भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) के नये "फिक्की विनिर्माण सर्वेक्षण" में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2019) में 6.0% जीडीपी विकास दर रहने का अनुमान लगाया गया है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा अगले सप्ताह पहली तिमाही के आँकड़े जारी किये जाने की उम्मीद है।
इसके अलावा क्रमशः 6.7% के न्यूनतम और 7.2% के अधिकतम अनुमान के साथ 2019-20 के लिए वार्षिक औसत जीडीपी विकास दर 6.9% आँकी गयी है। 2019-20 में कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए 2.2% वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है, जबकि उद्योग के 6.9% और सेवा क्षेत्र के 8.0% की दर से बढ़ने की उम्मीद जतायी गयी है।
यह सर्वेक्षण जून-जुलाई 2019 के दौरान उद्योग, बैंकिंग और वित्तीय सेवा क्षेत्रों से जुड़े अर्थशास्त्रियों के बीच किया गया है।
मुद्रास्फीति के संबंध में फिक्की सर्वेक्षण के अनुसार कीमतों में नरमी रह सकती है। भाग लेने वालेो अर्थशास्त्रियों का मुद्रास्फीति पर दृष्टिकोण भी नरम बना हुआ है। 2019-20 के लिए थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर का औसत अनुमान 2.9% रखा गया है, जिसका न्यूनतम 2.1% और अधिकतम 5.7% अनुमान है। दूसरी ओर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का औसत अनुमान 2019-20 के लिए 3.7% है, जिसके लिए न्यूनतम 3.4% और अधिकतम 3.4% अनुमान 4.1% लगाया गया है।
2019-20 के लिए औसत चालू खाता घाटे के जीडीपी के 2.3% रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि बाहरी मोर्चे पर चिंताएँ बनी हुई हैं। व्यापारिक निर्यात में 3.6% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि इस दौरान आयात 4.0% बढ़ने की उम्मीद है। वैश्विक विकास पूर्वानुमानों में समग्र गिरावट, व्यापार तनाव में वृद्धि, ब्रेक्सिट को लेकर अनिश्चितता और अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों पर असमंजस विदेशी मोर्चे पर प्रमुख चिंता के रूप में उभरे हैं।
धीमी वैश्विक वृद्धि चालू वित्त वर्ष और आगे भी भारत की विकास संभावनाओं को प्रभावित करेगी। वास्तव में सभी अर्थशास्त्रियों ने सर्वसम्मति से संकेत दिया कि भारत की संभावित विकास दर 7.0% से 7.5% के बीच रहेगी, जो कि कुछ साल पहले तक अनुमानित 8% से अधिक संभावित विकास दर से कम है। हालाँकि अधिकतर प्रतिभागियों का मानना है कि संभावित जीडीपी विकास दर 7.5% के आस-पास ही रहेगी।
भारत की संभावित विकास दर हासिल करने की रणनीतियों पर सर्वेक्षण में हिस्सा लेने अर्थशास्त्रियों ने चार प्रमुख क्षेत्रों रक ध्यान देने का सुझाव दिया, जिनमें कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना, एमएसएमई को मजबूत करना, अंडरटेकिंग फैक्टर बाजार सुधार और इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग के लिए रास्ता बनाना शामिल हैं।
वहीं अर्थशास्त्रियों ने सुधार के ऐसे चार प्रमुख क्षेत्रों के बारे में बताया, जो अधिक रोजगार बनाने में मदद करेंगे। इनमें कारोबार करने की लागत, नियामक सुधार, लेबर रिफॉर्म और क्षेत्र विशेष स्पेशल पैकेज की घोषणा शामिल है।
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले अर्थशास्त्रियों ने कहा कि अर्थव्यवस्था में उत्पादक निवेश करने के लिए पूँजी की उपलब्धता और विविध दीर्घकालिक पूँजी स्रोतों तक पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है। साथ ही उन्होंने देश में निवेश और रोजगार को सहारा देने के लिए उधार लेने की लागत कम करने की सलाह दी।
इसके अलावा बॉन्ड मार्केट, गैर-बैंक वित्तीय क्षेत्र और स्टॉक एक्सचेंजों को विकसित करने के लिए अधिक प्रयासों की आवश्यकता है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक प्राथमिकता के आधार पर दीर्घकालिक विकास वित्त संस्थान की स्थापना की आवश्यकता है। (शेयर मंथन, 26 अगस्त 2019)