जब हमने बजट की तारीख को पहले खिसकाया ही है, तो इसे थोड़ा और खिसका कर 25 दिसंबर भी किया जा सकता था। हममें से बहुतों के लिए वित्त मंत्री अपने बजट प्रस्तावों के जरिये तोहफे ही देंगे और बाकी लोग इस बात पर बहस करेंगे कि आखिर सैंटा कहीं है भी या नहीं और हमारी इच्छाएँ क्यों पूरी नहीं हुईं!
खैर, वास्तविकता की ओर लौटें तो हम इतने परिपक्व हो चुके हैं कि हर बार माननीय वित्त मंत्री की ओर से प्रस्तुत बजट प्रस्तावों में चाहे जितना भी उपहार मिला हो, उससे काम चला लें। इसी भावना के साथ मैं इस बार के बजट के लिए अपनी इच्छाओं का पिटारा सामने रखता हूँ!
मेरे उद्योग से जुड़े अधिकांश लोग अभी "लॉन्ग टर्म..." से शुरू होने वाले किसी भी वाक्यांश को ले कर जरा चिंतित हैं। क्या वित्त मंत्री ऐसा करें, या नहीं करेंगे? बाजारों, यानी शेयर बाजार, कमोडिटी बाजार आदि के आर्थिक योगदान, अर्थव्यवस्था में उनकी उपयोगिता और राष्ट्रीय खजाने में पूँजी बाजार सहभागियों के कम योगदान के बारे में प्रधानमंत्री की टिप्पणी के बाद यह चिंता बनी कि इक्विटी पर मिलने वाले दीर्घावधि पूँजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन) पर कर लगाया जा सकता है। मेरी इस बजट से केवल एक ही इच्छा है कि पीछे लौटने वाला यह कदम नहीं उठाया जाये, वह भी इक्विटी से मिलने वाले लाभ पर कर लगाने के बारे में पूरी तरह से एक गलतफहमी के आधार पर।
शेयर बाजार में इक्विटी से मिलने वाली आय वह शुद्धतम आय है, जो इस अर्थव्यवस्था में हासिल हो सकती है। शेयर बाजार सूचीबद्ध कंपनियों के मुनाफे के आधार पर मूल्यांकन करता है, और हम जानते हैं कि कंपनियों का मुनाफा सारे कच्चे माल आदि इनपुट की लागत और उन पर लागू महँगाई दर के बाद आता है। ये कच्चे माल असंगठित, असूचीबद्ध या एमएसएमई इकाइयों वगैरह कई तरह के स्रोतों से आते हैं, जिन पर सारे अप्रत्यक्ष कर, मजदूरी और लाभ वगैरह का भुगतान हो चुका होता है। इन सारे खर्चों को चुकाने के बाद ये कंपनियाँ मुनाफा हासिल करती हैं और उस मुनाफे पर वे कर चुकाती हैं। कर चुकाने के बाद बचे मुनाफे पर ये कंपनियाँ लाभांश (डिविडेंड) घोषित करती हैं और उस लाभांश पर भी लाभांश वितरण कर लगता है। इसके बाद, जो लोग 10 लाख रुपये से ज्यादा लाभांश हासिल करते हैं, उन्हें आयकर और लाभांश वितरण कर चुकाये हुए उस शुद्ध लाभांश पर भी ऊपर से 10% का एक और उपकर (सेस) चुकाना होता है। इन सबका असर पूँजी-निर्माण पर होता है और एक उद्यमी बनने या इक्विटी के स्वामी के रूप में एक उद्यम में साझेदार बनने का प्रोत्साहन घटता है।
अब उन लोगों की बात करते हैं, जो इक्विटी खरीदते और बेचते रहते हैं - यानी वे लोग जो लंबी अवधि के निवेशक नहीं हैं और जिन पर ऊपर का तर्क लागू नहीं होता है। वे लोग पहले से ही 15% अल्पावधि पूँजीगत लाभ कर (शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स) और उस पर अधिभार (सरचार्ज) चुका रहे हैं। इसके अलावा, वे एसटीटी या सीटीटी के रूप में एक अच्छे-खासे शुल्क का भुगतान कर ही रहे हैं। वैसे भी वे दीर्घावधि पूँजीगत लाभ कर के दायरे में नहीं आते, क्योंकि वे शेयरों को लंबी अवधि के लिए तभी रखते हैं, जब वे किसी सौदे में घाटा उठा रहे होते हैं!
इसलिए इक्विटी निवेश पर पूँजीगत लाभ कर लागू करना निवेशकों पर कई स्तरों पर कर का बोझ लादना है। यह कर ऐसे लाभ पर लगेगा, जिस पर पहले से ही कर दिया जा चुका है और जो बाजार की दिशा तय करता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसा कर लगाना लंबी अवधि के निवेश को गंभीर रूप से हतोत्साहित करना है। जिस तरह अल्पावधि पूँजीगत लाभ पर कर लगता है, उसी तरह दीर्घावधि पूँजीगत लाभ पर भी कर लगाया जाये तो इसका मतलब यही कहना होगा कि आप चाहे छोटी अवधि के लिए पैसा लगायें या लंबी अवधि का निवेश करें, उससे फर्क नहीं पड़ता। ऐसा करना अच्छे निवेशकों को भी कारोबारी (ट्रेडिंग) मानसिकता की ओर ले जायेगा, या इससे भी बुरा यह हो सकता है कि लोगों को इक्विटी में निवेश करने से ही दूर ले जाये।
इस क्षेत्र के बहुत-से लोगों के विपरीत मैं यह नहीं चाहता कि धारा 80सी या सेवानिवृति योजनाओं (रिटायरमेंट प्लान) आदि में कोई फेरबदल किया जाये। अगर ऐसा होता है तो अच्छा है, पर मेरा विचार है कि नोटबंदी के बाद ब्याज दरों का आयाम काफी बदला है। वहीं रियल एस्टेट और सोने के प्रति भी अभी धारणा अच्छी नहीं है। ये ऐसे पर्याप्त कारण हैं, जो लोगों को इक्विटी की ओर आकर्षित करेंगे। तुलना के लिहाज से यह बात ध्यान देने वाली है कि काली या समांतर अर्थव्यवस्था का पैसा शेयर बाजार में नहीं आता, क्योंकि यहाँ सारा पैसा बैंकों के माध्यम से ही आता और जाता है। हमारा उद्योग अरसे से डिजिटल और नकदी-रहित है। इसलिए मेरी इच्छा है कि कई स्तरों पर कर का बोझ लाद कर इक्विटी में निवेश को हतोत्साहित नहीं किया जाये और उद्यमिता की भावना के लिए असम्मान नहीं दिखाया जाये, क्योंकि देश को इसकी जरूरत है। हमारी समस्या यह नहीं है कि विदेशी पोर्टफोलिओ निवेशक खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं। हमारी समस्या यह है कि खुद भारतीय ही भारत के विकास का स्वामित्व अपने पास नहीं रख रहे हैं। आशीष पी. सोमैया, एमडी और सीईओ, मोतीलाल ओसवाल एएमसी (Aashish P. Somaiyaa, MD & CEO, Motilal Oswal AMC)
(शेयर मंथन, 25 जनवरी 2017)
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