माँग की कमी के कारण कॉटन वायदा (जनवरी) की कीमतों में 20,500-20,400 रुपये तक गिरावट होने की संभावना है।
गुजरात में मिलें नयी खरीदारी से दूरी बनायी हुई हैं, जबकि कर्नाटक और तेलंगाना में अधिकांश मिलें एक ही पाली में काम कर रही है, जिससे माँग कम हो रही है। कर्नाटक में लगभग 300 मिलों में से आधी लगभग पहले ही बंद हो चुकी हैं।
ग्वारसीड वायदा (फरवरी) की कीमतों में 4,240 रुपये के स्तर पर सहारे के साथ स्थिरता रह सकती है, जबकि ग्वारगम वायदा (फरवरी) की कीमतों के 8,500 रुपये से ऊपर ही रहने की संभावना है। भारतीय मौसम विभाग द्वारा एल्नीनो और ला-नीनो के अनुमान से संकेत मिलता है कि इस वर्ष इन दोनों का कोई असर नहीं होने की संभावना है। एल्नीनो के दौरान मॉनसून के कम रहने की संभावना है और यदि अनुमान सही होता है तो 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में ग्वार का उत्पादन बाधित हो सकता है और कीमतों को मदद मिल सकती है।
हाजिर बाजारों में नरमी के रुझान के कारण चना वायदा (मार्च) की कीमतों में 4,150 रुपये रुपये तक गिरावट होने की संभावना है। नाफेड द्वारा चना की बिकवाली, खास तौर से राजस्थान और मध्य प्रदेश में, में बढ़ोतरी के दबाव और सरकारी भंडार में बढ़ोतरी के कारण घरेलू बाजार में चना में नरमी का रुझान देखा जा रहा है। इसके अतिरिक्त बाजारों में चना दाल और बेसन की माँग काफी कम होने के कारण मिलें भी चना की सक्रिय रुप से खरीदारी नही कर रही हैं। सरकारी एजेंसियों द्वारा कम कीमतों पर बिकवाली जारी रहने की संभावना और नयी फसल की आवक में बढ़ोतरी रहने की संभावना से सेंटीमेंट अभी भी कमजोर है। सरकारी एजेंसियों के पास अभी भी पुराना स्टॉक पड़ा हुआ है, जिसे नयी फसल की आवक से पहले बाजार में बेच रही है। (शेयर मंथन, 28 जनवरी 2019)
ग्वारसीड वायदा (फरवरी) की कीमतों में 4,240 रुपये के स्तर पर सहारे के साथ स्थिरता रह सकती है, जबकि ग्वारगम वायदा (फरवरी) की कीमतों के 8,500 रुपये से ऊपर ही रहने की संभावना है। भारतीय मौसम विभाग द्वारा एल्नीनो और ला-नीनो के अनुमान से संकेत मिलता है कि इस वर्ष इन दोनों का कोई असर नहीं होने की संभावना है। एल्नीनो के दौरान मॉनसून के कम रहने की संभावना है और यदि अनुमान सही होता है तो 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में ग्वार का उत्पादन बाधित हो सकता है और कीमतों को मदद मिल सकती है।
हाजिर बाजारों में नरमी के रुझान के कारण चना वायदा (मार्च) की कीमतों में 4,150 रुपये रुपये तक गिरावट होने की संभावना है। नाफेड द्वारा चना की बिकवाली, खास तौर से राजस्थान और मध्य प्रदेश में, में बढ़ोतरी के दबाव और सरकारी भंडार में बढ़ोतरी के कारण घरेलू बाजार में चना में नरमी का रुझान देखा जा रहा है। इसके अतिरिक्त बाजारों में चना दाल और बेसन की माँग काफी कम होने के कारण मिलें भी चना की सक्रिय रुप से खरीदारी नही कर रही हैं। सरकारी एजेंसियों द्वारा कम कीमतों पर बिकवाली जारी रहने की संभावना और नयी फसल की आवक में बढ़ोतरी रहने की संभावना से सेंटीमेंट अभी भी कमजोर है। सरकारी एजेंसियों के पास अभी भी पुराना स्टॉक पड़ा हुआ है, जिसे नयी फसल की आवक से पहले बाजार में बेच रही है। (शेयर मंथन, 28 जनवरी 2019)
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