आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड (ICICI Prudential Mutual Fund) ने 10 साल की नियत अवधि का (क्लोज एंडेड) फंड बाजार में उतारा है, जिसका नाम है आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लॉन्ग टर्म वेल्थ एनहेंसमेंट फंड (ICICI Prudential Long Term Wealth Enhancement Fund)। इसका न्यू फंड ऑफर (NFO) 22 दिसंबर 2017 को ही खुल चुका है, जो 21 मार्च 2018 को बंद होगा।
इस फंड की कमान आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड के सीआईओ एस. नरेन (S. Naren) और रजत चंडक (Rajat Chandak) के हाथों में है। रजत चंडक ने शेयर मंथन से विशेष बातचीत में इस फंड के उद्देश्यों और शेयर मंथन रणनीति को प्रस्तुत किया है :
यह योजना लंबी अवधि में संपदा निर्माण कर सकने वाले क्षेत्रों में निवेश करने का उद्देश्य रख कर शुरू की जा रही है। यह इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ईएलएसएस) है, लिहाजा यह आय कर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर लाभ भी देगी। इस फंड से तीन साल के बाद पैसा निकाल सकते हैं, पर नया पैसा डाल नहीं सकते। एक बार एनएफओ का पैसा आयेगा, फिर फंड बंद हो जायेगा। यहाँ बाद में नये निवेशक नहीं आ सकते। हमारे पास पहले से एक राइट फंड है, जो मैं चला रहा हूँ। अगले साल उसकी 10 साल की अवधि खत्म हो जायेगी। अब उसी तरह का एक नया फंड ला रहे हैं।
इसके पूरे 10 साल के लिए कोई खास रणनीति तो नहीं कह सकते, क्योंकि बदलाव होते रहेंगे और रणनीति भी बदलेगी। यह 10 साल का पैसा है तो मेरा मुख्य ध्यान ज्यादा प्रतिफल (रिटर्न) पर रहेगा। यह फंड फ्लेक्सी-कैप रहेगा और चुनिंदा शेयरों में निवेश यानी बॉटम अप आधार पर जिस-जिस क्षेत्र में अच्छे अवसर दिखेंगे वहाँ पैसा लगाया जायेगा। मैंने बीते पाँच साल में राइट फंड इस तरह से चलाया है। मानदंड (बेंचमार्क) सूचकांक की ओर झुकाव थोड़ा कम रहेगा। सामान्यतः मेरा झुकाव मानदंड सूचकांक की ओर कम रहता है। मानदंड सूचकांक से बाहर के निवेश भी काफी रहते हैं।
ऐसे निवेश का बाजार से विपरीत (कॉन्ट्रा) होना जरूरी नहीं है। पर सूचकांक में नहीं है तो नहीं लूँगा, ऐसा नजरिया नहीं है। उसके बाहर भी अगर अच्छे शेयर हैं जहाँ मध्यम से लंबी अवधि में अच्छे प्रतिफल पाये जा सकते हैं तो मैं ऐसी कंपनियों में निवेश करने से नहीं हिचकता।
मेरे हिसाब से 10 साल में भारत में एक तार्किक प्रतिफल मिलेंगे, लंबी अवधि के प्रतिफल अच्छे ही रहेंगे। छोटी अवधि के मुकाबले लंबी अवधि के लिए बात करना आसान होता है। उसमें भी समय का महत्व तो होता ही है। अगर किसी ने 2007-08 की तेजी में पैसा लगाया होता तो शायद उतना प्रतिफल नहीं बना होता। वहाँ से आज केवल 7-8% प्रतिफल ही होगा। उस हिसाब से जिसने 2007 में पैसा लगाया, वह कहेगा कि मैंने तो लंबी अवधि के लिए डाला था, पर 10 साल में ज्यादा पैसा नहीं बना, बैंक के प्रतिफल जितना ही बना।
मगर उसमें भी 2007 से 2018 के बीच इन 10-11 वर्षों में 100 से अधिक ऐसे मँझोले शेयर हैं, जिन्होंने इस दौरान 18 से 20% सालाना चक्रवृद्धि (सीएजीआर) प्रतिफल दिया है। इसीलिए हमारा ध्यान हमेशा बॉटम-अप यानी चुनिंदा शेयरों पर रहता है। अगर आप 2007 में भी अच्छी कंपनियों और अच्छे व्यवसायों के शेयर चुनते तो 15-20% सालाना जैसा प्रतिफल पा सकते थे।
अभी अगले 2-3 सालों के लिए खपत (कंजंप्शन) मेरे हिसाब से एक अच्छा क्षेत्र है, क्योंकि इसमें ऑटो, रिटेल, मल्टीप्लेक्स आदि कई चीजें आ जायेंगी। एफएमसीजी तो है ही इसमें, उसके अलावा रेस्टोरेंट जैसे कुछ क्षेत्र हैं जिनमें 1-2 कंपनियाँ ही हैं। यह अपने-आप में एक बहुत क्षेत्र नहीं है, लेकिन समय के साथ इनसे एक स्थिर प्रतिफल मिल सकता है। कुछ जगहों पर अब भी मूल्यांकन उतने महँगे नहीं हैं। वित्तीय क्षेत्र भी रहेगा, खास तौर से कॉर्पोरेट क्षेत्र को ज्यादा ऋण देने वाले बैंक, क्योंकि आज के समय में खुदरा ऋणों वाले बैंक थोड़े महँगे हैं। कॉर्पोरेट ऋणदाताओं के एनपीए के कारण उनका मूल्यांकन कम है, पर यह समस्या धीरे-धीरे सुलझ जायेगी। सरकार और आरबीआई दोनों का इस पर ध्यान है। इसके समाधान में अगर बैंकों को एनपीए राशि पर 50-55% का नुकसान भी होता है तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह संभावना पहले से ही भावों में शामिल है। वहीं इनके समाधान के बाद बैंक अपने मुख्य व्यवसाय पर ध्यान दे सकेंगे। पिछले 2-3 साल में बहुत सारी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने काफी वृद्धि हासिल की है, क्योंकि कॉर्पोरेट ऋणदाता बैंक अपनी ऐसी ही उलझनों में फँसे हुए थे। मुख्य व्यवसाय पर ध्यान देने से उनकी आमदनी बढ़ेगी। आमदनी बढ़ने और एनपीए सुलटने से इनकी प्रति शेयर आय (अर्निंग) में अगले 2 साल में अच्छी वृद्धि दिखेगी। इनके मूल्यांकन अभी भी कई एनबीएफसी से भी नीचे हैं। एक बार इनकी आय में वृद्धि आने पर मेरा अनुभव रहा है कि वह क्षेत्र अच्छा करता ही है।
साथ ही सरकार का ध्यान बुनियादी ढाँचा (इन्फ्रा) और हाउसिंग फॉर ऑल जैसी योजनाओं पर रहने के कारण कुछ मँझोली सीमेंट कंपनियों पर भी नजर रहेगी। सीमेंट में भी मँझोली कंपनियाँ मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि बड़ी कंपनियों में मूल्यांकन थोड़े ज्यादा महँगे लगते हैं। बुनियादी ढाँचा के उप-क्षेत्रों में सड़क निर्माण पर सरकार का ध्यान है, इस क्षेत्र में दो-तीन कंपनियाँ हैं। ये कुछ क्षेत्र हैं, जो अगले 2-3 साल में बेहतर रहने चाहिए।
इनके अलावा विमानन क्षेत्र भी मुझे पसंद है। इसे भी एक तरह से खपत का हिस्सा माना जा सकता है। एक तो लोगों की आय बढ़ेगी, और वास्तविक अर्थों में टिकटों की कीमतें 10-12 साल पहले से कम ही हुई हैं क्योंकि महँगाई तो हर साल 5-7% रही है। इसलिए लोगों की हवाई यात्रा करने की क्षमता बढ़ी है। पिछले दो सालों में यात्रियों की संख्या में भी 15-20% का इजाफा हुआ है। यह उद्योग काफी संघटित है, इसमें 2-3 ही मुख्य कंपनियाँ हैं, जिसके चलते कीमत-युद्ध ज्यादा नहीं होता है। पहले कई कंपनियाँ इस क्षेत्र में थीं जो यात्रियों की संख्या बढ़ाने के लिए टिकट की कीमतों में कटौती कर देती थीं, जिससे बाकी उद्योग को नुकसान होता है। मगर अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है। ऐसे में अगले तीन से पाँच साल के लिए विमानन एक अच्छा क्षेत्र है। साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से पर्यटन में निवेश भी है। लोगों की आमदनी बढ़ने के साथ ही लोग घर और गाड़ी के बाद घूमने-फिरने के बारे में सोचते हैं। ऐसे में इसी से जुड़ा हुआ एक क्षेत्र होटल है, जिसमें निवेश किया जा सकता है। पर्यटन को एक टोकरी मानते हुए उसमें विमानन, होटल आदि क्षेत्र लिये जा सकते हैं। होटल उद्योग में भी अब कमरों के औसत किराये धीरे-धीरे ऊपर आ रहे हैं, जो इस क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत है।
संक्षेप में कहें तो खपत, पर्यटन, बुनियादी ढाँचा जिसमें सड़क निर्माण और सीमेंट खास तौर से, और वित्तीय क्षेत्र - ये चार-पाँच क्षेत्र आज की स्थिति में मुझे अच्छे लगते हैं। लंबी अवधि के हिसाब से भी इन क्षेत्रों में अस्थिरता कम रहेगी क्योंकि ये घरेलू बाजार पर निर्भर और खपत पर आधारित हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था से संबंधित उतार-चढ़ाव मुझे परेशान करता है, जो कमोडिटी, धातु (मेटल), तेल-गैस वगैरह में हो सकता है, जैसे कि कच्चा तेल 140 डॉलर से 30 डॉलर पर भी आ सकता है और वहाँ से 70 डॉलर भी जा सकता है। इसलिए आम तौर पर मैं कमोडिटी, या बहुत वैश्विक असर वाले क्षेत्रों से मैं थोड़ा दूर रहूँगा। उसमें आईटी को गिन सकते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में विकास अब थोड़ा सुस्त हो गया है और यह व्यवसाय भी वैश्विक है और मुद्रा (करेंसी) के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होता है। इसलिए मैं ऐसे क्षेत्रों में कम निवेश रखूँगा। अगले 10 साल के हिसाब से भारत में ही काफी अवसर हैं। इसलिए वैश्विक असर वाले क्षेत्रों और कंपनियों पर कम ध्यान रहेगा।
हमारे इस नये फंड के निवेशक को समझना होगा कि इसमें समयावधि 10 साल है। कई शेयर ऐसे होंगे जो चार-पाँच साल में फायदा देंगे। छोटी अवधि के प्रतिफल देख कर इधर-उधर निवेश करना उनके लिए भी नुकसानदेह हो सकता है। यदि आप हमारा मौजूदा राइट फंड देखें तो उसने भी लंबी अवधि में बहुत शानदार प्रदर्शन किया है। उसमें कई छोटे और मँझोले शेयर ऐसे भी थे, जिन्होंने काफी समय तक फायदा नहीं दिया, मगर उसके बाद शानदार प्रदर्शन किया। (शेयर मंथन, 31 जनवरी 2018)
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