मेरा मानना है कि शेयर बाजार ने अपनी तलहटी देख ली है और निफ्टी के 7,250 से ज्यादा नीचे जाने की आशंका नहीं लग रही है।
वैश्विक बाजारों और साथ ही घरेलू शेयर बाजार में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव की वजह से शेयर बाजार के निवेशकों के लिए पिछले पाँच हफ्ते बहुत मुश्किल भरे रहे हैं। चीन में मुद्रा के अवमूल्यन से डर की शुरुआत हुई और उसके बाद कच्चे तेल की निचली कीमतों और उसके स्वाभाविक परिणामों की वजह से यह अन्य देशों में फैल गया।
वैश्विक बाजार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, इसलिए छोटी अवधि में नकदी के प्रवाह की वजह से सभी बाजारों में गिरावट आयी है। हालाँकि यह स्थिति लगातार बनी नहीं रहेगी।
साल 2015 के पहले 5-6 हफ्तों में 8-9% चढ़ा था। उस समय मैंने निवेशकों को सचेत किया था कि बाजार अपने बुनियादी मूल्यांकन से आगे चला गया है। आज इसकी उल्टी स्थिति है। अर्थव्यवस्था की स्थिति कहीं ज्यादा सकारात्मक है और हम इसका असर आने वाले समय में देखेंगे।
सामान्य तौर पर कंपनियों के नतीजे उम्मीदों के मुताबिक ही रहे हैं, सिवाय बैंकों को छोड़ कर। बैंक इस समय अतीत के लिए प्रावधान करने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। वहीं अर्थव्यवस्था के प्रमुख संकेतक भविष्य में विकास दर बेहतर रहने की संभावना दिखा रहे हैं। मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र दोनों के लिए पीएमआई सूचकांक काफी सकारात्मक रहे हैं। सरकार की वित्तीय स्थिति मजबूत है और इससे सरकार को निवेश एवं विकास को तेज करने में मदद मिलेगी।
वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक नीतियों में ढील दे रहे हैं। बैंक ऑफ जापान (BoJ) ने हाल में इसके लिए कदम उठाये हैं और यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ECB) मार्च में ऐसा कर सकता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी भी धीमी रहने की उम्मीद है।
भारत के लिए संभावित सकारात्मक बातों में जीएसटी विधेयक पारित होने और मॉनसून बेहतर रहने को गिना जा सकता है, हालाँकि ऐसा न होने पर भी बाजार इस समय सस्ता लग रहा है। वेतन आयोग की सिफारिशें 1 अप्रैल से लागू होने से खपत आधारित माँग मजबूत होगी। साथ ही अगर मॉनसून सामान्य रहा तो इससे ग्रामीण माँग भी तेज होगी।
यह निश्चित रूप से निवेशकों के लिए निराशाजनक है कि अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों के शेयर भी काफी तेजी से नीचे आये हैं। मगर बाजार की अतिवादी चालों में शेयर भाव भी अतिवादी ढंग से चलते हैं और हमें उससे आगे देखने की जरूरत है। पूरे विश्व में आम राय नकारात्मक हो चुकी है और यह अपने-आप में शेयर बाजार के मूल्य को दर्शाता है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कच्चे तेल और कमोडिटी के निचले भाव भारत के लिए बहुत ही सकारात्मक हैं। सरकार को मिलने वाला 3 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व सरकारी खजाने को तो मजबूत करेगा ही, साथ-साथ ज्यादा निवेश भी हो सकेगा।
इस समय यह याद रखना चाहिए कि जोखिम की धारणा और वास्तविक जोखिम एक-दूसरे से उल्टी दिशा में होते हैं। जब डर हावी होता है, उस समय वास्तव में जोखिम कम होता है। संदीप सभरवाल, आस्कसंदीपसभरवाल डॉट कॉम (Sandip Sabarwal, asksandipsabharwal.com)
(शेयर मंथन, 08 फरवरी 2016)