आज सोमवार को फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (FMC) का भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) में विलय हो गया।
जिंस (कमोडिटी) बाजार की गतिविधियों का नियमन करने वाली 60 साल पुरानी इस संस्था का सेबी में विलय देश में दो नियामकों (रेगुलेटरों) के विलय की पहली घटना है। सेबी पूँजी बाजार का नियामक है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज एक समारोह में पारंपरिक घंटा बजा कर इस विलय की औपचारिकता को पूरा किया। इसके साथ ही देश में जिंस वायदा कारोबार के तीन राष्ट्रीय और छह क्षेत्रीय बाजारों पर निगरानी की जिम्मेदारी सेबी के पास आ गयी है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि एक नियामक संस्था के रूप में एफएमसी का इतिहास ज्यादा पुराना रहा है और यह साल 1953 से ही जिंस बाजारों के नियमन की जिम्मेदारी सँभालता रहा है। इसकी तुलना में सेबी काफी नया नियामक है जिसकी स्थापना 1988 में प्रतिभूति बाजारों के नियमन के लिए हुई थी। सेबी को 1992 में पूर्ण स्वतंत्र अधिकारों के साथ स्वायत्त संस्था का दर्जा दिया गया था। दरअसल सेबी ने शेयर बाजार के नियमन में कहीं ज्यादा दक्षता दिखायी और तुलनात्मक रूप से इस बाजार को हर श्रेणी के निवेशकों के लिए सुरक्षित बनाने का नियामक ढाँचा प्रदान किया। बेशक, शेयर बाजार में समय-समय पर बड़े घोटाले सामने आते रहे, मगर सेबी ने ऐसे हर संकट को बेहतर नियमन के लिए इस्तेमाल किया। दूसरी ओर एफएमसी के नियमन को काफी ढीला-ढाला माना जाता रहा।
जिंस बाजार में हाल के एनएसईएल घोटाले ने एफएमसी के नियमन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये। इसके मद्देनजर ही इस साल के बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एफएमसी का सेबी में विलय करने की घोषणा की थी।
शेयर बाजार की इकाइयों के लिए सेबी के नियमन मानदंड कहीं ज्यादा कड़े रहे हैं। लिहाजा जिंस बाजार में कारोबार करने वाली इकाइयों को नयी व्यवस्था के मुताबिक खुद को ढालने के लिए एक साल का समय दिया गया है। इसके बाद उन्हें शेयर बाजार में सक्रिय इकाइयों पर लागू मानदंडों पर ही चलना होगा। सेबी के पूर्णकालिक सदस्य राजीव कुमार अग्रवाल को जिंस बाजार के नियमन पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। (शेयर मंथन, 28 सितंबर 2015)