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आरबीआई (RBI) ने नहीं घटायी ब्याज दरें, रेपो दर (Repo Rate) 5.15% पर स्थिर

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2019-20 की पाँचवीं द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में सबकी आशाओं को तोड़ते हुए अपनी नीतिगत ब्याज दरों में कटौती नहीं की।

आरबीआई के इस फैसले पर हर तरफ से अचरज और निराशा वाली प्रतिक्रियाएँ सामने आयी हैं। आरबीआई ने इससे पहले लगातार पाँच मौद्रिक नीति समीक्षाओं में रेपो दर में कटौती की थी। मगर इस बार आरबीआई ने रेपो दर को पूर्ववत 5.15% पर ही रखा। रिवर्स रेपो दर को भी 4.90% पर बनाये रखा गया। रेपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर व्यावसायिक बैंक आरबीआई से बहुत अल्पावधि का ऋण लेते हैं, जबकि रिवर्स रेपो दर वह ब्याज दर है, जो बैंकों को आरबीआई के पास पैसा जमा रखने पर मिलता है।
मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) और बैंक दर दोनों को रेपो दर से 0.25% अंक ऊपर 5.40% पर स्थिर रखा गया। नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में बदलाव नहीं हुआ और यह 4% पर ही बनाये रखा गया। वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 18.50% पर स्थिर रखा गया। सीआरआर और एसएलआर बैंकों की कुल जमाओं के प्रतिशत के रूप में तय होते हैं।
हालाँकि आरबीआई ने इस मौद्रिक नीति में विकास दर को तेज करने के लिए अनुकूल रुख अपनाये रखने की बात कही है, मगर साथ ही महँगाई दर को लक्ष्य के अंदर रखने को भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया है। आरबीआई यह आशा कर रहा है कि इससे पहले उसकी नीतिगत ब्याज दरों में जितनी कटौतियाँ हुई हैं, उनका लाभ बैंक आगे अपने ग्राहकों तक पहुँचायेंगे, जिससे विकास दर को सहारा मिलेगा। आरबीआई ने पिछली पाँच मौद्रिक नीति समीक्षाओं में रेपो दर में कुल 1.35% अंक की कटौती की थी। साथ ही वैश्विक व्यापारिक विवादों के जल्द समाधान की स्थिति में भी विकास दर मजबूत हो सकेगी। लेकिन घरेलू माँग सुधरने में देरी हो, वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में और धीमापन आना और भूराजनीतिक तनाव जोखिम के संभावित पहलू हैं।
वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर अनुमानों से कमजोर रहने के कारण आरबीआई ने इस पूरे वित्त वर्ष के लिए विकास दर के अपने अनुमान को भी घटाया है। अक्टूबर 2019 में प्रस्तुत नीतिगत समीक्षा में यह अनुमान 6.1% का था, जिसे अब घटा कर 5.0% कर दिया गया है। आरबीआई का आकलन है कि 2019-20 की दूसरी छमाही में विकास दर 4.9-5.5% रहेगी, जबकि 2020-21 की पहली छमाही में यह 5.9-6.3% के दायरे में होगी।
दरअसल दूसरी तिमाही में विकास दर कमजोर रहने के कारण चौतरफा यह आशा बनी हुई थी कि आरबीआई की ओर से इस बार ब्याज दरों में कटौती जरूर होगी। लेकिन हाल में खुदरा महँगाई दर (सीपीआई) के बढ़ने के चलते आरबीआई ने इससे परहेज किया। आरबीआई ने इस मौद्रिक नीति में अनुमान रखा है कि खुदरा महँगाई दर 2019-20 की दूसरी छमाही में 5.1-4.7% और 2020-21 की पहली छमाही में 4.0-3.8% के दायरे में रहेगी। (शेयर मंथन, 5 दिसंबर 2019)

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