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तेल की कीमत धीरे-धीरे 40 डॉलर पर जायेगी : नरेंद्र तनेजा (Narendra Taneja)

हाल में 2 अप्रैल 2020 को कच्चे तेल की कीमतों में अचानक एक ही दिन में 25% से ज्यादा की बेमिसाल तेजी आ गयी। यह तेजी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक ट्वीट के बाद आयी, जिसमें उन्होंने तेल उत्पादन में 1 करोड़ बैरल की कटौती करने को लेकर सऊदी अरब और रूस के बीच सहमति बनने की आशा जतायी।

इस ट्वीट के बाद 2 अप्रैल को नाइमेक्स में डब्लूटीआई क्रूड का भाव 1 अप्रैल के बंद भाव 20.31 डॉलर की तुलना में उछल कर 27.39 डॉलर प्रति बैरल तक चला गया, जहाँ यह 34.9% की तेजी दिखा रहा था। आखिरकार 2 अप्रैल को यह 24.7% की उछाल के साथ 25.32 डॉलर पर बंद हुआ था। उसके बाद से यह ऊपर 29 डॉलर और नीचे 23.5 डॉलर के दायरे में घूम रहा है। हालाँकि सऊदी अरब और रूस के बीच उत्पादन कटौती को लेकर सहमति बनने पर लगातार विरोधाभासी खबरें आ रही हैं। आने वाले दिनों में कच्चे तेल का बाजार किस दिशा में चलेगा, इस बारे में प्रस्तुत है तेल-गैस क्षेत्र के जाने-माने जानकार नरेंद्र तनेजा की टिप्पणी :

narendra taneja तेल की कीमतें नीचे जाने के मुख्यत: दो कारण थे। कीमतें नीचे जाने का तात्कालिक कारण तो कोरोना वायरस था। लेकिन तेल बहुत ही गंभीर कमोडिटी है। केवल कोरोना वायरस से यह नीचे नहीं गया। कोरोना वायरस जब आया चीन के अंदर, चीनी अर्थव्यवस्था में हलचल मची और उसकी वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था में हलचल जब शुरू हुई तो एक ट्रिगर आया। रूस और सउदी अरब के बीच बहुत अच्छे संबंध हैं। उनके बीच बातचीत हुई, उन्होंने कहा कि कीमतें नीचे जा रही हैं, इसलिए दोनों को मिल कर उत्पादन को कम कर देना चाहिए। यह बातचीत आम तौर से बड़े मधुर तरीके से हुआ करती थी, क्योंकि रूस और सउदी अरब में बड़े अच्छे संबंध रहे हैं, खास कर तेल की कीमतों को लेकर। इससे पहले सऊदी अरब के तेल मंत्री खालिद अल फालिह बातचीत में काफी माहिर थे।
लेकिन इस बार जब वियना में रूस के तेल मंत्री और सउदी अरब के नये तेल मंत्री की बातचीत हुई तो यह पहली बार हुआ कि बातचीत में पहले खटास आयी, फिर कड़वाहट आयी। फिर रूस ने कहा कि हम उत्पादन कम नहीं करेंगे, आपको करना है तो कर लें। तो सउदी अरब ने तेल का उत्पादन कम करने की जगह बढ़ा दिया। उन्होंने यह भी कहा कि तेल की कीमतें दो-चार महीने, छह महीने कम होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि हमें भी फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने भी अपना उत्पादन बढ़ा दिया।
ऐसे समय में, जब बाजार में माँग घट रही थी, दोनों देशों ने उत्पादन बढ़ा दिया, जिससे तेल की कीमतें नीचे जाने लगीं। कोरोना वायरस तात्कालिक कारण था, लेकिन तेल की कीमत जो एकदम नीचे गयी उसकी मुख्य वजह थी सउदी अरब और रूस के बीच एक अनौपचारिक संधि टूटना। इनके बीच एक अलिखित संधि थी कि दोनों मिल कर काम करेंगे, हालाँकि रूस ओपेक का सदस्य नहीं है।
उसकी वहज से तेल की कीमत को लेकर अमेरिका में भी हड़कंप हो गया। नतीजा यह हुआ कि अमेरिका ने अपना उत्पादन बढ़ा दिया। इधर कोरोना वायरस की बीमारी फैलने लगी, यूरोप के अंदर ज्यादा फैलने लगी, सब जगह लॉकडाउन शुरू हो गये। उससे बाजार इतना भयभीत हो गया कि लोग मजाक में कहने लगे कि शायद तेल की कीमत शून्य डॉलर हो जाये।
अब अमेरिका के अंदर ज्यादा भय इस बात को लेकर था कि अमेरिका का तमाम सारा तेल उत्पादन शेल से होता है। अमेरिका में करीब आधा शेल उत्पादन लघु उद्योग है, छोटे-छोटे लोग करते हैं, कोई 500-600 बैरल, कोई 1000-2000 बैरल। लेकिन उसकी लागत बहुत होती है। तेल की कीमत 40 डॉलर से नीचे रहने पर अमेरिका का बहुत बड़ा तेल उत्पादन बंद हो जायेगा और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बहुत चोट पहुँचेगी।
अगर ऐसा होता है तो एक तरफ कोरोना वायरस, एक तरफ सस्ता तेल और अमेरिका अर्थव्यवस्था की चोट, इन सबसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगला चुनाव हार जायेंगे। ऐसे में उनको कौन वोट देगा? इसलिए राष्ट्रपति ट्रंप ने बहुत दबाव डाला सउदी अरब पर, और सउदी अरब को अमेरिका की बात सुननी पड़ती है। उन्होंने सउदी अरब से कहा कि तेल का उत्पादन घटाओ, और साथ में यह भी दबाव डाला कि रूस से संधि करो, उनसे बात करो। उन्होंने कहा कि तेल का उत्पादन दोनों घटाओ, जिससे तेल की कीमतें ऊपर जायें। तभी शेल का उत्पादन अमेरिका में टिकाऊ (वायबल) रहेगा।
ट्रंप ने जो ट्वीट किया, उससे बाजार समझ गया कि अगर रूस और सउदी अरब उत्पादन कम करते है तो इराक, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात भी कम करेंगे। नाइजीरिया को भी कहा जा रहा है कि थोड़ा कम करो। तो ये जो बड़े तेल उत्पादक हैं, उनका उत्पादन काफी हद तक कम हो जायेगा। उसका नतीजा क्या होगा? तेल की कीमत ऊपर जायेगी। आपने देखा कि इसमें एकदम उछाल आयी। तेल की कीमत को वापस धीरे-धीरे 40 डॉलर पर ले जाने की रणनीति है।
तेल की कीमतों के बारे में बहुत लंबा कहना मुश्किल होता है। लेकिन अगर दो-चार हफ्तों में कोरोना वायरस का विस्तार ठहर जाता है तो फिर तेल की कीमत 40 डॉलर की दिशा में जा रही है। मैंने हमेशा कहा है कि तेल की बहुत निचली कीमतें और बहुत ऊँची कीमतें, दोनों खराब हैं। अभी तेल की कीमतों की जो यात्रा आपने देखी है, और इसके पीछे राजनीति ज्यादा है और अर्थशास्त्र कम है। अमेरिका का पूरा दबाव है। इधर सउदी अरब और रूस दोनों को भी पता है कि यह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाली बात है, नुकसान दोनों को हो रहा है।
इस समय तेल के ऊपर हावी है अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव। ट्रंप को पता है कि तेल बहुत महँगा होगा तो भी उनको कोई वोट नहीं देगा, और सस्ता होगा तो भी हार जायेंगे। इसलिए 40 डॉलर का भाव उनके अनुकूल है। इससे उनका शेल उद्योग भी चलता रहेगा और जनता को भी सस्ता तेल मिलेगा।
बहुत सस्ता भाव टिक पाने का सवाल ही नहीं उठता है। अगर 20 डॉलर का भाव बना रहे तो खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो जायेगी। अगर कीमत तार्किक रहती है, 40 से 60 डॉलर के बीच में, तो ठीक है। अभी कीमत 40 डॉलर की ओर बढ़ने की चाल शुरू हुई है। अभी मैं मान कर चल रहा हूँ कि दुनिया में कोरोना वायरस आने वाले एक महीने में सँभल जायेगा। खतरा बना रहेगा लेकिन हालत सँभल जायेगी। यात्राएँ शुरू हो जायेंगी, हवाई जहाज चलने शुरू हो जायेंगे, ट्रेनें चलने लगेंगी, अंतरराष्ट्रीय आवागमन शुरू हो जायेगा। मेरा अंदाजा है कि मई अंत तक इन सबकी शुरुआत हो जायेगी, जून तक यह काफी हद तक हो जायेगा, अगस्त तक काफी कुछ सामान्य होने लगेगा। थोड़ी लंबी यात्रा है, लेकिन ऐसा होगा। (शेयर मंथन, 11 अप्रैल 2020)

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