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निजी बैंकों की हिचक

राजीव रंजन झा

ब्याज दरें ऊपर चढ़ने का चक्र पूरा हो चुका है और अब इनके नीचे जाने का समय आ चुका है – यह बात सबसे पहले जिन लोगों ने कही थी उनमें आईसीआईसीआई बैंक के एमडी के वी कामत शामिल हैं।

देश की आर्थिक विकास दर को तेज बनाये रखने के लिए ब्याज दरों में कटौती जरूरी लगने लगी है, इस तरह के संकेत भी उनकी ओर से काफी पहले से आने लगे थे – रिजर्व बैंक की ओर से सीआरआर और रेपो दर में कटौती का सिलसिला शुरू किये जाने से काफी पहले से।
लेकिन विडंबना देखिये कि जब रिजर्व बैंक ने इतने आक्रामक तरीके से सीआरआर और रेपो दर दोनों में कटौती कर दी और एक तरह से बैंकों को सीधा संकेत दे दिया कि अब आप अपनी ब्याज दरें घटायें, उसके बाद भी आईसीआईसीआई बैंक और दूसरे निजी बैंक ब्याज दरें घटाने में हिचक दिखा रहे हैं। उनकी ओर से बयान आ रहे हैं, लेकिन फैसले नहीं। यहाँ तक कि वित्त मंत्री की ओर से सीधा संकेत भी वे नजरअंदाज कर रहे हैं। मैं यह नहीं मानता कि निजी बैंकों के कारोबार में सरकार को कोई दखलअंदाजी करनी चाहिए या उन्हें सरकारी फरमान मानने के लिए मजबूर होना चाहिए। लेकिन फिर भी अगर वित्त मंत्री की अपील को वे अनसुना कर रहे हैं, वह भी ऐसे समय में जब रिजर्व बैंक ने उनकी मांगों को मान कर पर्याप्त अतिरिक्त नकदी उपलब्ध करा दी है और साथ ही रेपो दर भी घटा दी है, तो यह सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि इन बैंकों के सामने कोई तो दिक्कत है। मैं वैसी किसी दिक्कत की बात नहीं कर रहा, जैसी अफवाहें आईसीआईसीआई बैंक के बारे में हाल में सुनने को मिली थीं। वैसा रत्ती भर अंदेशा भी नहीं है मुझे। लेकिन एक तार्किक कदम उठाने में हिचक ये तो बता ही रही है कि निजी बैंकों के पांव किसी-न-किसी जंजीर में बंधे हैं, जिससे छूटने में शायद उन्हें थोड़ा वक्त लगेगा। वे इस जंजीर में बंधे क्यों, यह सोचने की बात है।
यह नतीजा निकालना बड़ा आसान हो सकता है कि सरकार का निर्देश आते ही सरकारी बैंकों ने तुरंत अपनी ब्याज दरें घटा दीं। वे तो मजबूर हैं सरकारी निर्देश मानने के लिए। लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार ने बस अपनी ओर से डंडा फटकार दिया है। रिजर्व बैंक के हाल के कदमों ने इस बात की तार्किक जमीन तैयार कर दी है कि तमाम बैंक अपनी ब्याज दरें घटायें। इसके बावजूद अगर निजी बैंक इसमें हिचक दिखा रहे हैं और सरकारी बैंकों ने तुरंत इस पर अमल कर दिया है, तो शायद इसका मतलब यह भी है कि वित्तीय सेहत के मामले में सरकारी बैंक आज निजी बैंकों से ज्यादा मजबूत हैं।

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