। लेकिन अर्थव्यवस्था पर इनका असर दिखने में थोड़ा समय लग रहा है। इसलिए अगले एक-दो सालों में इन दोनों बातों का सम्मिलित असर रहेगा और बाजार का रुझान सकारात्मक रहना चाहिए।
मेरी सलाह है कि जो छोटी अवधि के कारोबारी हैं, उन्हें अपने सौदे 20-30% हल्के कर लेने चाहिए। एक अनिश्चितता तो है ही। भले ही अभी ऐसा लगता है कि मोदी को साफ तौर पर बढ़त मिली हुई है, फिर भी अनिश्चितता तो अनिश्चितता ही होती है। इसलिए थोड़ी नकदी हाथ में रखनी चाहिए, जिससे गिरावट पर खरीदारी की जा सके या फिर बाजार में तेजी जारी रहने पर थोड़े ऊपरी भावों पर ही निवेश जारी रखा जा सके। मध्यम से लंबी अवधि के निवेशकों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्हें हौसला रखना चाहिए कि बाजार में 5-7% की गिरावट झेल सकें। अंततः वे पैसा बना सकेंगे।
जो शेयर ज्यादा चले हैं, उनमें ही बिकवाली करने की स्थिति बनती है। ये ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले (हाई बीटा) शेयर हैं। अगर आप जोखिम लेकर अपने शेयरों में बने रहना चाहते हैं तो उसके लिए भी आपकी पसंद इसी तरह के शेयर होंगे।
अगर अर्थव्यवस्था के वापस सँभलने का क्रम बना तो वित्तीय क्षेत्र के शेयर ही बाजार की अगुवाई करेंगे। साथ ही धातु (मेटल), सीमेंट, कैपिटल गुड्स और ऑटो पर ध्यान दिया जा सकता है। इन्हीं क्षेत्रों के शेयर बाजार में अगली तेजी का नेतृत्व करेंगे। मैं रियल एस्टेट क्षेत्र को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हूँ, हालाँकि शायद यह भी चल जाये।
बुनियादी ढाँचा क्षेत्र के शेयर काफी पिट चुके हैं, लेकिन उनमें अभी बहुत सारी चीजें होने की जरूरत है। पहली बात तो यह कि उनकी कुछ परियोजनाएँ बिकनी चाहिए, जिससे उनका कर्ज कम हो और नयी परियोजनाओं के लिए उन्हें बैंकिंग सुविधाएँ मिल सकें। जयप्रकाश एसोसिएट्स 27 से 58 पर चला गया, क्योंकि उसे कुछ संपत्तियाँ बेचने में सफलता मिली। जीएमआर में भी ऐसा ही हुआ। स्थितियाँ जरूर बदल सकती हैं, क्योंकि मोदी सरकार बनने पर विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा और वे भारत में संपत्तियाँ खरीदने के इच्छुक होंगे। लेकिन यह स्थिति तब की है जब मोदी भी आ जायेंगे और इन कंपनियों की संपत्तियाँ बिक भी जायेंगी।
अगर सर्वोत्तम स्थिति की बात की जाये, जिसमें बाजार के लिए सब कुछ मनमाफिक ढंग से हो, तो उस स्थिति में भी वित्तीय क्षेत्र को ही सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा। कारण यह है कि डूबे कर्ज (एनपीए) काफी ज्यादा हो चुके हैं। उनके चलते प्रावधानों (प्रोविजनिंग) की जरूरत काफी ज्यादा हो गयी है। उनमें कमी आते ही बैंकों की लाभदायकता काफी सुधरेगी।
इस समय भी बैंकों का मूल्यांकन कुछ खास नहीं है। ज्यादातर बैंक शेयर बुक वैल्यू से कम के मूल्यांकन पर चल रहे हैं। स्थिति सुधरने पर उनकी बुक वैल्यू भी बढ़ेगी और उस बुक वैल्यू पर मिलने वाला मूल्यांकन भी बढ़ जायेगा। इसलिए वित्तीय क्षेत्र के शेयर ही तेजी का नेतृत्व करेंगे। लेकिन साथ में सीमेंट, इस्पात जैसे क्षेत्रों में, जहाँ अभी क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा, वहाँ अगर वृद्धि नजर आने लगे तो काफी फर्क पड़ जायेगा। विकास दर में सुधार के लिए साल 2014-15 के बदले 2015-16 ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। अगर 2015-16 में विकास दर वापस 7-8% हो गयी तो सीमेंट क्षेत्र का मार्जिन वापस बढ़ सकता है। इस क्षेत्र में अभी काफी क्षमता है, इसलिए नया निवेश करने की जरूरत नहीं है। इसी तरह कुछ चुनिंदा शेयर कैपिटल गुड्स के हैं, जैसे कमिंस और थर्मैक्स, जिनमें नये पूँजी निवेश की जरूरत नहीं है। लेकिन क्षमता का इस्तेमाल बढ़ने से बहुत फायदा हो सकता है। अमीशा वोरा, जेएमडी, प्रभुदास लीलाधर (Amisha Vora, JMD, Prabhudas Lilladher)
(शेयर मंथन, 12 मई 2014)
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