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अमेरिकी शुल्क से सबसे ज्यादा असर होगा डेयरी-बेकरी और समुद्री उत्पादों के निर्यात पर

अमेरिका की नयी नीति के तहत भारत के सामानों के आयात पर 26% का भारी-भरकम शुल्क लगा है। उद्योग संगठन फिक्की के अनुसार इससे भारतीय निर्यात को कहीं फायदा और कहीं नुकसान हो सकता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस महीने की शुरुआत में नयी शुल्क नीति की घोषणा की। इसमें कई देशों को निशाना बनाया गया, जिनमें भारत भी शामिल है। ट्रंप की इस नयी नीति के तहत भारतीय सामानों पर 26% शुल्क लगाया गया है। यह सभी देशों के आयात पर लागू 10% आधार शुल्क के ऊपर है। 26% का यह अतिरिक्त शुल्क कल 9 अप्रैल से लागू हो रहा है। अभी शुल्क लागू होने से पहले भारत समेत विश्व के सभी प्रमुख शेयर बाजारों पर इसका स्पष्ट असर दिख चुका है। शुल्क लागू होने के बाद इसका असर वैश्विक व्यापार पर पड़ने वाला है, जो अंतत: वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा।

भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यात बाजार

उद्योग संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने एक ताजा रिपोर्ट में भारत पर ट्रंप शुल्क के असर का आकलन किया है। फिक्की के अनुसार, इस शुल्क का भारत के निर्यात पर गहरा असर पड़ने वाला है, क्योंकि अमेरिका भारत के लिए निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है। वित्त-वर्ष 2023-24 में भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी 17.7% रही। यह किसी भी अन्य देश की तुलना में सबसे ज्यादा है। फिक्की का कहना है कि शुल्क लागू होने के बाद इस व्यापार की पूरी तस्वीर बदलने वाली है। इसके चलते कुछ क्षेत्रों में निर्यात बुरी तरह प्रभावित होने वाला है। राहत की बात है कि कुछ क्षेत्रों को इससे फायदा भी होने वाला है।

किन क्षेत्रों के निर्यात पर सबसे ज्यादा असर?

फिक्की के आकलन के हिसाब से भारत को समुद्री उत्पादों, चाय, शहद, बेकरी उत्पादों, डेयरी उत्पादों, कारपेट, रत्न एवं आभूषण और चिकित्सकीय उपकरणों के क्षेत्र में निर्यात का नुकसान होने वाला है। वहीं, बासमती चावल, काजू, वस्त्र-परिधान, मेड-अप्स, जूते-चप्पल और इलेक्ट्रॉनिक्स के मामले में फायदा होने वाला है। ट्रंप ने कुछ क्षेत्रों को अभी शुल्क के दायरे से बाहर रखा है। ऐसे में इन क्षेत्रों पर कोई असर नहीं होने वाला है। इनमें दवा, इस्पात, एल्युमिनियम, तांबा, वाहन और वाहनों के कल-पुर्जे शामिल हैं।

लैटिन अमेरिकी देश ले सकते हैं जगह

समुद्री भोज्य पदार्थों के मामले में भारत के लिए सबसे बड़ा निर्यात बाजार अमेरिका है। भारत 2.58 अरब डॉलर की मछलियों, मांस एवं प्रसंस्कृत समुद्री भोज्य पदार्थों का निर्यात करता है। इसमें अमेरिका की 34.5% हिस्सेदारी है। इस श्रेणी में भारत को कनाडा, इक्वाडोर, इंडोनेशिया, वियतनाम और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। इंडोनेशिया और वियतनाम पर तो भारत से ज्यादा शुल्क लगा है, लेकिन अन्य देश यहाँ फायदा उठाने की स्थिति में है। खास तौर पर लैटिन अमेरिकी देश भारतीय समुद्री उत्पादों की जगह ले सकते हैं, क्योंकि रेसिप्रोकल टैरिफ लगने के बाद ये देश तुलनात्मक रूप से कम शुल्क लगने से फायदे में हैं।

बासमती चावल और काजू में बाजार बनाने का मौका

चाय के मामले में भारत को चीन और श्रीलंका की तुलना में तो फायदा है, लेकिन अर्जेंटीना, पोलैंड, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश भारतीय चाय के निर्यात को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसी तरह, शहद के निर्यात में भारत को अर्जेंटीना, ब्राजील और न्यूजीलैंड से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल सकती है। दूसरी ओर, चीन और थाईलैंड जैसे देशों पर भारी शुल्क भारत के बासमती चावल के निर्यात को फायदा पहुँचा सकते हैं। भारत अमेरिकी बाजार में 27% हिस्सेदारी के साथ बासमती चावल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। काजू के मामले में अभी वियतनाम सबसे आगे है, लेकिन उसके ऊपर 46% शुल्क लगने से भारत के पास बाजार बनाने का मौका है।

इन चीजों पर पहले ही लगा है 25% शुल्क

इस्पात, एल्युमिनियम, वाहन और वाहनों के कल-पुर्जों को पारस्परिक शुल्क के दायरे से भले ही बाहर रखा गया है, लेकिन इनके ऊपर अलग से पहले ही 25-25% शुल्क लगाया जा चुका है। हालाँकि यह शुल्क सभी देशों के लिए एक समान है, तो इन क्षेत्रों में भारतीय निर्यात के ऊपर अन्य देशों के मुकाबले न तो प्रतिस्पर्धी लाभ मिलने वाला है, न ही प्रतिस्पर्धी हानि होने वाली है।

(शेयर मंथन, 09 अप्रैल 2025)

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