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ट्रंप के टैरिफ पर चीन का पलटवार, वैश्विक मंदी की आहट से सहमे दुनिया के बाजार

एक आदमी की सनक कैसे दुनिया में हलचल ला सकती है इसका जीता जागता उदाहरण हैं अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनका रेसिप्रोकल टैरिफ। जिद इस बात की कि दुनिया का कारखाना अमेरिका बने और खरीदार दुनिया। इस जिद और ताकत के नशे में चूर डॉनल्ड ट्रंप ने 60 से ज्यादा देशों पर 2 अप्रैल से टैरिफ क्या लगाया, जिससे दुनिया में टैरिफ वॉर का आगाज हो गया। इसी सनक की बानगी भारतीय बाजारों पर भी साफ-साफ दिखाई दी।

7 अप्रैल की शुरुआत के साथ ही वैश्विक बाजारों में दबाव दिखा। अमेरिकी एक्सचेंजों के वायदा में भारी दबाव था। गिफ्ट निफ्टी भी गिरावट दिखा रहा था और बाजार खुले अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि सेंसेक्स करीब 4000 अंक लुढ़क गया। जिस निफ्टी को 4 अप्रैल 22000 के ऊपर छोड़ा था वो अपनी सारी सीमाएँ लाँघते हुए 22000 के नीचे फिसल गया। हालात ऐसे लग रहे थे कि मानों बाजार में शेयरों का कत्लेआम का हो रहा हो। हर तरफ बिकवाली हावी रही।

चीन ने किया पलटवार

ये ही हाल कमोडिटी बाजार में भी दिखाई दिया। इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल कोरोना काल के स्तरों पर जा पहुँचा। तो सोना और चाँदी क्रमश: 1 और 4 महीनों के निचले स्तरों तक फिसल गए। बेस मेटल्स से लेकर खाने के तेल, सब में भारी गिरावट रही। कारण अमेरिका के टैरिफ के बाद चीन का पलटवार था। दरअसल चीन ने न सिर्फ अमेरिका पर 34% का टैरिफ लगा दिया बल्कि कई दुर्लभ खनिज का अमेरिका को निर्यात भी रोक दिया। इसी बीच ट्रंप का बयान भी आया। ट्रंप बोले कि वो नहीं चाहते कि शेयर बाजार में गिरावट आए लेकिन कभी-कभी कड़वी दवा भी पीनी पड़ती है। लेकिन सच बात तो ये है कि ये दवा दुनिया को ठीक नहीं बल्कि बीमार बना रही है।

बाजार में सोमवार की गिरावट के पीछे ये कुछ प्रमुख कारण रहे :

1) वैश्विक बाजार में उथल पुथल
देखा जाए तो 7 अप्रैल की गिरावट सिर्फ भारतीय बाजारों तक ही सीमित नहीं थी बल्कि इसकी चपेट में दुनिया के तमाम देश आए थे जिसमें जापान का बाजार प्रमुख था। उनकी दवा वाले बयान के बाद अमेरिका, यूरोप और एशिया के तमाम बाजारों में बिकवाली बढ़ गई। निक्केई 7%, ताइवान वेटेड 10%, डाॅओ जोन्स, नैस्डेक और एसएंडपी में करीब 6% की गिरावट देखने को मिली। इसके बाद सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही लगभग 3% की गिरावट के साथ बंद हुए।

2) टैरिफ अब भी प्राइस्ड इन नहीं?

ट्रंप टैरिफ पर जानकारों का मानना है कि बाजारों में गिरावट की ये तो बस शुरुआत भर है क्योंकि अनिश्चितता भरे इस माहौल में टैरिफ अब भी बाजार में पूरी तरह से प्राइस्ड इन नहीं है। यानी असल गिरावट आना अभी बाकी है। आसाना भाषा में प्राइस्ड इन को समझें, तो इसका मतलब ये हुआ कि बाजार में निवेशक अब भी इसकी पूरी गंभीरता को सही से समझ नहीं पाये हैं। बाजार में कुछ जानकार तो इस बात का भी अंदाजा ला रहे हैं कि निफ्टी 21500 या उससे भी नीचे फिसल सकता है।

3) वैश्विक मंदी अब दूर नहीं?

ट्रंप टैरिफ के कारण पूरी दुनिया में मंदी आने की आशंका को बल मिला है, क्योंकि टैरिफ के कारण कंपनियों की आय घटेगी, मुनाफा कम होगा, मार्जिन घटेगा, छंटनियाँ होगीं, महँगाई बढ़ेगी और इन सब का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। बाजार ये भी मान रहा है कि इसकी शुरुआत खुद अमेरिका से हो सकती है, क्योंकि ट्रंप जिस राह पर अमेरिका को ले चले हैं वो राह इतनी भी आसान नहीं है।

जेपी मॉर्गन का मानना है कि अमेरिका में मंदी आने की आशंका 40% से बढ़कर 60% हो गई है। कुछ यही हाल वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर भी है। जेपी मॉर्गन का मानना है कि  अगर अमेरिका में मंदी आती है तो उसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी साफ दिखाई देगा। वहीं बाजार के जानकारों का मानना है कि अमेरिकी की नीतियाँ दुनिया को मंदी की ओर ढकेल रही हैं।

हालाँकि, जहाँ तक भारत की बात है तो उसे भी नुकसान होगा लेकिन उतना नहीं जितना दूसरों को होगा। वहीं, ट्रंप के भारत पर 26% टैरिफ लगाने के बाद गोल्डमैन सैक्स ने भारत की विकास दर का अनुमान 6.3% से घटाकर 6.1% कर दिया है। सिटी और दूसरी संस्थाओं ने भी भारतीय जीडीपी में 0.30-0.40% के दबाव की आशंका जताई है।

4) विदेशी निवेशकों की दूरी

विदेशी निवेशक अब भी भारतीय शेयर बाजार से दूरी बनाए हुए हैं। मार्च में थोड़ी बहुत खरीदारी लौटती हुई दिखाई दी थी लेकिन मार्च अंत आते-आते और अप्रैल में तो मानो बिलकुल ही गायब हो गई। सिर्फ अप्रैल में अब तक विदेशी निवेशकों ने 13730 करोड़ रुपये की बिकवाली कर दी है। ये आलम तब है जब कारोबारा ही कुल 5 दिन हुआ है।

जानकारों का मानना है कि विदेशी निवेशक वैश्विक अनिश्चितता को सबसे पहले भाँपते हैं और तेजी से पूँजी निकालते हैं। अगर भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ तो ये बिकवाली का बड़ा कारण बन सकती है। विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकालेंगे और बाजार और गिरेगा।

कहाँ है बाजार की नजर?

बाजार की नजर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नीतियों पर टिकी हुई है। 7 अप्रैल से आरबीआई की मौद्रिक नीति की बैठक शुरू हो चुकी है। 3 दिनों तक चलने वाली इस बैठक के नतीजों का ऐलान और ब्याज दरों पर फैसला 9 अप्रैल को लोगों के सामने रखा जायेगा। बाजार में जानकार इस बार 0.25% की कटौती को लेकर एक मत हैं। अगर ऐसा होता है तो आरबीआई लगातार दूसरी बार बार ब्याज दरों में कटौती करेगा। हालाँकि, जानकार अगली 2 नीतियों में कटौती की उम्मीद कम ही जता रहे हैं। वहीं, 10 अप्रैल से कंपनियों के चौथी तिमाही के नतीजे भी आने शुरू हो जायेंगे।

(शेयर मंथन, 08 अप्रैल 2025)

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